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Channel: लघुकथा
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कितना बड़ा दुख

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लाइए बाबू जी । पाँच हजार रुपये दीजिए ।

-किसलिए?

-यह ऊपर की फीस है रजिस्ट्री करवाने की । यदि यह अदा न की गई, तो रजिस्ट्री पर कोई न कोई ऑब्जेक्शन लग जाएगा और मामला फँसा रहेगा ।

दरअसल मैं प्रॉपर्टी डीलर के साथ अपने  प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने गया था तहसील दफ्तर । इससे पहले प्रॉपर्टी डीलर नीचे के बाबुओं को सौ- सौ रुपये देने को कहता रहा और मैं देता गया । पर अब एकसाथ पाँच हजार? दिल धक्क से रह गया । आखिर मैंने फैसला किया ।

-अब आप ये कागज़ मुझे दो । मैं जाता हूँ तहसीलदार के पास ।

-बाबू जी । काम बिगड़ जाएगा ।

-कोई बात नहीं । बहुत हो गया और आपने बहुत खुश कर लिया बाबुओं को । अब लाओ कागज़ मैं देखता हूँ ।

प्रॉपर्टी डीलर ने कागज़ काँपते हाथों से मुझे सौंप दिए ।

मैंने अपना कार्ड भेजा और बुलावा आ गया साहब का ।

-बताइए क्या काम है?

-यह मेरी रजिस्ट्री है । प्रॉपर्टी डीलर पाँच हज़ार देने को कह रहा है। क्या ये देने ही पड़ेंगे?

साहब ने मेरा विजिटिंग कार्ड देखा और पत्रकार पढ़ते ही चौंके और मेरा काम-धाम पूछा और चाय भी मँगवाई । चाय की चुस्कियों के बीच कागज़ के बिल्कुल टॉप पर हरे पेन से निशान लगा मानो ग्रीन सिग्नल दे दिया और कागज़ लौटाते हुए कहा -किसी को कुछ देने की जरूरत नहीं । जाइए अपनी रजिस्ट्री करवाइए ।

मैं प्रॉपर्टी डीलर के साथ अगली विंडो पर पहुँचा । वहां एक सुंदर सलोनी महिला विराजमान थी । उसने ग्रीन सिग्नल देखते ही ज़ोर से अपना माथा पीटा और बोली -आज साहब को पता नहीं क्या हो गया है ? यह दूसरी रजिस्ट्री है, जो मुफ़्त में की जा रही है ।

मैं हैरान था उस सुंदरी के इतने बड़े दुख को जानकर…

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