वापसी
कोरोना के तीन साल! लाखों लोगों की मृत्यु से होकर गुज़रे हैं ये साल। साल भर पहले माँ भी इसी काफ़िले में शामिल हो सदा के लिए खो गईं। 30 घंटे की लंबी यात्रा कर वह न्यूयार्क से कल शाम ही ग्वालियर पहुँची।...
View Articleसाड़ी-संवाद
दिनेश अपने कार्यालयीन रणक्षेत्र में फाइलों की कँटीली झाड़ियों से जूझ रहा था, तभी फोन की घंटी ने उसे युद्धस्थल से खींच लिया। उधर से मोहिनी की मीठी, किंतु संकोचभरी वाणी आई, “सुनो, एक बात है, गुस्सा तो...
View Articleपिल्ला
सोल्जेनित्सिन पिल्ला हमारे पिछवाड़े वाले अहाते में एक लड़का अपने छोटे कुत्ते शारिक को जंजीर से बाँधे रखता था। किसी हथकड़ी की तरह यह जंजीर उसकी रोएँदार गर्दन के चारों ओर तब से जकड़ी रहती थी, जब वह...
View Articleसूअर/শূকর/রমেশ বতরা
রমেশ বতরাঅনুবাদ – মিতা দাস অনেক শোরগোলের মধ্যে ওরা একটা পুরাতন প্রাসাদে পৌঁছে গেল। প্রাসাদ হলেও প্রাসাদের ভিতরের সব ঘরের দরজা বন্ধ। একটি মাত্র ঘরের দরজা খোলা ছিল। সবাই জড়ো হল এবং দুই – তিন জন করে ওরা...
View Articleहिन्दी–लघुकथा के उल्लेखनीय हस्ताक्षर : रमेश बतरा
हिन्दी–लघुकथा के पुनरुत्थान काल के आठवें दशक में लघुकथा को जिन कुछ लोगों ने सार्थक दिशा दी है, इसे हाशिए से उठाकर मुख्य धारा से जोड़ा, उनमें रमेश बतरा का नाम अग्रगण्य है। रमेश बतरा उन दिनों कमलेश्वर...
View ArticleCompletely Ready
Translated from the Original Hindi byKanwar Dinesh Singh The boy reached the door of the office after great effort, but he was stopped at the door itself. “Why are you stopping me?” The boy asked....
View Articleअप्सरा
मनोरमा को बेडरूम में पहुँचने में कुछ ज़्यादा ही देर हो गई। मेहमानों के जाने के बाद रसोई और डाइनिंग टेबल की साफ़ सफ़ाई में काफ़ी वक़्त लग गया। सबसे कठिन काम तो नान वेज के बर्तनों को धोने माँजने का था।...
View Articleसाँचे
(लघुकथा के नियम और स्वरूप तय करने वाले विद्वानों को सादर समर्पित) सड़क किनारे की उस दुकान में देवी-देवताओं की, ग्रामीण एवं शहरी स्त्रियों की बहुत सी मूर्तियाँ थीं। सब की सब साँचे में ढली...
View Articleममता का स्वाद
ऑफिस से घर आकर विभोर ने देखा कि आज भी डाइनिंग टेबल पर, अंकित की पसंद की ढेर सारी खाने की चीजें रखी हुई थी; लेकिन अंकित कुछ भी ठीक से नहीं खा रहा था। विभोर को देख रति परेशान होते हुए उससे बोली- “देखो...
View Articleनई पुस्तक
1-वे परिन्दे नहीं लौटते (लघुकथा- संग्रह)-हरभगवान चावला, मूल्य 195/-, पृष्ठः128 , प्रकाशक: वेरा प्रकाशन, जयपुर 2-अँधेरे गलियारे (लघुकथा- संग्रह)- सुरेश वशिष्ठ, ,वर्ष-2024,पृष्ठ;168, मूल्य-450/-,...
View Articleमीठे बोल
आज सुबह स्त्री गुनगुनाते हुए नींद से जागी थी। उठते ही रसोई में लग गई। पुरुष को उसकी प्रसन्नता व गुनगुनाहट शिशिर ऋतु की खिली हुई नरम धूप के समान लगी। वह उसकी गुनगुनाहट में खोने ही वाला था कि उसके मन...
View Articleचर्चा में
संरचना-17 (सम्पादकः कमल चोपड़ा), वार्षिकी ‘भीड़ में गुम आदमी’(युगल) का विमोचन( सम्पादकः अशोक भाटिया)
View Articleनई पुस्तकें
हाइवे (लघुकथा संकलन) : शेफालिका श्रीवास्तव, प्रकाशन-अपना प्रकाशन, लघुकथा शोध केंद्र समिति, 54 / ए सेक्टर-सी, बंजारी, कोलार रोड, भोपाल-462042, संस्करण-प्रथम 2025, मूल्य 280 / -, पृष्ठ 102 –अनुत्तरित...
View Articleनैतिक मूल्यों को बचाए रखने की अपील करती लघुकथाएँ
वर्तमान में साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सशक्त विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है लघुकथा। अज्ञेय कहते है- “लघुकथा एक कोमल एवं एकांगी विधा है जिसमें संयमता, सूक्ष्मता, सहजता और संक्षिप्तता का...
View Articleलघुकथाएँ
1-उदयनारा लगाती और मुट्ठियाँ भांजती भीड़ अचानक ठिठककर रुक गई। कुछ ही दूरी पर बन्दूक संभाले सिपाहियों की कतारें थीं और उनका सरगना एक मैजिस्ट्रेट ध्वनि-विस्तारक यन्त्र के माध्यम से आगे न बढ़ने की...
View Articleलघुकथा-यात्रा की अशेष कथा
लघुकथा की यात्रा मानव-स्मृतियों, शब्द और भाषाओं के मानव परिचय- काल से है। लघुकथा मानव-ज्ञान की चिरसंगी रही है। लघुकथा मानवीय-कथ्य- शिल्प का मूल है। इसके चारों ओर ही कहानी, उपन्यास, निबंध और नाटक का...
View Articleसाधारण-असाधारण
स्कूल के बरामदे में रोहन एक बेंच पर बैठा है और कुछ सोच रहा है । रोहन बारहवीं का छात्र है । रमेश रोहन के पास आते हैं । रमेश पचास साल के हैं और स्कूल में चपरासी हैं । रमेश ने पूछा, “बेटा, क्या बात है?...
View Articleपढ़ेगा कौन?
“क्या बात है यार दीपिका, तू बहुत खुश नज़र आ रही है।” लिटरेचर फेस्टिवल खत्म होने के बाद कार से होटल लौट रही फिल्म अभिनेत्री एवं लेखिका दीपिका की सहेली प्रमिला ने उसके चेहरे पर खुशी के भाव देखकर...
View Articleचश्मे
बेबी लगातार रोए जा रही थी। हुआँऽऽ-हुआँऽऽऽ का स्वर धीरे-धीरे ऊँचा होता हुआ घर के सभी बंद दरवाजों वाले कमरों में घुस गया। …और फिर धड़ाधड़ सभी दरवाजे खुले… दरवाजों से निकले कई जोड़ी चश्मे। “क्या हो...
View Articleदृष्टि
पहले के जमाने में बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ होते ही ननिहाल जाना एक रिवाज़ -सा था। ननिहाल के संयुक्त परिवार में बहुत सारे सदस्य होते। ममेरे, मौसेरे बहन- भाई सब मिल धमाल मचाते। बड़े लोगों के हथाइयों...
View Articleसर!
महानगर के इतिहास में पहली बार जिलाधिकारी के पद पर महिला का चयन हुआ। बात खबरों की सुर्खियों में थी। मर्दों के बीच कुछ ज्यादा ही चर्चा का विषय भी। कुछ ही दिनों में आवश्यक कार्यवाही पूर्ण होते ही...
View Articleबंधन
आज नीरू बहुत ही खुश थी। पंख होते तो उड़कर घर पहुँच जाती।“कैसी हो नीरू?”नीरू के कदम आवाज़ सुनकर ठिठक गए। जैसी पीछे मुड़कर देखा तो ठगी-सी खड़ी रह गई। बस इतना ही बोल पाई,”ठीक हूँ प्रवेश। तुम यहाँ...
View Articleखानदानी
मेरी पत्नी चीखकर बात शुरु करती और शीघ्र ही आपा खो बैठती। कभी -कभार मुझे उसकी चीख जायज़ भी लगती। मैं महसूस करता हूँ, संयुक्त परिवार के प्रति मेरा मोह एक सीमा की माँग करता है, परन्तु मेरी पत्नी इस...
View Articleअपना- अपना धर्म
आसमान से बरसती चिलचिलाती धूप, पैरों तले जलती धरती, गुम हवा, गर्मी और प्यास से व्याकुल पसीने से तर-ब-तर पथिक ढूँढ रहा था जरा सी शीतल छाँह। लंबी सूखी सड़क अलसाये अजगर-सी बिछी पड़ी थी। पेड़ों का दूर-दूर...
View Articleज़हरीली हवा / বিষাক্ত হাওয়া / অর্চনা রায়
অনুবাদক : মুরলী চৌধুরী সন্ধ্যায় অফিস থেকে বেরিয়ে আর বাড়ি ফিরে যেতে মন চাইছিল না। কারণ, স্ত্রী মেয়ে পিহুকে নিয়ে বাপের বাড়ি গেছে, আর তাদের ছাড়া ফাঁকা বাড়ি যেন আমাকে গিলে খেতে চাইছে। চায়ের খুব...
View Articleश्याम सुन्दर अग्रवाल की लघुकथाओं की पड़ताल
हिन्दी–लघुकथा का उद्भव यदि हम मुंशी हसन अली की लघुकथाएँ से मानें , तो वर्तमान तक आते–आते लघुकथा लगभग 142 वर्ष की विकास–यात्रा तय कर चुकी है। जिसके विकास का दूसरा पड़ाव भारतेन्दु की लघुकथाएँ हैं,...
View Articleतुम बहरे क्यों हो गए हो?
लघुकथा सुनने के लिए निम्नलिखित लिंक को क्लिक कीजिए- तुम बहरे क्यों हो गए हो?
View Articleअलाव और चींटियाँ
मैंने एक गला हुआ लट्ठा, बगैर यह ध्यान किए कि इस पर जीवित चीटियाँ हैं, जलते अलाव में फेंक दिया।लट्ठा चटचटाने लगा, चीटियाँ हड़बड़ाकर निराशा से चारों तरफ दौड़ पड़ीं। वे ऊपर की ओर दौड़ीं, लेकिन लपटों से...
View Articleसियासत का सुर/ राजनीति की भौण
गढ़वाली अनुवाद: डॉ. कविता भट्ट कुर्सी माँ बैढ्याँ-बैठ्याँ राजनीति कुछ गुनगुनाणी है। “एकुली- एकुली यु क्य छै गुन गुनाणि, जरा मिथे बी त सुणौ !” कुर्सी न राजनीति तैं बोली । राजनीति मुल- मुल हैंसी अर...
View Articleगहन संवेदना की लघुकथाएँ
गोविन्द मूँदडा (संपादक) एवं अतिथि संपादक रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी के सम्पादन में आया ‘पुष्पांजलि’ का अंक बहुत ही प्रभावशाली बना है। अतिथि संपादक की कलम से सशक्त लघुकथा सृजन बारे लिखे शब्द- ‘‘वही...
View ArticleHoping for Heaven
Translated from the Original Hindi byKANWAR DINESH SINGH The horse carriage of Death started moving towards the designated place carrying the souls of soldiers of different creeds who had been...
View Articleएक –दो – तीन
यूरोपेयन महायुद्ध की बात है।बर्लिन-स्टेशन से मुसाफिरों से भरी रेलगाड़ी रेंगती हुई रवाना हुई । गाड़ी में औरतें, बच्चे, बूढ़े–सभी थे; पर कोई पूरा तन्दुरुस्त नज़र न आता था। एक डब्बे में, भूरे बालोंवाला...
View Articleलघुकथा में गढंत
‘कथादेश’ और ‘छत्तीसगढ़ फिल्म एन्ड विज़ुअल आर्ट सोसाइटी’ के संयुक्त तत्त्वावधान में कथा समाख्या के छठे आयोजन में 29 फरवरी से 2 मार्च तक ‘कहानी में गढंत’ विषय पर तीन सत्रों में गंभीर चर्चा और विमर्श...
View Articleकुप्रथाओं का प्रतिकार करतीं लघुकथाएँ
लघुकथा लेखन/संपादन के वर्तमान दौर में बहुत- सी सशक्त लघुकथाओं से गुजरा हूँ, उनमे से भी कुछ मेरी पसंद के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं,पर देश के वर्तमान राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए...
View Articleक्यों नहीं लड़ी
“बता सकते हो, कल मैं तुमसे क्यों नहीं लड़ी?” “अरे हाँ, कल तो मैंने तुम्हें मार्केट में डाँट दिया था, फिर भी घर लौटकर तुम लड़ी नहीं, ये तो कमाल ही हो गया! 26 साल के वैवाहिक जीवन में ऐसा कभी नहीं हुआ,...
View Articleमर्ज़
सात दिनों से दीनानाथ जी डॉक्टर के आदेशानुसार रोजाना अस्पताल आ रहे थे। दरअसल सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों पश्चात् ही दीनानाथ जी को कई व्याधियों ने आ घेरा। कभी दिल की धड़कन तेज हो जाती, तो कभी हाथ पैर ठंडे...
View Articleप्रतिरोध
कैबिन से निकलते हुए अभिनीत ने पूछा, “क्या आज घर नहीं जाना मिस प्रियंका?” थकी उलझी सी आवाज़ में प्रियंका बोली, “अरे जाना क्यों नहीं, बस इस फ़ाइल ने उलझा रखा है। कल सुबह मीटिंग है और यहाँ आँकड़े ही...
View Articleएक थी गुड्डी
घर-परिवार, आस-पड़ोसी सब उस पर गर्व करते। ‘गुड्डी’ थी ही इतनी होनहार और समझदार। एक उज्ज्वल भविष्य का सपना आँखों में लिए वह पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहती। वह भी अपनी बड़ी बहन से बहुत प्यार करता था। जब भी...
View Articleबेटी -विवाह
“बताइए शिवराज, बाबू, क्या आदेश है? आपने कहलवा भेजा तो मैं मिलने आ गया।” रंजीत सिंह ने मुस्कराते हुए पूछा। सुनते ही शिवराज बाबू की बाँछे खिल गईं। दिल के सारे अरमान जो उन्होंने अपने बेटे के विवाह के...
View Articleবিশ্বাস/विश्वास
মূল লেখক : সতীশরাজ পুষ্করণা, (অনুবাদ : সাংবাদিক মুরলি চৌধুরী) রাত তিনটে বাজে… সে অপেক্ষা করছিল স্বামীর জন্য… কিন্তু সে এখনও ফেরেনি। নিজের মনেই বলতে লাগল, “আজকাল তো দেখছি, ও ক’দিন ধরেই রাতভর বাইরে...
View Articleपानी और प्यास/पाणी आणि तहान
अनुवाद : वसुधा सहस्रबुद्धे. प्राचीन काळी पाणी आणि तहान एकमेकांसोबत राहायचे. अगदी छान हसत खेळत राहायचे। एक दिवस काय झालं कोणत्या तरी कारणाने तहानेला गर्व झाला. म्हणाली ,”मीच तुला सांभाळते...
View Articleलघुकथाएँ
1-गुनाहों का हिसाब जिस दिन का वह क़ब्र में पड़े-पड़े बरसों से इन्तज़ार कर रहा था आख़िर वह आ ही गया। मुर्दे जी उठे। लोगों से ठसाठस भरे मैदान में पॉल ने अपनी नज़रें दौड़ाईं। हर तरफ़ बस एक ही सवाल तैर...
View Articleनई पुस्तकें
1-बोझ हम उठाते हैं (लघुकथा संकलन) : संपादक-राम मूरत राही, प्रकाशन-अक्षरविन्यास, एफ 6 / 3, ऋषिनगर, उज्जैन। संस्करण-प्रथम 2025, मूल्य 299 / -, पृष्ठ 1042-एक थी गुड्डी (लघुकथा संकलन) : भारती शर्मा,...
View Articleसंवेदनाओं का डिजिटल गुलदस्ता
डॉ. सुषमा गुप्ता के बारे में मैं क्या ही कहूँ….अनेक पुरस्कार अपने नाम करने वाली सुषमा जी किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है। वह तो साहित्य जगत का जाना पहचाना नाम है। इनकी लेखन- शैली इन्हें समकालीन लेखकों...
View Articleऔक़ात
कृष्णानन्द ‘कृष्ण’ (वाचनः ॠतु कौशिक) की लघुकथा सुनने के लिए निम्नलिखित लिंक को क्लिक कीजिएगा- औक़ात
View Articleकथादेश पुरस्कृत लघुकथाएँ
‘कथादेश’ का साहित्य की विभिन्न विधाओं और अभिव्यक्ति के विविध रूपों के विकास में योगदान रहा है; लेकिन इस पत्रिका के माध्यम से ‘लघुकथा’ को व्यापक जनसमूह से जोड़ने की प्रक्रिया (अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा...
View Articleसीढ़ी
शेखर बाबू की पदोन्नति पिछले कई वर्षों से रुकी हुई थी। लेकिन एक दिन करिश्मा कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें सिर्फ पदोन्नति ही नहीं मिली, स्थिति पीड़ित होने के कारण लिफ्ट देकर आफिस सुपरिटेंडेंट भी बना दिया गया।...
View Articleतीसरा बेटा
घबराई हुई वृद्धा, हृदयाघात से कराहते, पसीने-पसीने होते पति को रिक्शे में डाल निजी चिकित्सालय में लाई। स्ट्रेचर लाए जाने में होते विलम्ब को देख दुःख की उस घड़ी में भी वह झल्ला पड़ी। जब रोगी को...
View Articleव्यथा-कथा
नगर-निगम का स्कूल रोज की तरह चल रहा था। एक दिन एक इंस्पेक्टर ने आकर कक्षाओं का मुआयना किया।चौथी कक्षा में जाकर उसने पूछा, “सर्दियों में कौन-से कपड़े पहनने चाहिए?”इस पर कुछ हाथ खड़े हुए, कुछ बुझी आँखें...
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Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh We received a wedding invitation from Hoshiarpur. It was decided to travel by Shan-e-Punjab. Winter had started knocking lightly, so I thought...
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