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Channel: लघुकथा
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सचेत

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  माया ने  बहुत पहले ही कहना शुरु कर दिया था,” आंटी मुझे पूरे एक महीने की छुट्टी चाहिए। मेरे भाई के बेटे की शादी है।कई बरसों से उसके पास गई ही नहीं। अब के शादी पर जाऊँगी तो रह कर भी आऊँगी। ” तभी से उसने तैयारियाँ शुरू कर दी थीं।मुझसे एक महीने की पगार अग्रिम ले ली । उसने बच्चों के कपड़े लत्ते बनवा लिये। मैंने भी शादी वाले दिन पहनने के लिये एक साड़ी दे दी। जैसे जैसे उसके जाने के दिन पास आते जा रहे थे, उसकी प्रसन्नता और उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

कल जब वह आई तो उसका चेहरा बुझा- बुझा सा था।काम में भी उसका मन नहीं लग रहा था। मैंने उसकी यह स्थिति देखी तो पूछ ही लिया, ” माया आज उदास लग रही हो, क्या बात है!” उसका मन तो भरा हुआ था ।मेरे पूछते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। उन्हें पोंछते हुए बोली, आँटी अब मैं शादी पर नहीं जा सकूँगी।”

” क्यों क्या बात हो गई है! ” मैंने चिंतित हो कर पूछा

वह बोली,” आंटी स्कूल वालों ने पहले तो बताया नहीं, अब छुट्टी के लिए पूछने गई तो टीचर बोली,उन दिनों में तो तेरे बच्चों के पेपर हैं।बताओ भला  आंटी मैं कैसे जा सकूँ हूँ। बच्चों के पेपर तो ज़रूरी हैं। साल भर मेहनत कर  के फ़ीस दी है,बच्चों को लेकर चली जाऊँगी तो वह अगली क्लास में कैसे जाएँगे।

मुझे उसके शादी पर न जाने का दुख भी हो रहा था और खुशी भी। माया को अपना नाम तक लिखना नहीं आता। पचास से ऊपर गिनती नहीं आती ;लेकिन वह अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति कितनी सचेत हैं। उनके भविष्य के लिए उसने शादी पर न जाने की सोच ली।

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