दस्तावेज
‘चोला’ लघुकथा का पाठ रमेश गौतम़ द्वारा बरेली गोष्ठी 89 में किया गया था। पढ़ी गई लघुकथाओं पर उपस्थित लघुकथा लेखकों द्वारा तत्काल समीक्षा की गई थी। पूरे कार्यक्रम की रिकार्डिग कर उसे ‘आयोजन’ (पुस्तक)के रूप में प्रकाशित किया गया था।लगभग 30 वर्ष बाद लघुकथा और उसपर विद्वान साथियों के विचार अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं-
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चोला
रमेश गौतम
महापालिका चुनावों पर जनसम्पर्क अभियान के तहत प्रत्याक्षीगण रोज ही घरों की कुन्डियाँ खटखटा रहे थे। उनके आश्वासनों का जादू सभी के सिर चढ़कर बोल रहा था। ऐसे ही एक दिन दरवाजा खोलते पत्नी की चीख ने मुझे चौंका दिया। हाथ में पकड़े ताजे अखबार को एक ओर फेंक मैं भागकर दरवाजे पर पहुँचा। पत्नी ने भयभीत स्वर में सामने खड़े सज्जन की ओर संकेत किया।
सामने पिछले वर्ष पड़ोस में घटे अपहरण-काण्ड का मुख्य अपराधी आधुनिक नेताओं की मुद्रा में धवल खादी के वस्त्रों को धारण किए हाथ जोड़े अपने अनेक साथियों के साथ खड़ा था। मैं स्वयं भी आश्चर्य और क्रोध से अवाक था। मेरी बदलती दृष्टि को ताड़ कर उसने पैंतरा बदलते हुए बड़ी विवश बेशर्मी से कहा, ‘‘भाई साहब, मैंने चोला बदल लिया है।’’ मैं चुपचाप पत्नी को साथ लेकर अन्दर आया और सोचने लगा कल के बारे में…….।
डॉ भगवानशरण भारद्वाज
रमेश गौतम ‘चोला’ में आज की राजनीति के बढ़ते हुए अपराधीकरण की झलक देते हैं।
डॉ. स्वर्ण किरण
रमेश गौतम की लघुकथा ‘चोला’ महापालिका चुनाव के प्रत्याशी की सफाई से हमें परिचित कराती है।
डॉ.सतीशराज पुष्करणा
रमेश गौतम की लघुकथा ‘चोला’ वर्तमान सन्दर्भों में नेताओं का सही एवं सटीक चित्रण प्रस्तुत करती है कि राजनीति आज शरीफों की चीज न होकर गुण्डों,बदमाशों का शगल हो गई है। यह लघुकथा कथानक के अनुरूप सुन्दर शिल्प का एक अच्छा उदाहरण है।
जगदीश कश्यप
रमेश गौतम की लघुकथा ‘चोला’ हमारे देश के राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य है।
डॉ. शंकर पुणतांबेकर
रमेश गौतम की लघुकथा ‘चोला’ प्रजातन्त्र की भयावहता तो जताती है। आज चोले बदलने, मुखौटे धारण करने का जमाना है और इसे अपनाने वाले ही हमारे ही कर्णधार है।
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