अस्तित्वबोध
नीता चार साल बाद एम.बी.ए. कर के, अच्छी नौकरी पाकर न्यूयार्क से वापस हाथरस अपने पहुँची थी। उसे देख कर पूरा घर उमड़ आया। बड़े भैया, भाभी, और छोटी गुड़िया सबसे आगे थे, पीछे से दोनों छॊटी बहनें खिली पड़ रहीं...
View Articleवज्रपात
( अनुवाद : सुकेश साहनी) तूफानी दिन था। एक औरत गिरजाघर में पादरी के सम्मुख आकर बोली, ‘‘मैं ईसाई नहीं हूँ, क्या मेरे लिए जीवन की नारकीय यातनाओं से मुक्ति का कोई मार्ग है?’’ पादरी ने उस औरत की ओर देखते...
View Articleलघुकथा-यात्रा के सभी सोपानों को पार करतीं लघुकथाएँ
आधुनिक लघुकथा का प्रारम्भ सातवें दशक से माना जाता है। इस विधा की प्रारम्भिक लघुकथाएँ आक्रोश से परिपूर्ण होती थीं, लघुकथाकार व्यंग्य पर जोर देता था और अधिकतर लघुकथाओं के अन्त मारक होते थे। उस समय के...
View Articleऔकात
राजू आज खुश था । खुश भी क्यों न हो? आज उसने अपने मालिक के लड़के की जान बचाई है। वरना लड़का खारून एनीकेट में डूबकर मर जाता। लोगों की भीड़ जुटने लगी थी उसके मालिक के यहाँ। लेकिन राजू व्यस्त था घर के कामों...
View Articleसोने की नसेनी
अभी परसों रात की ही तो बात है जब बड़ी बाई समझा रही थीं – पहले होत है लरका, फिर नाती। नाती सें लगो पन्ती और फिर पन्ती को बच्चा सन्ती। और ऐंसे जो अपनो सन्ती देख लेवे वा खों सीधो सरग मिलत…… सूधो परमात्मा...
View Articleपेंशनर
उसे रिटायर हुए कोई पांच महिने बीत गये थे. अभी तक पेंशन ग्रेच्युअटी आदि के नाम पर उसे एक धेला भी नहीं मिला था. अब तक की गई छोटी-मोटी बचत भी घर खर्च में काम आ गई थी. इधर बेटी की शादी तय हो गई वह अलग. उसे...
View Articleअतिरंजना और फैंटेसी में लिपटा क्रूर सामाजिक सत्य
सुकेश साहनी कई दशकों से हिन्दी लघुकथा साहित्य के परिवर्द्धन में सक्रिय हैं। उनकी रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित और चर्चित रही हैं। सुकेश का लेखकीय व्यक्तित्व अपने समशील रचनाकारों की तरह यथार्थ की पकड़ और...
View Articleमाटी कहे……
माटी कहे…… आज चम्पा की ड्यूटी कॉटेज वार्ड में थी । एक-एक कॉटेज झाड़ती बुहारती चम्पा नं. आठ तक आई । दरवाज़ा खुला था । वह झाडू़ घसीटती कमरे के पार तक चली गई। ‘ठैर…ठैर तो सही‘ सफे़द बुर्राक कपडे़ पहने बूढ़ी...
View Articleबादशाह
‘ऐ ताँगे वाले! ताँगा खाली है क्या ? ‘ ‘कहाँ जाना है आपको ?‘ ‘मदनगंज…., ‘नीम गंज की सवारी है बीबी जी, वह…सामने पान की दुकान पर……..‘ तो पुलिया तक ही छोड़ देना । क्या लोगे ? ‘साठ पैसे‘ असमंजस में पड़ गयी वह...
View Articleदर्पण के अक्स
पत्नी अपने बच्चों में गुम हो गई । बच्चे अपने-अपने परिवारों में । रह गया वह । दिन भर जी तोड़ मेहनत से व्यवसाय सम्भालता । शामें-रातें सूनी हो गईं । अकेलेपन की बेकली को दूर करने के लिये उसने कम्प्यूटर की...
View Articleबिम्ब-प्रतिबिम्ब
बिम्ब-प्रतिबिम्ब सड़क पर भीड़ चारों तरफ़ घिर आई । एक आदमी बुरी तरह रोये जा रहा था । पुलिस वाला एक छोकरे को गाली बकता पीट रहा था । ‘साले, कमीने, बित्ता भर का छोकरा, जेब काटता है । निकाल पैसे‘ ‘मेरे पास...
View Articleडूबते किनारे
डूबते किनारे ‘कच्चों‘ का ‘पेमेन्ट‘ चल रहा था । बिशन सिंह, रूप चन्द, रामलाल…….. देर तक उत्तर नहीं आया । ‘अरे, राम लोेल ? ‘हाँ साब‘ ‘मुँह में दही जमा रखा है क्या ? कब से है तू ?‘ ‘एक महीने से साब‘ ‘कहाँ...
View Articleलघुकथाओं की लोकप्रियता
साहित्य की विविध विधाओं में लघुकथा का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरअसल लघु कलेवर में भावों, मुद्दों, संवेदनाओं और संबंधों के अथाह सागर को सँजोए रखने के कारण आज लघुकथाओं की लोकप्रियता बढ़ गई है। आज...
View Articleचौबीसवाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन
चौबीसवाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन 25 अक्टूबर को कोटकपूरा (पंजाब) में।
View Articleविभाजक
“आदाब सर !” थाना प्रभारी ने सर उठाकर देखा ,सामने कासिम खड़ा है । “आदाब !……कहो, कैसे आना हुआ कासिम ?” “बस यूँ ही !….इधर से गुज़र रहा था , सोचा आपसे मुलाक़ात करता जाऊँ !” “सब खैरियत तो है न ?” “जी सर...
View Articleदुम
दस हजार जेब में डालते ही गिरवर को ठर्रे की दो बोतलों का नशा चढ़ गया। दस हजार सिर्फ़ एडवांस के थे। हड़ताल न हुई तो बीस हजार और मिलेंगे। वाह रे गिरवर! शहर आकर तू सचमुच समझदार हो गया है। वह स्वयं पर खुश हो...
View Articleअम्मा की छड़ी
उम्रदराज़ लोगों की अक्सर आदतें पक्की हो जाती हैं। आखिर बुजुर्ग चाहते क्या हैं– दवा, दारू और सेवा। तो जनाब अगर कोई सरकारी नौकर या उसकी पत्नी अथवा विधवा है ,तो दवा सरकार मुफ्त में दे ही देती है। दारू...
View Articleदरार
सुशीला एक वर्ष तक मायके रहकर ससुराल लौटी थी। सास–ननद के ताने, पति की उपेक्षा मार डालने की धमकियाँ – इन सबने उसे मायके में जीने को बाध्य कर दिया था। नौकरी न कर रही होती तो न जाने उसका क्या हाल होता!...
View Article24 वाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन
24 वाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन ,25 अक्तुबर -2015 को कोटकपूरा में
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