‘पड़ाव और पड़ताल’ के 20वें खण्ड में चर्चित लघुकथा लेखक कमल चोपड़ा की छियासठ लघुकथाएँ और उनपर आलोचनात्मक लेख क्रमशः डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, प्रो. बी. एल. आच्छा, डॉ. गुर्रम कोंडा नीरजा और डॉ. वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज ने लिखे हैं । आलेखों को पढ़ने पर संतोष हुआ कि प्रायः सभी लोगों ने कमल की लघुकथाओं के साथ न्याय किया है। इन चारों आलोचकों में डॉ. गुर्रम कोंडा नीरजा नाम मेरे लिए नया ज़रूर है ;किन्तु इनकी लेखनी अनुभवजन्य है, साथ ही इनके कहने का ढंग सर्वथा भिन्न है। डॉ. पुरुषोत्तम दुबे से जितने गंभीर आलेख की आशा थी, शायद नहीं हो पाया । कहीं-कहीं ऐसा भी लगा कि वे जो कहना चाहते थे नाम के प्रभाव में आकर शायद नहीं कह पाए कह देते तो इस विधा की आलोचना के साथ न्याय हो जाता। प्रो. बी. एल. आच्छा एक अच्छे लघुकथा लेखक होने के साथ-साथ इनकी आलोचना प्रतिभा से भी इंकार नहीं किया जा सकता । इन्होंने प्रायः लघुकथाओं के साथ न्याय किया है। डॉ. वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज लघुकथा-आलोचना में इन सबसे नए हैं ;किन्तु इनका लेख ऐसा बताता है लघुकथा-लेखक की तरह ही इस विधा में वे प्रौढ़ हैं। इनका लेख एकदम बिना लाम-काम टू दि प्वाइंट है। बिना नमा एवं प्रभा मंडल की परवाह किये बिना उसे जो कहना था, कहा सहमति-असहमति अपनी जगह है। उसका लेख बताता है उसने पूरी ईमानदारी एवं गंभीरता से इस लेख को लिखा है। भारद्वाज की इस टिप्पणी से सहमति बनती है कि कतिपय लघुकथाओं में क्षिप्रता, सुष्ठुता कसावट का अभाव है।
कमल की अधिकतार लघुकथाएँ पहले से ही चर्चा में रही हैं। कमल की लघुकथाओं में वर्तमान एवं तत्काल भी ध्ड़कने स्पष्ट सुनाई देती है। कमल की लघुकथाएँ एक निश्चित फॉरमेट में ढली लघुकथाएँ हैं, उसका करण चली कलम है, इससे क्या हुआ है कि कहीं-कहीं उनकी स्वाभाविकता नष्ट हो गई है। मैं कहना यह चाहता हूँ कमल एक सचेष्ट एवं सतर्क लघुकथाकार हैं। इनकी लघुकथाओं में एक भी अक्षर और विराम चिह्न तक उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं आ पाए हैं। इनकी लघुकथाओं के शीर्षक प्रायः अपना औचित्य सिद्ध करते हैं ।
कमल की लघुकथा-यात्रा, यह उसका अपना निजी लेख है, जो उनके योगदान को भी रेखांकित करता है, इससे भविष्य में लघुकथा इतिहास लिखने वालों को सुविधा होगी । इस संग्रह के अंत में कमल का एक लेख है- ‘लघुकथा: संश्लिष्ट सृजन-प्रक्रिया’ जो 1988 में समीचीन पत्रिका के लघुकथा विशेषांक में प्रकाशित हुआ था । निःसंदेह कमल ने इसमें पर्याप्त श्रम किया है, यह लेख तब भी प्रासंगिक था आज भी है, थोड़ा-बहुत बदलाव संभव है, जो बढ़ते वक्त के साथ हरेक लेख में संभव हो जाता है।
इस खंड के संपादक चर्चित लघुकथा-लेखक मधुदीप हैं। जिन्होंने अपने संपादकीय में ठीक ही लिखा है कि कमल की लघुकथाएँ आमजन के बहुत नज़दीक हैं और वे निम्न वर्ग की त्रासदी को बखूबी पहचानते हैं और उनकी व्यथा को भी लिखते हैं । ‘पड़ाव और पड़ताल’ शृंखला का प्रकाशन कर मधुदीप ने अब तक अद्वितीय कार्य किया है। भविष्य में लघुकथा पर कोई भी ईमानदारी से किया जाने वाला कार्य इस पूरी शृंखला देखे बिना शायद संभव नहीं हो पायेगा ।मधुदीप से लघुकथा को अभी और बहुत अपेक्षाएँ हैं और कमल से भी कुछ कम अपेक्षाएँ नहीं है ।
डॉ. सतीशराज पुष्करणा, बिहार सेवक प्रेस,‘लघुकथानगर’, महेन्द्रू, पटना-800 006
मो.: 08298443663, 09006429311,07295962235, 09431264674
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पुस्तक: पड़ाव और पड़ताल, खण्ड-20 ;कमल चोपड़ा की 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल, संपादक: मधुदीप, प्रकाशकः दिशा प्रकाशन, 138/16, त्रिनगर, दिल्ली-110035, संस्करण: 2016, पृष्ठ 272, मूल्य: रु. 500