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Channel: लघुकथा
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आत्मिक बन्धन

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लगभग पूरे उत्तर एवं पूर्व भारत में ऐसी शीतलहर चल रही थी कि नगरों में जगह-जगह अलाव जलते दिखाई देने लगे । हाड़ कँपानेवाले मौसम में योगेश्वर बाबू और उनकी पत्नी…इस बुढ़ापे को कोस रहे थे । सर्दी और बुढ़ापे में जैसे छत्तीस का सम्बन्ध है | उस पर गरीबी…जलते में घी का काम कर रही थी | घर में ये दोनों ही थे | सब बच्चे अपनी-अपनी दुनिया में अलग रह रहे थे|

राज जैसे-जैसे गहराती जा रही थी, ठण्ड की ठिठुरन वैसे-वैसे बढ़ती जा रही थी | दोनों पति-पत्नी अलग-अलग अपनी-अपनी सोच रहे थे कि एक-एक रजाई के अतिरिक्त एक ही कम्बल फ़ालतू है | किन्तु इस कारण सर्दी में इसे फ़ालतू तो नहीं कहा जा सकता, बल्कि एक कम्बल की और आवश्यकता है | ऐसे में क्या किया जाए ? दोनों में से कोई एक व्यक्ति ही उस कम्बल का उपयोग कर सकता है, दूसरे को बर्दाश्त करना होगा |

पत्नी के दिल में भारतीय नारी का दायित्व जाग उठा, सो उसने वह कम्बल पति की रजाई के ऊपर ओढ़ा दिया | पति ने कहा, “अरी भाग्यवान् ! यह क्या कर रही हो ? मुझे इतने बोझ के नीचे दबाकर मार डालोगी क्या? तुम औरत हो | तुम्हारा शरीर कमजोर है, तुम अपने ऊपर ओढ़ लो |”

“आप तो बस यों ही चिल्लाते रहते हो | चुपचाप लेटे रहो | सर्दी लग गई तो…आफत तो मेरी जान को ही होगी न !”

“तुम बात को समझती क्यों नहीं ?”

“कहा ना, चुपचाप पड़े रहो…बुढ़ापे में कुछ ज्यादा बोलने लगे हो|”

योगेश्वर बाबू ने समझ लिया कि जिद्दी पत्नी नहीं मानेगी…स्वयं में वह बर्दाश्त कर सकती है, उन्हें कष्ट हो …यह श्रीमतीजी को बर्दाश्त नहीं| पत्नी के स्नेह पर उन्हें गर्व हो आया| और वह यह कहते हुए, “जैसी तुम्हारी इच्छा…चुपचाप लेटे रहे|

पत्नी इत्मीनान से अपने बिछावन में उकडूँ होकर लेट गई…और कुछ देर में सो भी गई| पति का पौरुष जागा और वह धीरे-से उठे, और अपनी रजाई से कम्बल उतारकर बहुत ही धीरे-से पत्नी के ऊपर ओदा दिया| अब पत्नी का चेहरा देखकर उन्हें संतोष हुआ कि अब उसे जाड़ा नहीं लग रहा है और स्वयं पुनः अपने बिछावन पर आकर सो गए|

सुबह जब आँख खुली, तो देखा..कम्बल पुनाही उनकी रजाई के ऊपर था |

 -0-     डॉ.सतीशराज पुष्करणा,  House no 804, निकट सन्डे बाज़ार,                                गत्ता फैक्ट्री के सामने, शमशान वाली गली,  बिजवासन, नई दिल्ली-११००६१,

                                         Mo : 8298443663

 

 


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