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Channel: लघुकथा
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बिम्ब-प्रतिबिम्ब

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बिम्ब-प्रतिबिम्ब
सड़क पर भीड़ चारों तरफ़ घिर आई । एक आदमी बुरी तरह रोये जा रहा था । पुलिस वाला एक छोकरे को गाली बकता पीट रहा था ।
‘साले, कमीने, बित्ता भर का छोकरा, जेब काटता है । निकाल पैसे‘
‘मेरे पास नहीं हैं उल्टे हाथ से मुँह के झाग व ख़ून पोंछता छोकरा बोला।
‘तलाशी लो तलाशी‘ भीड़ से कोई चिल्लाया । थप्पड़ों-घूँसों के साथ तलाशी हुई, पर कुछ न निकला । आदमी सिर पीट कर और भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा । ‘हाय सत्यानाश हो इसका, इसी ने निकाले थे पैसे । अब मेरी मेहरूआ मर जायेगी । दवा-इलाज के पैसे कहाँ से आयेंगे ?‘
किसी को दया आ गयी तो राय दी ‘अरे ! दो-दो चार-चार रुपये सब कोई डालो, ग़रीब का भला हो जायेगा । पुन्न का काम होगा । और, सिपाही जी इस कमीने को थाने में बंद कर दो इसी वक़्त‘
मिनट भर में रेज़गारी ही रेज़गारी आदमी के सामने इकट्ठी हो गयी । उसने पैसे समेट कर सभी को दुआ दी ।
सिपाही छोकरे को धकियाता थाने ले चला । भीड़ कुछ दूर तक साथ चली फिर धीरे-धीरे एक-एक करके सब अपनी-अपनी राह हो लिये ।
थोड़ी देर बाद एक सूनी गली में सिपाही, छोकरा और आदमी मिले पैसों का हिस्सा बाँट कर रहे थे ।
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