‘प्रोफेसर साहब,जल्दी ही मेडिकल-काउंसिल की इंस्पैक्शन होने वाली है। आपके विभाग में मरीजों की संख्या काफी कमहै।कालेजकाउंसिलके स्टैंडर्ड पर खरा नहीं उतरा ,तो मान्यता रद्द होजायेगी। हम सबका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।’ विभाग प्रमुख से कालेज के डीन ने कहा।
‘जी सर,लेकिन करें क्या?मैडीकल-कैंप भी लगवाये, पर खास लाभ नहीं हुआ।अब मरीजसमझदार हो गया है, स्टूडैंट्स से इलाज नहीं करवानाचाहता।’
‘तो इलाज डॉक्टर्स से करवाइए।’
‘डॉक्टर स्ट्रैंथ तो पहले ही कम है, वे भी इलाज में लगे रहेंगे तो स्टूडैंट्स को पढ़ाएगा कौन?’
‘फिर क्या हल है?’
‘कालेज मैनेजमैंट से कहिए, नए डाक्टर भर्ती करें। अच्छे डाक्टर होंगे तो ही मरीज आएँगे।
‘लेकिन इससे तो बजट बिगड़ जाएगा।’
‘बजट बढ़ाने के लिए स्टूडेंट्स पर नए चार्जिज लगाएँ। आखिर सब उन्ही के भविष्य के लिए ही तो कररहे हैं।’
‘आपकी बात मैनेजमैंट तक पहुँचा दूँगा। फिर भी मरीज बढ़ाने का कोई और उपाय?’
‘रोजाना पाँच-सात फर्जी मरीज दाखिल हुए दिखा देते हैं। इसी तरह कागजों में बैड भर देते हैं। काउंसिल को सत्तर परसेंट बैड-आकुपेंसी ही तो चाहिए।’
‘इंस्पैक्शन के वक्त क्या करेंगे?’
‘तब मज़दूरों, भिखारियों, रिक्शावालों को दिहाड़ी पर लाकर लेटा देंगे।’ प्रोफैसर ने मुस्कराते हुए कहा।
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