– वर्चुअल रैली( लघुकथा संग्रह)-सुरेश सौरभ, मूल्य -160/-(पेपर बैक),250/-(हार्ड बाउण्ड)
संस्करण-2021,पृष्ठ-104,प्रकाशन- इन्डिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा-201301
इकहत्तर लघुकथाओं का संग्रह वर्चुअल रैली सुरेश सौरभ को सबसे पहले बहुत साधुवाद कि यह किताब उन्होंने उन “कोरोना के शहीदों” को समर्पित की है, जिनकी मृत देह तक सम्मान न पा सकी उन्हें सम्मान देने से ज्यादा बड़ा काम क्या ही होगा। इससे ज़्यादा कठिन और क्रूर समय मानव अपने जीवन में क्या ही देख पायेगा।
अब बात करते हैं सुरेश सौरभ जी लघुकथाओं की, तो उन्होंने खुद ही अपनी “छोटी तहरीर” में कहा है कि “हर लघुकथाकार की यह कोशिश रहती है कि वह बड़ी से बड़ी बात को कम से कम शब्दों में इस तरह सजा कर कह जाये कि पाठक के मुँह से अनायास ही निकल पड़े अरे वाह…क्या बात है…।”
उनकी प्रत्येक लघुकथा में “अरे वाह… क्या बात है” जैसे अंत तो हैं ,परन्तु उनकी धार उतनी तीक्ष्ण नहीं जितनी कि होनी चाहिए। फिर भी वह अपनी लघुकथाओं में बहुत कुछ कह पाये है इसके लिए उन्हें पाठकों की सदाशयता अवश्य प्राप्त होगी।
सुरेश जी ने अपनी लघुकथाओं में बोलचाल की भाषा को स्थान दिया है इस कारण सामान्य पाठक वर्ग इनको सिर आँखों पर लेगा इसमें सन्देह नहीं।
वाक्य-विन्यास सरल है और आम व्यक्ति की रोजमर्रा की घटनाओं से जुड़े हुए हैं जिससे कि पाठकों को सुरेश जी के लिखे में तनिक भी कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। यही इस किताब की सबसे बड़ी सफलता मानी जानी चाहिए।
लघुकथा संग्रह की शीर्षक कथा ‘वर्चुअल रैली’ अनुक्रम में सातवें नम्बर पर है जिसमें कि “कोरोना के कारण मजदूरी न मिलने से नायक दुःखी बैठा है बेटा वर्चुअल रैली के बारे में बार बार पूछता है वर्चुअल रैली के कारण मजदूरी न मिलने से परेशान पिता बेटे की पिटाई लगा देता है बच्चे की माँ जब गुस्से से पति की डाँट लगाती है तो वह गुस्से में भरकर कहता है कि उसने बेटे को नहीं वर्चुअल रैली को चाँटा मारा है।”
इसी प्रकार लघुकथा एक हाथी की चिट्ठी भी सम्वेदनशील बन पड़ी है । संग्रह की इकहत्तर लघुकथाएँ एक ही बैठक में पढ़ी जा सकती हैं। लगभग सभी कथाएँअपने में क्षमतावान बन पड़ी हैं।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से घटनाएं उठाकर लघुकथाएँ बुनी गई हैं।
बुनावट बहुत गझिन न सही परंतु आसपास के वातावरण में व्याप्त नकारात्मकता को लेखक का मन कितनी करुणा से भर जाता है जिसके लिए कि उसे कलम का हथियार उठाना पड़ा यह देखना तो बनता ही है। संग्रह की लघुकथाएँ पाठक स्वयं पढ़कर निर्णय करेंगे तो अच्छा होगा…।
सुरेश सौरभ जी उत्तरोत्तर नित नया सृजन करें मेरी उनके लिए बहुत सारी शुभकामनाएँ हैं।