“धनिया पति हरिराम प्रजापति , तुमने थाने में रिपोर्ट लिखाई थी अपने बेटे के गुम हो जाने की ?”आज थानेदार दल बल सहित धनिया के झोपड़े के बाहर खड़ा था ।
“मालिक ! दुई बरस हुए रपट लिखाय रहे , मगर कोनउ खबर नाही इब तलक ।”
“जितना पूछा जाय उतना जवाब दो ।”
“जी मालिक लिखाय रहे ।”
“कहाँ घूमा था …. ढूँढवाए थे ?”
“हओ मालिक, ऊ पलासिया पर मेला दिखान वास्ते ले गए रहल वहीँ बिछड़ गएल हमार कुरमई , बहुत खोजे मालिक … मगर नाही मिलब ।” कहते हुए धनिया छलक आये आँसुओं को धोती की किनोर से पोंछते हुए बोली,
“मगर… मालिक दुई बरस बाद …आ..प , का कोनउ खबर …हमार कुरमई की ?”
“कहा न जितना पूछे उसका जवाब दो , क्या उम्र थी तब उसकी ?”
“अं… उ.. इही कोई दुई बरस ।”
“कोई पहचान ?’
“पहचान ..! (स्मृतियों पर जोर डालते हुए बोली धनिया) मालिक हमार कुरमई की आँख भूरी रहिन , छंगा रहा हमार बचुआ ,…अउर हाँ मालिक, उ दिन मेले में हम उका हाथ में अइस तिरसूल गुदवाय रहे ।” धनिया ने अपनी गोद के बच्चे का हाथ आगे करते हुए बताया ।’
“क्या अब पहचान सकती है अपने बच्चे को ?”
“मालिक एक माई अपने कोख़जने को न पहचाने , भला एसन हो सके ।” इंस्पेक्टर ने हवालदार को कार की ओर इशारा किया , सूट –बूट पहने एक साहब अपनी मेम साहब के साथ कार से उतरे , उनकी गोद में चार साल का महँगा सूट – बूट पहने एक गबरू बच्चा था ।
“ई कउन बाबू लोग हैं मालिक ?” धनिया गौर से देखते हुए बोली ।
ये बैंक मेनेजर गुप्ता जी हैं ये उनकी पत्नी हैं , इस बच्चे को देखकर बताओ की क्या तुम्हारा बच्चा ऐसा दिखता था ?” इंस्पेक्टर ने बच्चे की ओर इशारा करते हुए कहा । धनिया ने गोदी के बच्चे को नीचे उतार उस बच्चे को गोद में ले लिया ।
‘वैसन बिल्लोरी आँखें , हाथ में ऊ ही तिरसूल का निसान , प्यार से सहलाते हुए उसके हाथ बच्चे की हथेली पर टिक गये, दुई अन्ग्ल्या भी , धनिया की पकड़ बच्चे पर मजबूत होती जा रही थी । कितना सुंदर दिखल लाग्य्ल हो हमार बिटवा ,इहाँ आधे पेट रह रंग भी मंदा पड गयल रहा । अब मालिक लोगन के पोसन से कैसन निखर आया है बबुआ । बहुत भाग वारा है रे कुरमई जोन साहब लोगन के बीच पल रहा है । मन ही मन बच्चे की नजर उतार रही थी धनिया । अचानक धनिया की नजरें साहब और मेम साहब से टकराई, दोनों की आँखों में एक डर देखा धनिया ने …उसके फैंसले का डर । तभी इंस्पेक्टर ने लगभग चिल्लाते हुए बच्चे को अपनी गोद में ले लिया ।
“क्या देख रही है जल्दी फैसला दे ।”
“अं ..नाही… नाही मालिक, ई हमार बचुवा नाही , हमार कुरमई तो एकदम कठियाया रहा , उकी तो रंगत भी दबी रही मालिक …इ..इ हमार बचुआ नाही ।” कहते हुए धनिया ने अपने गोद के बच्चे को उठा जोर से सीने से भींच लिया।
डॉ. लता अग्रवाल , 30 सीनियर एम् आई जी, अप्सरा काम्प्लेक्स , इन्द्रपुरी, भेल क्षेत्र, भोपाल-462022