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Channel: लघुकथा
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जानवर

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सूनी गली में आठ–दस हथियारबंद दंगाइयों ने उसे घेर लिया –

‘‘बता, तू हिंदू है?’’

‘‘नाहीं तो।’’

‘‘मुसलमान?’’

‘‘नाहीं।’’

‘‘तो फिर ईसाई होगा!’’

‘‘नाहीं, नाहीं।’’

‘‘सरदार है क्या?’’

‘‘नाहीं बाबू।’’

‘‘तो तू है क्या?’’

‘‘हमका नाहीं मालूम।’’

‘‘तुझे मालम ही नहीं कि तू क्या है?’’

‘‘ऐ बाबू लोग, हम तो रेलगाड़ी पर पैदा हुआ। टीसन पर भीख माँग कर खाया। हम को तो कोई अब तलक बतैबे नाहीं किया कि हम हैं का? और कोई जरूरत तो नाहीं था उसका, सो….’’

सब हँसने लगे।

दंगाइयों का लीडर बोला, ‘‘इसका क्या मारना, यार यह तो आदमी ही नहीं है। जिसका कोई मज़हब नहीं, वह तो जानवर है जानवर।….लगा साले को चूतर पर और भगा यहाँ से।’’

और एक ज़ोरदार लात खाकर वह सरपट भाग खड़ा हुआ।

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