Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

कलंक-मुक्ति

$
0
0

 उस अकेली माँ का किशोर बेटा कहीं चला गया। आसपास के शुभचिंतक घर पर आने लगे और अकेली मां को धैर्य बँधाने लगे। किसी ने समझाया, ‘‘लगता है, रूठकर कर कहीं चला गया है। जल्दी ही लौट आएगा।’’ दूसरे ने कहा,‘‘यार-दोस्त  के साथ मटर-गश्ती कर रहा होगा। मन भर जाएगा तो खुद ही आ जाएगा।’’

तीसरे ने अपहरण की आशंका जता दी। मगर एक अन्य महानुभाव ने जो डर बताया, उसे सुनकर सभी के रोंगटे खड़े हो गए। उसने कहा, ‘‘इस क्षेत्र में आतंकवादी सक्रिय हैं। लगता है, वह उनके साथ चला गया।’’

मगर इन तमाम तरह की आशंकाओं के परे मां बस इतना ही चाहती थी कि उसका अकेला सहारा बस लौट आए। कई दिन निकल गए। मगर वह किशोर लौट कर नहीं आया।

कुछ दिन बीते तो पहली आशंका कि वह रूठा होगा, निर्मूल हो गई। कुछ और दिन निकलने पर इस बात की संभावना भी खत्म हो गई कि वह यार-दोस्तों के साथ होगा। आखिर कोई अपनी मां को कितने दिन तक भूला रह सकता है।

दस-ग्यारह दिन बीत जाने के बाद अपहरण की तीसरी आशंका भी खत्म हुई, क्योंकि अब तक फिरौती की रकम की मांग कहीं से नहीं आई थी।

अब तो सब यही मानने लगे कि वह आतंकवादी हो गया। मगर माँ चुप रही।

एक दिन थाने से खबर आई कि कुछ आतंकवादी पकड़े गए हैं। किसी ने उस मां से कहा, ‘‘थाने जाओ। शायद तुम्हारा बेटा वहीं मिल जाए। कम-से-कम बेटे को देख तो आओ। छुड़ाने की आगे सोचेंगे।’’

आशावान मां थाने गई। जब वह वहां से लौटकर आई तो वह काफी निश्चिन्त और खुश दिखाई दी। सभी ने यही समझा कि उसका बेटा मिल गया। एक हितैषी पड़ोसी ने पूछा, ‘‘खैर, बेटा मिल गया न ?’’

मां ने जवाब दिया, ‘‘एक मां की कोख कलंग से बच गई।’’

पड़ोसी ने पूछा, ‘‘क्या मतलब ?’’

माँ ने कहा, ‘‘मेरा बेटा नहीं मिला। वह थाने में नहीं था। मगर मुझे इसका दुख नहीं।’’

पड़ोसी ने पूछा, ‘‘क्यों ?’’

माँ ने जवाब दिया, ‘‘वह आतंकवादी नहीं निकला।’’

-0-ज्ञानदेव मुकेश,फ्लैट संख्या-102, ई-ब्लॉक,प्यारा घराना कम्प्लेक्स,चंदौती मोड़,गया-823001 (बिहार)


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>