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Channel: लघुकथा
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संवेदना

जनवरी का महीना था । कड़ाके की सर्दी से खून नसों में जमा जा रहा था  । न्यू ऑफिसर कॉलोनी के बड़े से गेट के पास बनी पोस्ट में ड्यूटी पर तैनात  कांस्टेबल बीच-बीच में उठकर गश्त लगा आता। रात गहरा रही थी और...

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एक बड़ा सवाल

  स्कूल में मध्यांतर हुआ ।सब बच्चे अपने अपने टिफिन बॉक्स लेकर मैदान में जमा थे।रीना बड़े चाव से दादी के हाथ के बने आलू के पराठे खा रही थी।उसकी सहेली कुहू टिफिन खोल कर चुपचाप बैठी थी । “कुहू जल्दी से...

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पहचान

उसका चेहरा एक साथ कई लोगों से मिलता-जुलता था जिसकी वजह से वह कई लोगों को कई दूसरे लोगों की याद दिलाता था । उसकी पहचान भी अजीब थी । दक्षिण वाले उसे बंगाली समझते थे । बंगाल वाले उसे तमिल मानते थे ।...

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पारस दासोत की लघुकथाओं में स्त्री

  समूचे प्राणिजगत में दो गुण मूल रूप से पाए जाते हैं—जीवन-रक्षा और जाति-रक्षा। जहाँ तक मनुष्य की बात है, जीवन-रक्षा के लिए वह एक स्थान को छोड़कर किसी भी अन्य स्थान तक जा सकता है, भक्ष्य-अभक्ष्य कुछ भी...

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*इल्यूमिनाटी उवाच

  अत्यन्त धनी आदमी, पहली बार आलू खरीदने के लिए सब्जी मंडी पहुँचा। एक किलो खरीदने थे पर उसे आलू इतने पसंद आए कि बोल पड़ा- क्यों भाई, हम ये सारे आलू खरीद लें तो? ”बहुत अच्छा होगा साबजी। पूरे छब्बीस किलो...

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रामकुमार आत्रेय की पुरस्कृत लघुकथा ‘एकलव्यकी विडम्बना’ पर स्ट्रीट प्ले

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र श्री योगेश कुमार ने कथादेश मासिक के अप्रैल 2016 में प्रकाशित श्री रामकुमार आत्रेय की पुरस्कृत लघुकथा ‘एकलव्य की विडम्बना’ को इलाहबाद की गलियों में स्ट्रीट प्ले के रूप...

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कलंक-मुक्ति

 उस अकेली माँ का किशोर बेटा कहीं चला गया। आसपास के शुभचिंतक घर पर आने लगे और अकेली मां को धैर्य बँधाने लगे। किसी ने समझाया, ‘‘लगता है, रूठकर कर कहीं चला गया है। जल्दी ही लौट आएगा।’’ दूसरे ने...

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समझदार

“मंजरी बहुत समझदार है, वो इस बार भी इनकार ना करेगीI” सासू माँ ने उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा , लेकिन आज यह समझदार शब्द हथौड़े की तरह उसके मन मस्तिष्क पर चोट कर गया और उसकी उँगली पकड़कर अतीत की...

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लघुकथाएँ

1-करवाचौथ का कड़वा सच अगले दिन की छुट्टी का आवेदन पत्र बॉस के सामने रखते हुए महिला कर्मचारी ने कारण स्पष्ट किया कि कल करवा चौथ है, वर्ष में एक ही ऐसा दिन है जब पति के साथ पूरे दिन रहने की इच्छा रहती...

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गुलामी

(अनुवाद : सुकेश साहनी) राजसिंहासन पर सो रही बूढ़ी रानी को चार दास खड़े पंखा झल रहे थे और वह मस्त खर्राटे ले रही थी। रानी की गोद में एक बिल्ली बैठी घुरघुरा रही थी और उनींदी आँखों से गुलामों की ओर टकटकी...

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लड़ाई

(अनुवाद -सुकेश साहनी) उस रात महल में दावत थी। तभी एक आदमी वहाँ आया और राजा के सम्मुख दण्डवत् हो गया। दावत में उपस्थित सभी लोग उसकी ओर देखने लगे––उसकी एक आँख फूटी हुई थी और रिक्त स्थान से खून बह रहा था।...

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डॉ.उपेन्द्र प्रसाद राय की लघुकथाएँ

1-एक गरम रात कम्बल लेकर जब वह बूढ़ा चला तो उसे लगा कि उसके हाथों में एक स्वर्ग है। वह बुदबुदा रहा था, ‘‘हे भगवान, हमरा औरदा भी लग जाये सेठ के उस बच्चे को जो धरती पर आते ही कम्बल बँटवाया गरीबों में….....

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शह-मात

मधु ने इकलौते बेटे की शादी को लेकर बहुत सपने सजाये थे। धूमधाम से शादी करके वह समाज में सबको अपनी समृद्धि से परिचित कराना चाहती थी। अपनी पसंद की व अपने रुतबे की बहू लाने के उसके अरमानों पर तब तुषारापात...

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अमृतसर में 23 अक्तुबर को लघुकथा सम्मेलन

 अमृतसर  में  23 अक्तुबर को लघुकथा सम्मेलन ।

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एंजॉयमेंट

“यार, अगली किट्टी किस के घर में है।” “मिसेज शर्मा के घर में है, परन्‍तु हम अगली किट्टी हम नहीं कर सकते हैं।“ ‘क्‍यों……..?” “अरे, तू भी कमाल करती है। तुझे नहीं पता कि हमारी किट्टी मेम्‍बर मि‍सेज गौतम के...

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सूदसमेत

विदाई के दिन मंच पर बैठा वह सोच रहा था कि वह ताउम्र कभी पत्नी तो कभी दोस्तों से अपने मातहतों की यही शिकायत करता रहा – अजीब लोग हैं, मैं इनके साथ शराफ़त से पेश आता हूँ तो मुझे कुछ समझते ही नहीं। – हुआ...

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ਬਰਾਦਰੀ/बिरदरी

(अनुवाद : श्याम सुन्दर अग्रवाल) “ਬਾਬੂ!” ਮੈਂ ਕਾਰ ਵਿੱਚੋਂ ਉਤਰਿਆ ਹੀ ਸੀ ਕਿ ਆਪਣੇ ਬਚਪਣ ਦਾ ਸੰਬੋਧਨ ਸੁਣ ਕੇ ਚੌਂਕ ਗਿਆ। ਕਿਸੇ ਪੁਰਾਣੇ ਜਾਣਕਾਰ ਨਾਲ ਸਾਹਮਣਾ ਹੋਣ ਦੇ ਭੈ ਨਾਲ ਹੀ ਮੇਰੇ ਕੰਨ ਗਰਮ ਹੋ ਗਏ ਤੇ ਮੈਂ ਉਸ ਪੁਕਾਰ ਨੂੰ ਅਣਸੁਣਿਆ...

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सहमा सुख

कमरे में प्रवेश करते ही उन्होंने सरसरी निगाहों से चारो तरफ देखा। कोने में रखे रंगीन टीवी पर निगाह पड़ते ही खुशी की झुरझुरी सी उनके शरीर में उठ आयी-‘आह! कितनी मशक्कत से खर्च में कतरब्योंत कर मैंने यह...

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संश्लिष्ट सृजन-प्रक्रिया

  रचनाकार का सोचा हुआ आशय अभिप्राय, विचार या अनुभूति रचना के माध्यम से पाठक तक कैसे संप्रेषित हो पाता है? अपनी बात वह दूसरों तक कैसे और कितने सफल एवं सही और किस रूप में संप्रेषित कर पाता है? इसका जायजा...

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पागल

बेटे ने अपने व्यापार के लिए चालीस लाख रुपयों के बैंक लोन का आवेदन किया था। जमानत उसके पिता रिटायर्ड मेजर विक्रम सिंह ने दी थी। उन्होंने इसके लिए अपने मकान–मिलकियत के मूल कागजात भी बैंक को सौंप दिए थे।...

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