मधु ने इकलौते बेटे की शादी को लेकर बहुत सपने सजाये थे। धूमधाम से शादी करके वह समाज में सबको अपनी समृद्धि से परिचित कराना चाहती थी। अपनी पसंद की व अपने रुतबे की बहू लाने के उसके अरमानों पर तब तुषारापात हो गया जब एक दिन राहुल चुपचाप कोर्ट मैरिज करके निशा को अपनी पत्नी बनाकर ले आया। कई दिनों तक मधु को यह बात गले नहीं उतरी कि एक साधारण से क्लर्क की बेटी उसकी बहू है।।न कोई दहेज, न कोई महँगे तोहफ़े। उसके भीतर की कड़वाहट आए दिन रिश्तों में ज़हर घोल रही थी। मधु तिल को ताड़ बनाने का अवसर नहीं छोड़ती।
“बहूरानी जरा काम-काज में भी दिल लगा लिया करो।”
“सारे दिन फोन, टी वी से फुरसत मिले तो घर के काम सूझे न”
मधु बोले जा रही थी, निशा नजर झुकाए सुने जा रही थी। जब से निशा घर में आई मधु का पारा सातवें आसमान पर ही रहता था।
“इस महारानी को ती कुछ नही कहने से बेहतर है दीवार पर सर दे मारो…. कितनी बार समझाया है- कपड़े धोने से पहले जेबें देख लिया करो। आज फिर देखो पेंट की जेब में हिसाब की पर्ची धुल गई….”
मधु पेन्ट की जेब से कागज की टुकड़े निकाल रही थी जो कि लुगदी बन चुके थे।
“तुम्हीं जवाब देना आज… मैं कब तक तुम्हारी तरफ़दारी करती रहूँ…. बुला रहे हैं राहुल और तेरे ससुरजी… जा तू ही सामना कर आज…”
मधु की बात सुनकर निशा अपनी दराज़ से एक कागज़ निकाल कर लाई और राहुल के हाथ में दे दिया।
” मम्मी आप तो कह रही थी पर्ची धुल गई, पर ये तो सही है, यही तो थी।” -राहुल ने कहा ।
“वो माँजी मैंने तो रात को ही कपड़े चेक करके छोड़ दिए थे, ये तो अच्छा हुआ जो मेरी नज़र आप पर पड़ गई जब आप जेब में पर्ची रख रही थी, तो मैंने वो पर्ची निकालकर रद्दी कागज़ डाल दिया।” -निशा का मन भर आया।
“माँजी आप मुझे पसंद नहीं करती, पर आज मुझे नीचा दिखाने के चक्कर में ये काम की पर्ची धुल जाती तो राहुल का कितना नुकसान हो जाता, इतनी बड़ी पेमेंट रुक जाती।”
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