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Channel: लघुकथा
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सपनों का गुलमोहर /स्वींणों का गुलमोर

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अनुवादक :डॉ. कविता भट्ट
अमेरिका बटि तीन मैनां बाद बौड़ी कि एंईं रश्मि अपड़ा घौरवाळा रवि दगड़ी चलदु चलदु पार्किंग बटि निकळी तैं ‘पार्किंग लॉट’ माँ पौंछी त रवि तैं एक चमकदी नईं ‘इनोवा’ कु दरवाजु खोल्दु देखिक बोल्दी- ‘‘त इनोवा लियाली? मतलब म्यारा गुलमोर कटवै ल्यन?” भौत रुसै कि पुछी वींन।
“यु बात बाद माँ अबि त यीं म्हारानी कि सवारी कु मजा ली। पता च सड़क्यों माँ इन रणदी जन मानसरोवर माँ राजहंस तैरदु। ‘अहा म्यरा स्वींणों की गाड़ी’ मुल-मुल हैंसिक बोलि वेन अर रश्मि तैं वेकि हैंसी बिसै कि तरौं लगी।
“अर म्यारा स्वींणों की फसलौ कु क्य?” एक ठंडु लम्बु उस्कारु भरि कि वींन बोलि अर आँख्यों मुँजि कि खैरि तैं लुकौणै कोसिस करदि करदु पैलि का समैं माँ हर्चि गे।
बरसु पैलि भौत मनकाम्ना सि घौरा का पिछनै वळा चौकम वींन द्वी बाळा गुलमोर लगै छा इन सोचि कि कम सि कम एक थैं त माटु अपणैं ही देलु। अर वै दयालु माटन द्वियों तैं अपण्यूँत दी दिनी अर द्वि दगड़ा- दगड़ी बड़ा ह्वैकि एक दिन फुल्लुन झपन्याळा ह्वै गेनि। वूं डाळियों का लल्यांगा छैला माँ बैठिकि कतग ही काम-काज निबटौंदी छै वा। वु डाळियों का फूल बाळों की माया जना बरखदा छा वु मुलैम कुंगळा फूल वीं परैं अबि कुछ मैंना पैलि रवि न रट लगै कि पुरणी गाड़ी बेचिक वेन नई ‘इनोवा‘ लेण पर वाँ सि पैलि गुलमोर कटैकि गैरेज बणौंण बल जाँ सि कि वे सि झण्ण वळा फूल-पत्ता अर प्वथलों की बीट गाड़ी तैं खराब न करि सक्वन। रश्मिन भौत विरोध कन्नि रै पर वीं तैं तीन मैना क वास्ता बड़ी नौनी पुरवा मुं अमेरिका जाण प्वोड़ी अर वीं का मुक पैथर रविन मनमर्जी कु काम करि दे।
गाड़ी घौर क साम्णी रुकि अर वा झटकै कि भैर निकळी, त छ्वटी नौनि प्राची ऐकि वींकी साँकी पर नै लगुली सि भेंटे गे, ‘‘ हे ब्वे! त्वेकु एक नै खबर चा।‘‘
‘‘जाणदु छौं… वाँ माँ ई बैठिकी ऐंयों,‘‘ कड़ु गिच्चु कैरिक वा वीं तैं धिकै कि पिछनैं का चौक म पौंछी… यु क्य? रंग-बिरंगा फुल्लु कि चमक बरखौंदा वीं का द्वी गुलमोर मुंड मिलैकि मुल-मुल हैंसणा छा अर वूँ का चौतरफाँ एक चबुतरा सि बि बणवैए गे छौ। चार हाथै दूरि पर सफेद नीलि पॉलि सीटौ कु बण्यु एक स्वाँणु सि कार-सेड बि वीं कु स्वागत कन्नु छौ…वीं ई घड़ी प्राची अर रवि बि साम्णी ऐकि खड़ा ह्वे गैनि अर वीं न एकि बारम द्वियों तैं अंग्वल्ठा माँ भौरि दे।


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