गढ़वाली में अनुवाद-अनुवाद डॉ . कविता भट्ट
नौ चन्नी लग्गी छै ।
बिच औता मूँ नौ वळन बोलि, “नौ माँ बोझ जादा च, कवी एक आदिम कम ह्वे जाऊ त अच्छू, नितर नौ
डुबि जालि।”
अब कम ह्वे जाऊ त कु कम ह्वे जाऊ ? कै लोग त तैन्न नि जाणदा छा: जु जाणदा छा ऊँ क तैं बि
पल्या पार जाण खेल नि छौ।
नौ माँ सब्बी तरौं का लोग छा- डाक्टर, अफसर, वकील, व्योपारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता
क अलावा आम आदिम बि।
डाक्टर, वकील, व्यापारी यु सब्बी चांदा छा कि आम आदिम पाणि म फाळ मारि द्यो। वू तैरिक पार जै सकदु
च, हम ना।
वूं न आम आदिम माँ फाळ मन्नौ तैं बोलि, त वेन मना करि दिनि। बोलि, “मी जब डूबणों तैं तैयार ह्वे जन्दौं
त तुम मुंन कु मेरी मददौ तैं कु दौड़दु, जु मी तुमरी बात मणदु? “
जब आम आदिम भौत मनाणा बाद बि नि मानि, त यु लोग नेता मूँ गैनी, जु यूं सब्बू से अलग एक
तरफाँ बैठ्यूं छौं।
यूँन सौब-धाणी नेता तैं सुणोंणा बाद बोलि, “आम आदिम न हमरी बात नि मन्न त हम वे तैं पकड़ी का तैं
गंगाळ धोळी दयोला।”
नेता न बोलि, “न-न इन् कन्न भूल होलि। आम आदिम दगड़ी अन्याय होलु। मि दिख्दु छौं वे तैं।
मि भाषण दीन्दू।
तुम लोग बि वे दगड़ा दगड़ी सूणा।”
नेता न जोशीलू भाषण सुरु करी जैमां राष्ट्र , देश, इतिहास, परम्परा की बिर्द्वाली भनें, देश क वास्ता
बलि चढ़ण कि पुकार म हाथ ऊँच्चू कैरी क बोलि, “हम मर मिटी जौला, पर अपड़ी नौ नि डुबण द्योल़ा…
नि डुबण द्योल़ा … नि डुबण द्योल़ा “….!
सुणिक आम आदिम इतगा जोस म आई कि वेन गंगाळ फाळ मारि दे।