… और एक दिन उसने ख़ुद ही इस रिश्ते को नकार दिया जो शायद कभी था ही नहीं ।
कभी कभी हम उस डोर से बँधे, उसमें खींचे चले जाते हैं जो शायद कभी थी ही नहीं। हद से ज़्यादा सोचने वाले व्यक्ति दूसरों के लिए सही निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं पर अपने लिए निर्णय ले ही नहीं पाता ।उसकी यादें बाँधने के लिए रिश्ता नाम का खुटां कभी था ही नहीं उसके पास ।और शायद यही कारण रहा कि उसकी यादें अपनी मर्ज़ी से उसके शरीर में कहीं भी विचरण करती कभी दिल में अटकती तो कभी लगता सर फाड़ के ऊपर से निकल जाएगी ।किसी के दूर जाने का डर आपको एकहद तक उससे बांधकर रखता है और जब आप उस हद से गुज़र जाते हो तो आप ख़ुद मुड़कर देखने से इनकार करने लगते हो ।
मौसम में सर्दी का एहसास धीरे धीरे बढ़ने लगा था ।सुबह की ठंडी हवा के सिरहन के बाद धूप की गर्माहट सुहावनी लगती है ।जैसे यादों की ठंडक जितना दिल में सिहरन पैदा करती है उतनी ही गर्माहट तब महसूस होती है जब लगता है किसी दूसरे के बिना बात टालने से या परेशान होने से ज़्यादा अच्छा है आप उस रिश्ते को खुद ही ख़त्म कर दो ।पर ख़त्म करना या ख़त्म होना इतना आसान नहीं आप बार बार तिल तिल मरते हो बार बार यादें दिलो-दिमाग़ पर दस्तक देती है।
लड़की लैपटॉप पर काम करती करती सोचती जा रही थी कि तभी फ़ोन पर एक नाम फ़्लैश हुआ है, जिसे देखते ही वो चौंक गई । क्या इस नंबर को ब्लॉक ना करके उसने कोई गलती तो नहीं की । काँपते हुए हाथों से उसने कॉल उठाया । प्रॉब्लम बात करने में नहीं थी। प्रॉब्लम बार बार ज़ख्म को कुरेदने में थी । तभी दूसरी तरफ़ से वही खनकती हुई आवाज़ आई-“सही हो….काफ़ी समय से कोई ख़बर नहीं..”
“हाँ ….सही हूँ।”
“बात नहीं करनी लगता ।”
लड़की बहुत कुछ कहना चाहती थी रोकर, लड़कर ,सब कुछ पर पता नहीं क्या था जो रोक रहा था । बस इतना ही कह पाई-“थोड़ा बिज़ी हूँ …बाद में बात करती हूँ।”
अजीब है दिल के रिश्ते कभी कुछ कह नहीं पाते । एक समय के बाद बस ख़ामोश हो जाते है…इस ख़ामोशी के साथ अंदर ही अंदर कुछ टूटता जाता है, जो इतना शोर मचाता है दिमाग़ की नसें फटने लगती है ।ये शोर न सोने देता है और न जागने देता है बस एक बैचैनी छोड़ जाता है।