आँसू और हँसी
(अनुवाद :सुकेश साहनी) नील नदी के किनारे एक मगर और लकड़बग्घे की मुलाकात हो गई. दोनों ने परस्पर अभिवादन किया। लकड़बग्घे ने पूछा, “कैसी कट रही है, भाई?” मगर ने उत्तर दिया, “बहुत बुरा हाल है। जब कभी मैं...
View Articleमेरी प्रिय दो लघुकथाएँ
बाँसुरी_हरभगवान चावला द्वारिकाधीश अपनी मंजूषा में जाने क्या ढूँढ़ रहे थे। सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था। तभी उनकी दृष्टि मंजूषा में रखी बाँसुरी पर ठहर गई। बाँसुरी को देखते ही वे विह्वल हो उठे। कितने...
View Articleमेरी पसंद (दो लघुकथाएँ )
मेरी पसंद (दो लघुकथाएँ ) रोचिका अरुण शर्मा लघुकथा यानी छोटी सी कहानी जो बगैर किसी लाग-लपेट के कम शब्दों में गहरी बात पाठक के मन-मस्तिष्क तक पहुँचा दे । जिसका पूरा सार अंत की एक पंक्ति में व्यंगात्मक...
View Articleलघुकथा एक गंभीर विधा
मेरी पसंद : हरभगवान चावला मेरी नज़र में लघुकथा एक गंभीर विधा है, लेकिन हिंदी में लघुकथा का इतना विपुल मात्रा में उत्पादन (उत्पादन शब्द का प्रयोग साभिप्राय किया गया है) हो रहा है कि लघुकथा सदमे में है।...
View Articleसवाल -दर -सवाल
भावना प्रकाशन,109-ए, पटपड़गंज गाँव,, दिल्ली-110091,पेपर बैल मूल्य;175 रुपये,पृष्ठ;112, संस्करण:2022
View Articleरमेश बत्तरा का लघुकथा साहित्य
साहित्य की नित नई सृजित धारा में अपना योगदान देने वाले ऐसे कई श्रेष्ठ नाम अतीत का हिस्सा बन चुके हैं, जिनके साहित्य-सृजन अंश का ऋणी साहित्य जगत हमेशा रहेगा। हालाँकि ऐसे कई नाम लोगों की स्मृति से समय के...
View Articleलघुकथा में स्त्री
नव लघुकथाकारों पर हमारे वरिष्ठ लघुकथाकारों ने काफी कलम चलाई है। नए आयोजन भी किए हैं और नई किताबें भी निकाली हैं। यह एक तरह से अच्छा है। आने वाली पीढ़ी को तैयार करना, आने वाले खतरों के लिए अलर्ट करना, नई...
View Articleबेरंग
होली एक समरसता का त्योहार है। प्रेम और धार्मिक सौहार्द को यह त्योहार बढ़ाता है। ‘‘मम्मी! ओ मम्मी! आगे क्या लिखूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है?’’अपनी नोटबुक पर निबंध लिखते हुए विवेक अधीरता से बोला, ‘‘आज ही...
View Articleजीवन की मिठास
सुबह का समय था. डाइनिंग टेबल पर बैठकर बेटा सुबह का नाश्ता कर रहा था। उसने दो पराठे खाने के बाद ही अपने हाथ उठा लिये थे। माँ उससे एक और पराठा लेने के लिए जिद कर रही थी। मगर बेटा लेने के लिए कतई तैयार...
View Articleसंदेश
नज़रों को इधर-उधर घुमाये बगैर मैं सीधे सामने की ओर देखता निकलता।ठीक नाक की सीध पर।जब भी उस रास्ते से गुजरना होता,तो मैं यही नीति अपनाता।लेकिन हद तो तब हो जाती,जब मेरे हाथ में सब्जी रखने वाला वेजिटेरिअन...
View Articleगरीब
किसी क्लब का अध्यक्ष होना भी अपने आप में सर दर्द हो जाता है। रोज कोई न कोई कार्यक्रम लगा ही रहता है, अतुल पाँच महीनों से लगातार दौड़ ही रहे थे।कभी वृद्धाश्रम,कभी विकलांगों का कैंप तो कभी ब्लड डोनेशन।...
View Articleरिश्ते/
… और एक दिन उसने ख़ुद ही इस रिश्ते को नकार दिया जो शायद कभी था ही नहीं । कभी कभी हम उस डोर से बँधे, उसमें खींचे चले जाते हैं जो शायद कभी थी ही नहीं। हद से ज़्यादा सोचने वाले व्यक्ति दूसरों के लिए सही...
View ArticleGap
Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh Taking a sip of tea, Papa said, “Neha, which discipline have you decided for the ninth class? Science or commerce?” After pondering for a...
View Articleलघुकथाएँ
1-अपराजिता आज पति को गुजरे तीन महीने होने को आए। कितना कुछ बदल गया न इन तीन महीनों में ! पति थे तो कितनी निश्चिंतता थी जीवन में! वे ही कारोबार का सारा हिसाब- किताब देखते, बेटा न होने का ताना मिलने पर,...
View Articleकाल्पनिक नरक
(अनुवाद :सुकेश साहनी) शावाकीज नगर में एक राजा रहता था। सब उसे प्यार करते थे-आदमी, औरत, बच्चे यहाँ तक कि जंगल के जानवर भी उसके प्रति सम्मान प्रगट करने आते थे! लेकिन ज्यादातर लोगों का कहना था कि रानी...
View Articleगरण
गढ़वाली में अनुवादः डॉ. कविता भट्ट “पिताजी राहुल छौ बुन्नु कि आज तीन बजि—” विक्की न बतौण चाई । “चुपचाप पौड़ी लि!” वूंन अखबार बिटी नजर हटयाँ बिना बोलि, “पड़े क टैम बुन्न-बच्यांण बिल्कुल बंद !” “पिताजी...
View Articleपाँव का जूता
बैसाख की सन्नाटे–भरी दोपहरी में कभी एड़ी तो थोड़ी देर बाद पंजे ऊँचे करके चलते हुए वे दुकान के अहाते में पसरी हुई छाइली के बीच खड़े हो गए। क्षण–भर बाद थकान और पीड़ा से भरी हुई निगाह उन्होंने दुकानदार की...
View Articleइलाज
एक माँ अपने छह साल के बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास गई। उसने डॉक्टर से कहा–वैसे तो मेरा बच्चा स्वस्थ–प्रसन्न है। खूब दूध पीता है, डटकर खाना खाता है, छककर मिठाई खाता है, मुट्ठी भर–भरकर नमकीन खाता है, जी...
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