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लघुकथाओं की लोकप्रियता

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साहित्य की विविध विधाओं में लघुकथा का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरअसल लघु कलेवर में भावों, मुद्दों, संवेदनाओं और संबंधों के अथाह सागर को सँजोए रखने के कारण आज लघुकथाओं की लोकप्रियता बढ़ गई है। आज के व्यस्त जीवन में वृहत्कथाओं और उपन्यासों के पढ़ने का समय बहुत कम लोग निकाल पाते हैं। ऐसे में लघुकथाओं की प्रासंगिकता स्वतः ही बढ़ जाती है। लघुकथाएँ अपने लघु रूप में ही समसामयिक और ज्वलंत मुद्दों को अत्यंत सरल और सहज रूप में प्रस्तुत करने में समर्थ रही हैं।साथ ही आधुनिक दौर के अधिकअत्र लघु-कथाकार मानवीय संवेदनाओं के सभी पक्षों को स्पर्श करने में सफल रहे हैं। एक सफल लघु कथाकार की सबसे बड़ी ख़ूबी यही होती है कि वह थोड़े से शब्दों में अपने विचारों को पाठकों के सामने रखकर उनके हृदय पर ऐसी छाप छोड़ता है कि उन्हें विचारणीय विषय पर सोचने के लिए विवश कर देता है। आज के लघु-कथाकारों में मुझे सुकेश साहनी,सुभाष नीरव, सतीशराज पुष्करणा, युगल,मधुदीप, श्याम सुन्दर अग्रवाल, डॉ श्याम सुन्दर दीप्ति,डॉo शील कौशिक,घनश्याम अग्रवाल,कमल चोपड़ा, राधेश्याम भारतीय ,अशोक भाटिया आदि पसंद हैं। कुछ लघुकथाएँ ऐसी होती हैं जो अपने कथ्य और शिल्प के कारण मन और मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़कर पाठक को सोचने पर विवश कर देती हैं।ऐसी ही अनेक लघुकथाओं में से कुछ; जो अपने कथानक की दृष्टि से बहुत सशक्त हैं, उनमें से मुझे पवन शर्मा जी की लघुकथा यह पारी ही तो है और रामकुमार आत्रेय जी की लघुकथा बेकार की बात”” बहुत पसंद हैं।
पवन शर्मा जी की लघु कथा यह पारी ही तो है मानवीय संवेदनाओं के धरातल पर आधारित है। आज के समय एक बुज़ुर्ग का जीवन – यापन किन कटु अनुभवों से गुजरता है, इस कथा में उसका एक प्रतिबिम्ब दिखाने की कोशिश की गई है। एक वृद्ध पिता कैसे बारी-बारी से अपने पुत्रों के पास समय गुजारता है और स्वयं को भार-सा महसूस करता है, इसकी एक बानगी है यह लघुकथा। आजकल के युवाओं की अपनी पारिवारिक और अध्यवसायिक विवशताएँ हैं, जिनमें उनके वृद्ध माता-पिता स्वयं को कैसे उपेक्षित महसूस करते हैं और युवा चाहकर भी अपने माँ- बाप के विषाद को दूर नहीं कर पा रहे हैं – इन समस्त पक्षों को पवन शर्मा जी ने अपनी इस लघु कथा में बड़ी कुशलता के साथ छूने का प्रयास किया है। उन्होंने इस सामाजिक विसंगति पर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है कि पुत्रों-पुत्रियों द्वारा अपने माता-पिता की देखभाल के लिए समयबद्ध योजना की परिकल्पना वास्तव में एक पारी के समान है और हमें गंभीरता के साथ इस विषय पर विचार करना चाहिए।
रामकुमार आत्रेय की लघुकथा- बेकार की बात आज के किशोरों की अभिरुचि व उनके मनोविज्ञान पर प्रकाश डालती है। आत्रेय जी ने इस लघुकथा में यह दर्शाने का प्रयास किया है कि कैसे आज के किशोर क्रिकेट और क्रिकेटरों के दीवाने हैं। टेस्ट क्रिकेट में सर डोनाल्ड ब्रैडमैन का प्रथम स्थान पर और सचिन तेंदुलकर का 28 वें स्थान पर होना उन्हें अविश्वसनीय लगता है और इसके लिए समाचार -पत्र की विश्वसनीयता पर भी उनका मानस प्रश्नचिह्न लगा देता है। यह दृष्टांत आज के किशोरों की नायक पूजा की मानसिकता को उजागर करता है।साथ ही शिक्षा जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की सफल मेधाओं के बारे में उनका जिज्ञासु न होना और लेखक द्वारा प्रश्न किए जाने पर इसे बेकार की बात कह कर टका-सा ज़वाब दे देना आज के किशोरों की मनः-स्थिति को बख़ूबी दर्शाता है। सम्भवतः आज की पीढ़ी को समझने व उनके मनोविज्ञान में झाँकने का यह लघु कथा एक सफल और गंभीर प्रयास है।
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1-यह पारी ही तो है!
पवन शर्मा

अचानक पिताजी ने जाने की घोषणा कर दी, फिर उन्होंने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया और एक छोटे बक्से में सामान सहेज-सहेजकर रखने लगे। ऐसा अक्सर ही होता है कि पिताजी एकाध माह रहकर जाने की घोषणा कर देते हैं। शुरू-शुरू में मैं चौकता था, किन्तु अब कोई आश्चर्य नहीं होता। जब तक माँ थी, पिताजी ने गाँव नहीं छोड़ा था, किन्तु माँ के गुज़र जाने के बाद वे तीनों बेटों के यहाँ कुछ-कुछ रहकर दिन बिताने लगे।
“तो क्या आज ही निकल जाएंगे ?” मैंने पूछा।
“हाँ । वे बोले ।
“एक आध दिन और रुक जाते ।”
“नहीं, अब नहीं रुकूँगा जाऊँगा ही.काफी दिन रह लिया ।”
“हाँ.मंझला भी राह देख रहा होगा ।” मैं कहता हूँ ।
“मंझले के यहाँ नहीं जाऊँगा सोचता हूँ कि अब गाँव निकल जाऊँ ।वहीँ रहूँ ।”
“क्यों ?”
“अब जीवन के आखिरी दिनों में यह अच्छा नहीं लगता कि एकाध महीने रहकर तेरे यहाँ से मंझले के यहाँ….मंझले के यहाँ से छोटे के यहाँ….और फिर तेरे यहाँ….जैसे कि एक पारी-सी बँधी हुई हो.पिताजी कह रहे थे मैं चुपचाप था.एक सन्नाटा-सा खिंच आया था मेरे और पिताजी के मध्य….
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2 बेकार की बात :
रामकुमार आत्रेय

तीन-चार हमउम्र बच्चे बतियाते हुए मेरे आगे चल रहे हैं । ये सब बारह-तेरह वर्ष की आयु के हैं ।न चाहते हुए भी उनकी बातें मेरे कानों में घुसी चली आ रही हैं ।
“यार, आज के अखबार में छपा है कि सर डोनाल्ड ब्रैडमैन 961 अंक लेकर टेस्ट बल्लेबाज के रूप में आज भी सबसे ऊपर बने हुए हैं !” एक बच्चा अचानक अपनी जानकारी दूसरे बच्चों के सामने रखते हुए कुछ आश्चर्य का भाव प्रकट करता है।
“और अपना तेन्दुलकर ? जरूर दूसरे स्थान पर होगा ?” साथ चलता दूसरा बच्चा बड़े आत्मविश्वास के साथ क्रिकेट की बात शुरू करने वाले बच्चे की बाँह पकड़कर पूछता है ।स्पष्ट है कि उसने अखबार नहीं पढ़ा है ।
“नहीं यार, तेन्दुलकर 898 अंक लेकर अट्ठाइसवें स्थान पर है, जबकि द्रविड़ 892 अंकों के साथ चौंतीसवें स्थान पर !” उसके स्वर में कुछ मायूसी-सी मिली हुई है ।
“अख़बार तो मैंने भी पढ़ा था यार । पर मुझे लगता है कि यह सब गलत छपा है । हमारा तेन्दुलकर इतना नीचे नहीं जा सकता । ये अखबार वाले तो न जाने क्या का क्या छाप देते हैं ।” तीसरा जो अब तक चुप था, बीच में दख़ल देते हुए कहता है, “मुझे तो इस बात पर जरा-सा भी विश्वास नहीं है ।”
वह बीच राह में पड़े रोड़े को ठोकर मारकर दूर फेंक देता है ।मानो क्रिकेट संबंधी अविश्वसनीय समाचार को ही ठोकर मारकर कहीं दूर फेंक रहा है ।
मुझे लगता है कि बच्चें बहुत ही बुद्धिमान हैं । अवश्य ही इन्होंने आज के अखबार के मुखपृष्ठ पर सचित्र छपे एक अन्य समाचार को भी पढ़ा होगा । जिसके अनुसार रघु महाजन नामक एक छात्र ने आईo आईo टीo की प्रवेश परीक्षा में पूरे भारत में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । कुछ दिन पूर्व घोषित परिणाम के अनुसार उसने एo आईo ईo ईo ईo की प्रवेश परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था । इसीलिए मैं आगे चलते बच्चों से जानबूझकर पूछे बिना नहीं रह पा रहा हूँ, प्यारे बच्चों, अवश्य ही तुमने आज के अख़बार में एक और विशेष समाचार भी पढ़ा होगा । एक छात्र ने पूरे में प्रथम स्थान प्राप्त करके अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया है ।मैं उस छात्र का नाम याद नहीं कर पा रहा हूँ । किस एंट्रेंस टैस्ट में वह प्रथम रहा है, यह भी भूल गया हूँ । तुममे से कोई बताएगा क्या ?”
मेरा प्रश्न सुनकर एक बार तो उन सबके चेहरे फीके पड़ जाते हैं । तभी बातचीत की शुरुआत करने वाला बच्चा खुद को सँभालते हुए कहता है, “छोड़िए न अंकलजी, घर पहुँचने पर फिर से अख़बार पढ़ लेना । हम जल्दी में हैं । बेकार की बातों के लिए हमारे पास समय ही नहीं है ।”
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अध्यापक,राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
सैक्टर- 16, रोहिणी, दिल्ली-110089


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