लघुकथा से मेरे लेखन की शुरुआत हुई है। पहला लघुकथा सम्मेलन पिंगलवाड़ा में अटेंड किया था। उसके बाद दूसरा पंचकुला में। 2016 से अबतक कुछ और सम्मेलन अटेंड किए हैं। पंजाब के दोनों लघुकथा सम्मेलन किसी शैक्षिक सत्र जितने संजीदा थे।
समीक्षा के आईने में श्याम सुंदर दीप्ति की लघुकथाएँ, जिसका संपादन जगदीश राय कुलारियां जी ने किया हैl यह किताब हिंदी और पंजाबी में साथ- साथ है। इसमें दीप्ति जी की श्रेष्ठ लघुकथाओं पर कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों की समीक्षाएँ हैं। उनके कुछ साक्षात्कार भी इस किताब में हैं। कविता से अपने लेखन की शुरूआत करने वाले डॉक्टर दीप्ति जी ने लघुकथा के क्षेत्र में वृहद कार्य किया है।
आज उनकी रचना प्रक्रिया पढ़कर लगा कि मैं लघुकथा संगोष्ठी के किसी एक सत्र में ही बैठी हूं। लघुकथा लिखने से पहले यह सोचना कि क्या यह विषय लघुकथा लिखने के काबिल है? इस पर पहले लिखा गया है या अब समय और परिस्थितियां बदल चुकी हैं? और उससे भी बड़ा सवाल कि क्या यह लघुकथा समाज के किसी काम की है? यदि इतनी लंबी सवालों की प्रक्रिया हमारे अंदर भी उठने लगे तो लघुकथा के स्तर में बहुत इजाफा होगा!
जो यकीनन बहुत जरूरी भी है! दीप्ति जी की पहली लघुकथा, सीमा जिसे उन्होंने दो बार लिखा और उस लिखे के फर्क को उनके विद्यार्थी मन को समझने के लिए वह दोनों लघुकथाएँ पढ़ना अपने आप को समृद्ध करने जैसा है।
पहली बार, इस लघुकथा में स्त्री पुरुष के प्रेम की सुंदरता के साथ समाज की सोच भी दिखाती है। स्त्री कभी प्राथमिक नहीं रही, उसे दूसरा दर्जा ही दिया गया है। कुछ पुरुष हैं जो स्त्रीत्व का सम्मान करते दिखते हैं और उनकी सोच मन को सुकून दे जाती है।
रचना प्रक्रिया की अंतिम और धारदार बात, मैं अपनी रचना में मौजूद रहता हूं। मेरी रचना या मेरे पात्र वही बोलते हैं जो मैं कहना चाहता हूं। मूझे यह बात बहुत सटीक लगी। हमारे पास एक खाका होता ही है कि हम क्या कहना चाहते हैं!? यहां यह कहना कि पात्र अपना रास्ता खुद चुनते हैं यह ठीक नहीं लगता है। फिर सवाल उठता है कि लेखन कोई और कर रहा है तो हम क्या कर रहे हैं? हमारी सृजनात्मकता किसी और के हाथ में कैसे हो सकती है?
कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों ने दीप्ति जी की कुछ चुनिंदा लघुकथाओं या उनके किसी संकलन पर अपनी बात कही है उनमें सबसे पहले सुकेश साहनी जी ने दीप्ति जी की लघुकथाओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया है।
राजेश उत्साही जी ने कुछ श्रेष्ठ लघुकथाओं की और संकेत किया है। साथ ही एक बात कही है कि दीप्ति जी अपनी हिंदी में भाषा के पंजाबीपन को सायास आने देते हैं उससे बचने का प्रयास नहीं करते हैं।
अशोक भाटिया जी के दो आलेख जिसमें उन्होंने एक एक्टिविस्ट और एक कलमकार दोनों भूमिकाओं में बराबर सक्रिय दीप्ति जी की लघुकथाओं और उनके कार्य के बारे में अपनी विस्तृत राय रखी है। अशोक जी, दीप्ति जी के (1988) मिन्नी के प्रवेशांक के विमोचन के साक्षी रहे हैं।
सुभाष नीरव जी जिन्होंने दीप्ति जी के पहले लघुकथा संग्रह गैर हाजिर रिश्ता के साथ बेड़ियां और इक्को ही सवाल की बात की है। उन्हीं के शब्दों में –‘अपनी रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों, जर्जर हो चुकी परंपराओं, अंधविश्वास पर प्रहार करने की लेखक की इच्छा उसके सामाजिक सरोकारों और सामाजिक उद्देश्य को प्रकट करती है। लेखक, लेखक होने से पहले एक मनुष्य और सामाजिक प्राणी है…’
लता अग्रवाल जी ने गुलाबी फूलों वाले कप की 75 लघुकथाओं से गुजरते हुए पाया कि इसमें जीवन, समाज राजनीति, स्त्री, बाल जगत से लेकर अनेक राष्ट्रीय मुद्दों को लघुकथा के कैनवास पर उतारा गया है। प्रत्येक लघुकथा यथार्थ जीवन के धरातल पर बुनी और गुनी गई है।
सूर्यकांत नागर जी का यह कहना है- ‘ दीप्ति जी ने लघुकथा के सिद्धांत पक्ष पर भी खूब काम किया है। उन्हें मनुष्य मन की अच्छी पहचान है।‘
शील कौशिक जी ने गुलाबी फूलों वाला कप की समीक्षा लिखते हुए कहा कि श्याम सुंदर जी की लघुकथाओं में एक भिन्न शिल्प विन्यास देखने को मिलता है। यह लघुकथाएँ वर्तमान समय का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह वैश्वीकरण युग की बदली हुई मानसिकता को यथार्थ के साथ अवगत कराकर सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक विसंगतियों पर चोट करती हैं । अधिकतर लघुकथाओं में परिवेश और पंजाबी भाषा का समुचित प्रभाव है, जो स्वाभाविकता का आग्रह है।
विशिष्ट लघुकथा पर विशिष्ट लेखकों की टिप्पणी में बलराम जी, बलराम अग्रवाल जी, खेमकरण सोनम शिक्षा कौशिक ‘नूतन ‘, सीमा जैन, रुप देवगुण जी ने किसी एक लघुकथा को सराहा है। जिन लघुकथाओं का जिक्र यहां है – सीमा, पहली बार, खुशगवार मौसम है।
योगराज प्रभाकर जी ने दीप्ति जी से उनकी लघुकथा की रचना- प्रक्रिया पर साक्षात्कार लिया। सीमा जैन ने लेखक की शुरूआत, मनोविज्ञान और चार दशक तक उनके कलम के सफर के बारे में बात की है l
अशोक दर्द जी ने भी साक्षात्कार के माध्यम से दीप्ति जी के लेखन से जुड़े गहरे मंथन और विचारों को पाठकों और नवोदित लेखकों तक उनके संदेश को पहुंचाने की कोशिश की है।
अब चलती चलते, जगदीश राय कुलरियाँ जी, जो इस किताब के संपादक हैं, उनकी बात मैंने सबसे पहले पढ़ी थी पर जवाब अंत में दे रही हूं। उन्होंने इस किताब में ‘दो शब्द मेरी ओर से’ में लिखा है – जब उनकी लघुकथा पर आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित करने का विचार आया, तो यह पाया गया कि बहुत कम आलोचकों और लेखकों ने उनके बारे में लिखा है।
साहित्य के गलियारों में किसी लेखक का कब और कितना मूल्यांकन हो, यह तो समय ही निर्धारित करता है। यदि किताब जनता जनार्दन तक पहुँच जाती है, पसंद की जाती है, तो यह लेखक की या हर कलाकार की सबसे बड़ी सफलता है l और इस सफलता का स्वाद दीप्ति जी को भरपूर मिला है l किताब की आठ हजार प्रतियाँ हों या समाचार पत्र में नियमित कॉलम यह एक लेखक की बहुमुखी प्रतिभा का बयान करती है और एक संजीदा भारतीय नागरिक, एक डॉक्टर मनोवैज्ञानिक और एक लेखक को उत्साह से भी भर देती होगी l दीप्ति जी की कलम समाज का यूँ ही मार्गदर्शन करती रहे… इसी शुभकामना के साथ -0- सीमा जैन
समीक्षा के आईने में डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति की लघुकथाएँ, संपादन – जगदीश राय कुलारियाँ
प्रेरणा प्रकाशन अमृतसर, प्रथम संस्करण 2022, मूल्य ₹ 300
-0-