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Channel: लघुकथा
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इस्तीफा

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बाज़ार से कुछ खरीदारी करके लौटी ही थीं। थैले एक तरफ़ पटक कर चाय के लिए कहने ही वाली थीं, तभी एक तरफ़ मुँह लटकाए बैठी दिव्या पर निगाह पड़ी। वो चिंतित होकर पूछ बैठीं,”क्या बात है? बहुत चिंतना में लग रही हो।”

वो बहुत दुखी होकर बोलीं, “देखिए ना! अमित ने इतनी बढ़िया नौकरी से इस्तीफा दे दिया है।”

“मगर क्यों?”उन्होंने बहुत हड़बड़ा कर पूछा था।

“इन्हीं से पूछिए। ये ही आपको समझा पाएँगे।”

तभी बीच में आकर अमित बोल पड़ा,”ये लोग मुझे दो सालों के लिए कनाडा भेज रहे थे।”

वो उछल कर बोलीं,”अरे ये तो बहुत बढ़िया बात है। मेरी सभी सहेलियों के बच्चे विदेशों में ऊॅंची नौकरियों में हैं।”

“पर मैं अपना देश छोड़कर नहीं जाना चाहता। उससे भी बड़ी बात ये है कि मैं  आप सबको छोड़कर नहीं जा सकता।”

“अरे बेटा, दो साल की ही तो बात थी, यूँ ही फुर्र से उड़ जाते।”

“पर उन दो सालों में बहुत कुछ मिस हो जाता। मैं अपने बच्चों का बचपन मिस कर जाता, अपनी प्यारी माँ का बुढ़ापा मिस कर जाता।”

सब हॅंसने लगे थे। वो मन ही मन बहुत इतराने लगी थीं; पर ऊपर से गुस्से में बोलीं, “तुमसे तो मेरा सुख देखा ही नहीं जाता है। मैं भी तो पार्क में अपनी सहेलियों के बीच शान बघारती कि मेरा भी बेटा कनाडा में है। हाय री किस्मत, मेरे बेटे को मेरे बुढ़ापे की ज्यादा चिंता है।”

अमित लाड़ से उनसे चिपट गया। दिव्या दौड़कर सबके लिए चाय बनाने चल दी।


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