प्रेम
वह प्रेम दिवस का आयोजन था। लाल रंग के गुलाबों¸ दिल के आकारों की विभिन्न वस्तुएँ। रंग बिरंगे और अपेक्षाकृत स्मार्ट परिधानों में युवक युवतियाँ अपने तईं इकरार–इजहार आदि कर रहे थे। कोई झगड़ रहा था तो किसी...
View Articleपेंशन
“अम्मा तुम भी ना.. कर दी ना देर. तुम्हें तो समझाना बेकार है. एक दिन घंटी नहीं डोलाती, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता.. जानती हो ना बैंक में कितनी लंबी लाइन लगी रहती है, तो भी बैठ गई भोग लगाने।” माँ...
View Articleइस्तीफा
बाज़ार से कुछ खरीदारी करके लौटी ही थीं। थैले एक तरफ़ पटक कर चाय के लिए कहने ही वाली थीं, तभी एक तरफ़ मुँह लटकाए बैठी दिव्या पर निगाह पड़ी। वो चिंतित होकर पूछ बैठीं,”क्या बात है? बहुत चिंतना में लग रही...
View Articleचटसार
मौजा कबखंड की मुख्य सड़क के किनारे एक बीमार सा भवन, जिसके दरवाजे और खिड़कियाँ कब के निकल चुके थे। अपनी बदहाली पर चुपचाप आँसू बहाता वह गाँव की प्राथमिक पाठशाला थी। कुछ बच्चे नंग–धड़ग, कुछ मैले–कुचैले,...
View Articleऔकात
पद के मद में आकंठ डूबे श्यामसुंदर दास ने कभी किसी को तरजीह नहीं दी। सबको एक ही लाठी से हाँकते रहे। क्या घर, क्या बाहर सब जगह एक ही जैसा व्यवहार। चाहे वह मातहत कर्मचारी हो या पदाधिकारी या दोस्त, सबको...
View Articleनई पुस्तकें
1-लघुकथा : रचना पद्धति और समीक्षा सिद्धांत- पुरुषोत्तम दुबे, प्रकाशक : राइजिंग स्टार्स,गली नंबर 15, मौजपुर,दिल्ली-110053, संस्करण-2022, मूल्य-450/-,पृष्ठ-160 2-जिस्मों का तिलिस्म( लघुकथा-संग्रह) :...
View Articleअपाहिज
पश्चिमी रंग में रंगते जा रहे एक पुत्र ने किसी तरह साहस जुटा कर अपने भारतीय रंग में रंगे संस्कारी पिता से कहा, “ पापा ! मैं शादी करना चाहता हूँ|”“क्यों ?’’“बेटे ! पहले अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, फिर जो...
View Articleलघुकथा:परिपक्व विधा
हिंदी गद्य साहित्य की एक सशक्त और स्वतंत्र विधा लघुकथा के नाम से इंगित है ‘लघु आकार की कथा।’ कथा के कुल की यह सबसे छोटी परंतु एक अहम इकाई है, जिसका मूल कथा -तत्त्व ही है और जिसका अपना एक अलग अस्तित्व...
View Articleलघुकथा के सामाजिक सरोकार-2
शिक्षा-जगत् का समाज मनोविज्ञान यदि उत्तरदायित्व का पालन किया जाए, तो शिक्षक का कार्य सर्वाधिक कठिन है। शिक्षक के कार्य को अन्य व्यवसाय या नौकरी की तरह नहीं देखा जा सकता । एक माता/ पिता अपनी 2-3 सन्तान...
View Articleलघुकथाएँ
1- ऐसा नहीं देखना बैग को मेज पर रखकर वह सोफे पर निढाल बैठ गया। दिमाग अभी भी भन्ना रहा है। पत्नी भीतर से गिलास में पानी लेकर आ गई। “रख दो।” मेज की तरफ इशारा कर वह बोला। पत्नी ने पानी का गिलास मेज पर...
View Articleप्रार्थना(अरबी- मिस्र)
मेरी उम्र सात वर्ष से कम ही रही होगी, जब मैंने क्रान्ति के लिए प्रार्थना की। उस सुबह भी मैं रोज़ की तरह नौकरानी की उँगली पकड़कर प्राथमिक स्कूल की ओर जा रहा था। पर मेरे पाँव इस तरह घिसट रहे थे जैसे कोई...
View Articleकथादेश/ क्षितिज- लघुकथा समालोचना अंक:
1-कथादेश में प्रकाशित प्रतियोगिता-14 की पुरस्कृत लघुकथाएँ। 2- क्षितिज का लघुकथा समालोचना अंक: सम्पादक-सतीश राठी, दीपक गिरकर: निम्नलिखित लिंक को क्लिक करके अंक की रचनाएँ पढ़ी और डाउनलोड की जा सकती हैं–...
View Articleमानुष -गन्ध/ मनखी की बास
गढ़वाली अनुवाद: डॉ. कविता भट्ट हवा माँ हळकि सरसराट अर छिबड़ाट सि लगि; ना , यु मातर हवा कु फफराट नि छौ। ये माँ मनखि कि बास मिलीं छै। जु लोग सदानी, घड़ी घड़ी ये का ध्वारा रंदन, वु ये भूली सकदन। बल्कि...
View Articleसमकालीन लघुकथा : जन-संघर्ष और तज्जनित अनुभवों को आवाज़ में तब्दील करने का...
शास्त्र-ज्ञान और रचनात्मकता लघुकथा-रचना के सिद्धान्तों को बताने वाली अनेक आलोचकों की पुस्तकें अब तक प्रकाश में आ चुकी हैं। इन समीक्षा लेखों और पुस्तकों की आवक के बाद सवाल यह पैदा होता है कि यदि कोई...
View Articleमेरी पसन्द
इस बार के स्तंभ ‘ मेरी पसंद ‘ में मैंने जानबूझकर दो ‘ लघुकथाकारों ‘ को लिया , ‘ लघुकथाओं ‘ को नहीं। लघुकथाकारों को लेनेबैठता , इनकी – उनकी क़मज़ोर बीस लघुकथाओं में से कोई दो मज़बूत चीजें चुन लेता।...
View Articleकैक्टसःफूल भी चुभन भी
वर्तमान समय को लघुकथा का स्वर्ण काल कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी। लघुकथाएँ पढ़ने में जितनी सरल लगती हैं ,उनकी रचना या लेखन उतना ही कठिन है।सोशल मीडिया ने जितना इस विधा को पुष्ट किया उतना ही...
View Articleचश्मे का नम्बर
मंदिर की सीढ़ियों से उतरते हुए संतुलन बिगड़ने पर अचानक दादी का चश्मा सीढ़ियों के किनारे बनी गंदी नाली में गिर गया। तभी नीचे खड़े सफाईकर्मी ने तुरंत नाली में हाथ डालकर चश्मा निकाला और साफ पानी मे धोकर...
View Articleटुकड़े-टुकड़े( कत्तर)
गढ़वाली अनुवाद; डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ पूरू तलाक, होणा बाद बि ऊँन अप अपड़ी पैलि जननि कि क्वी बि चीज घौर म नि रैंण दे। वींक पुरणां कपड़ा बि काम वळि तैं दे देंन। जौं फोटु माँ वा छै, उँ का बि कत्तर –...
View Articleलघुकथाएँ
1-मियति विमला को गाँव वाले मास्टरनी कह कर बुलाते थे; क्योंकि उसके पति गाँव के सरकारी स्कूल में मास्टर जो थे। गाँव में मास्टरनी को भी मास्टर जी की तरह ही सम्मान प्राप्त था। विगत दो वर्ष पहले गाँव के...
View Article