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Channel: लघुकथा
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मेरी पसन्द

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इस बार के स्तंभ ‘ मेरी पसंद ‘ में मैंने जानबूझकर दो ‘ लघुकथाकारों ‘ को लिया , ‘ लघुकथाओं ‘ को नहीं। लघुकथाकारों को लेनेबैठता , इनकी – उनकी क़मज़ोर बीस लघुकथाओं में से कोई दो मज़बूत चीजें चुन लेता। युगल और सुकेश साहनी समूचे लघुकथासाहित्य के सर्वाधिक दो बड़े नाम हैं, जो नाम हैं। सिर्फ़ लघुकथा नहीं,उसकी विशिष्टता रचते हैं।

युगल कथा से लघुकथा में आये थे ,पर कहानीपन अपनी लघुकथाओं में उन्होंने कभी न आने दिया। यदि ऐसा करते,तो लघुकथा नहीं , संक्षिप्त कथा लिखकर चले जाते। उन्हें कोई पूछता भी नहीं। अपनी मृत्यु के सात सालों के बाद भी अपनी एक एक लघुकथा के लिएयुगल अपने आप में बड़े नाम के वैभव के लिए याद किये जाते हैं। ‘ गरीबी और रेखा ‘ उनकी ऐसी ही प्रसिद्ध लघुकथा है , जो उनकेलघुकथा संग्रह ‘ किरचें ‘ ( अयन प्रकाशन , नई दिल्ली , वर्ष 1983  ) की पहली रचना है।वस्तुतः संदेश , विचार और आवश्यकता केबीच सीमाभंजक या भ्रमरोधी जो रेखा है,वह स्थूल नहीं है। हम आवश्यकता के अनुकूल ही विचार छोड़ने के लिए अपनी ओर से संदेशप्रसारित करते हैं। तब भी युगल की ‘ गरीबी और रेखा ‘ विचार – विस्तार और विधा –  विद्रोह की लघुकथा है। विधा विद्रोह कीलघुकथा इसलिए कि इसका विषय किसी निबंध या वैचारिक पाठ के अन्य अगतिशील अभिव्यक्ति – आलेखभर का है। परंतु युगल नेइसे  शिल्प की गंभीर जीवंतता का प्रवाह दिया और यह लघुकथा बन गयी। लघुकथा ऐसी , आप कहें कि  ऐसी ही होनी चाहिए।लघुकथा का यह शिल्प उस वैशिट्ष्य को  निर्धारित करता है कि ऐसा सिर्फ लघुकथा में ही कहा जा सकता था,तो कहा गया।

यहाँ प्रतीकों का उत्सव है,एकांत आलाप या संकोच नहीं।यह कथा युग – जमाने की अनिश्चितता से आरंभ होती है,पर इसमें समय,उम्रऔर जीवन की निश्चिति है।हर जीवन में गरीब और गरीबी का यही प्रकार,स्वभाव और उसकी निरीहता होती है। राजा मंत्री हो , चाहेकुछ और नाम से जाना जाता हो , अपने शौक , सितम और अव्यवस्था की क्रूरता क़ायम रखता है।प्रजा परिश्रम का पर्याय रहती है , मोहताज़ और मुफलिस।वह किसी जाति – धर्म की नहीं , उसका कोई नाम हो सकता है।इस लघुकथा में प्रजा का संवाद : ” झोपड़ीखड़ी करने के लिए एक हजार और रिक्शा खरीदने के लिए दो हजार ।  ” जैसा संवाद इसलिए गढ़ा गया कि लेखक को किसी प्रजा मेंजीविका और घर की इच्छा का  ख़तरनाक़ – सा लगनेवाला स्वप्न दिखाना था।राजा ने प्रजा के उत्तरों की विवेचना अपने स्तर से की,शुक्रहै कि उसके नायब – कर्मचारी ने समीक्षा न की , की होती तो क़यामत ले आते। योजनाओं का उजास तो राजा के बाद यही लोग भोगतेहैं और प्रजा अपने असहाय होने का कर्त्तव्य निभाती है।

‘गरीबी और रेखा’  ने निबंध के विषय पर व्यंग्य के प्रवाह से लिखी गयी उम्दा रचना है।गरीबीरेखा का विश्लेषण करने में निर्भ्रांत औरनिष्णात लघुकथा। युगल ने उन दिनों के सर्वाधिक प्रचलित या एक प्रकार से घिसे – पिटे विषय पर अपने शिल्प का सुगठन लेकर जोलिखा, अन्यत्र मुझे न मिला।

समूची देह की ग़रमी भले कहीं से दिखे,वह कलेजे का कमाल होती है। आप जिसे संवेदना कहकर सभ्य संवाद करना चाहते हैं , मैं उसेकलेजे के विस्तार और आकार में समझता हूँ। तभी सुकेश साहनी की लघुकथा ‘ ठंडी रजाई ‘ को कमज़ोर होती मानवीयता या समाप्तहोती संवेदनशीलता की लघुकथा नहीं, बल्कि ठंडे कलेजे की लघुकथा कहता हूँ। कलेजा वैसा कि जो अनेक बार धड़कना भूलकर सोनेलगता है,फिर चौंककर उठता भी है। आप इस उठने को दया न कहकर यदि सहिष्णुता भी कहें , तब भी कमतर विशेषण है। वस्तुतःकलेजे का कमाल देह की गरमी का हिस्सा है और यह ग़रमी कलेजे से बाहर निकलकर कोई देह नहीं महसूस कर सकती।

 ‘ ठंडी रजाई ‘ मैंने बचपन में पढ़ी थी। उस वक्त में,जब लघुकथा का न विषय ऐसा होता था ,  न शिल्प। भ्रष्टाचार , रिश्वतखोरी,लूट , शोषण , दहेज और इसी प्रकार के दूसरे व्यभिचार लघुकथा के विषय होते थे। लेकिन किसी को अपनी रजाई न देना व्यभिचार नकहलाये , पर अत्याचार कहलायेगा। क्योंकि संवेदना के सूखने का यही ठंडा वक्त होता है , यहीं से समाज पराश्रय के प्रभाव से दूरहोकर सहगामी एवं सहचारी मनोवृत्तियों वाली सामाजिकता पर अन्याय करने की शुरुआत कर देता है।मसलन , अपनी रजाई नदेनेवाला दंपति इसके आगे दूसरे की रजाई छीन लेने का भी विद्रूप और अयशकारी स्वभाव जुटा लेता है। अतः अपनी रजाई पड़ोसी कोन देना पूर्ववर्ती  संक्रमण और परवर्ती घात का संकेत है।

लघुकथा लंबे समय तक परिस्थितियों पर रोने के लिए लिखी गयी। विकट प्रपंचों एवं उत्पीड़न के कथ्य में कमजोर होती चली गयी औरलोगों ने बीस में से उन्नीस लघुकथाओं वाले पन्नों पर चिनिया बादाम और नमक खा लिया। 

‘ ठंडी रजाई ‘ की गंध दंपत्ति के गोश्त से नहीं गरमानेवाली थी , कलेजा लगा और संवेदना जागी,तो स्वतः नींद आ गयी।ऐसे ग़रमी आतीहो कि नहीं , आनी चाहिए। लघुकथा के जिम्मे यह बड़ा कार्य है कि वह समाज को उपालंभों की गालियों से न कोसे , आदमीयत कापाठ पढ़ाए लघुकथा ही नहीं , दूसरी सभी साहित्य विधाओं का यह निज धर्म होता है।

सुकेश साहनी के शिल्प की एक बारीक विशेषता है कि वह लघुकथा को ख़त्म करने की जल्दीबाजी नहीं दिखाते। उसका विस्तार बड़ेस्तर पर संभालते हैं। निस्संदेह लघुकथाएँ हों,तो ‘ ठंडी रजाई ‘ जैसी ।  वरना न हों।

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1-ठंडी रज़ाई/ सुकेश साहनी

“कौन था ?” उसने अँगीठी की ओर हाथ फैलाकर तापते हुए पूछा ।

“वही, सामने वालों के यहाँ से,” पत्नी ने कुढ़कर सुशीला की नकल उतारी, “बहन, रजाई दे दो, इनके दोस्त आए हैं।” फिर रजाई ओढ़ते हुए बड़बड़ाई, “इन्हें रोज़-रोज़ रजाई माँगते शर्म नहीं आती। मैंने तो साफ मना कर दिया- आज हमारे यहाँ भी कोई आने वाला है।” “ठीक किया।” वह भी रजाई में दुबकते हुए बोला, “इन लोगों का यही इलाज है ।”

“बहुत ठंड है!” वह बड़बड़ाया।

“मेरे अपने हाथ-पैर सुन्न हुए जा रहे हैं।” पत्नी ने अपनी चारपाई को दहकती अँगीठी के और नज़दीक घसीटते हुए कहा ।

“रजाई तो जैसे बिल्कुल बर्फ हो रही है, नींद आए भी तो कैसे!” वह करवट बदलते हुए बोला ।

“नींद का तो पता ही नहीं है!” पत्नी ने कहा, “इस ठंड में मरी रजाई भी बेअसर सी हो गई है ।”

जब काफी देर तक नींद नहीं आई तो वे दोनों उठकर बैठ गए और अँगीठी पर हाथ तापने लगे।

“एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी?” पति ने कहा।

 “कैसी बात करते हो?”

“आज जबदस्त ठंड है, सामने वालों के यहाँ मेहमान भी आए हैं। ऐसे में रजाई के बगैर काफी परेशानी हो रही होगी।”

“हाँ, तो?” उसने आशाभरी नज़रों से पति की ओर देखा ।

“मैं सोच रहा था—मेरा मतलब यह था कि—हमारे यहाँ एक रजाई फालतू ही तो पड़ी है।”

“तुमने तो मेरे मन की बात कह दी, एक दिन के इस्तेमाल से रजाई घिस थोड़े ही जाएगी,” वह उछलकर खड़ी हो गई, “मैं अभी सुशीला को रजाई दे आती हूँ।”

वह सुशीला को रजाई देकर लौटी तो उसने हैरानी से देखा, वह उसी ठंडी रजाई में घोड़े बेचकर सो रहा था । वह भी जम्हाइयाँ लेती हुई अपने बिस्तर में घुस गई । उसे सुखद आश्चर्य हुआ, रजाई काफी गर्म थी।

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2-गरीबी और रेखा /  युगल

अब मेरे जेहन में यह बात आ नहीं रही है कि वह कौन – सा युग ज़माना था। प्रजातंत्र वाला या राजतंत्र वाला , या सबों के बेतुके घालमेल वाला।क्योंकि जो मंत्री कहलाता था,वह दरअसल राजा ही होता था।सो,उस ज़माने में राजा को शौक हुआ कि वह प्रजा से मिले,उसके सुख – दुःख जानने के लिए।प्रजा, जो रियाया इसलिए कहलाती थी कि जाने कब से रिरिया रही थी।वह जनता भी कहलाती थी।इसलिए कि उसे वोट देने का,पछताने का और रोने का अधिकार था और उसके वोट छीनने का अधिकार भी कुछ बाहुबलियों को पालन करना होता था।प्रजा में कुछ गरीब लोग थे,जिन्हें बदमग्ज लोग आम आदमी कहते थे।

सो राजा की प्रजा से मिलने की यात्रा शुरु हुई। साथ में नायब,अधिकारी और कर्मचारी भी थे।टीवी वाले भी थे। राजा हवा में दौड़ता था,महल में रहता था। फूलों की सेज पर सोता था।उसने न गाँव देखा था,न गाँव के आदमी देखे थे।जिस गाँव में उसे लाया गया था,वहाँ उसने देखा – एक आदमी पेड़ के तने से टिका खड़ा है।बेतरतीब बढ़े रूखे बाल , सिर , ओठ ,गाल और ठुड्ढी पर जंगली घास की तरह उगे थे।राजा ने मीठी बोली में जिज्ञासा की : ”  तुम्हारा नाम ? ”

” रज्जा ।  ”

राजा को लगा,यह आदमी राजा का विद्रूप कर रहा है।उसने गुस्से की आग को शरबत से बुझाया :

” राजा सिंह , रज्जब या रोजर ? ”

” रज्जा ।  ” वह आदमी बोला।

ग्राम – प्रमुख ने स्पष्ट किया : ” यह सिर्फ रज्जा है , हुजूर ! इसकी कोई जात नहीं, कोई धरम नहीं।यह धर्म निरपेक्ष है।”

राजा ने ग्राम प्रमुख का वर्जन करते हुए कहा : ” मुझे खुद पूछने और जानने दीजिए।हाँ,तुम्हें राज्य की ओर से कभी कोई सहायता मिली है ? ”

वह आदमी सिर्फ मुस्कुराकर रह गया।

राजा बोला : ” लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर लाने के लिए हमारी कई योजनाएँ हैं,उसके तहत कभी कुछ मिला ? ”

” झोपड़ी खड़ी करने के लिए एक हजार और रिक्शा खरीदने के लिए दो हजार ।”

” रिक्शे से कितनी कमाई हो जाती है ?”

वह आदमी मुस्कुराने लगा।

राजा बोला : ” बहुत खुश हो । अच्छी आमदनी हो जाती है ? ”

वह आदमी कुछ स्मरण करता हुआ बोला : ” अब क्या कहें , हुजूर ? मैं तो सब गड़बड़ा गया। आगे गाँव में और लोग खड़े हैं।शायद उन्हें याद हो कि क्या कहना है । मैं तो भीख मांगता हूँ।किसी तरह रोटी का इंतजाम हो जाता है। मैं गरीबी को जानता हूँ।रेखा को भी जानता हूँ। वह मेरे साथ भीख मांगती थी।रेखा तो भगवान को प्यारी हो कर ऊपर चली गयी और मैं गरीबी के साथ नीचे रह गया हूँ । ”

पता नहीं , राजा प्रजा से मिलने उस दिन कहाँ तक गया।


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