“ओह,पापा, ये क्या,,अब तो ये बन्द कर दीजिए। स्वीपर से क्यों नही करवाते!!” झुँझलाई हुई आवाज़ में लम्बे समय बाद गाँव आए बेटे ने तेज आवाज़ में कहा।
टॉयलट को साफ करते हुए पिता एकबारगी थम गए; लेकिन मुस्कुराकर बोले, “अपना काम खुद करने में क्या दिक्कत! “
“हमारी गन्दगी दूसरे क्यों साफ करें!”
“कम से कम अपनी बहू व नाती के सामने तो न करते।” वह फिर झुँझलाया।कॉरपोरेट ऑफिस में उसके साथ काम कर रही पत्नी व बच्चे को इसीलिए वो गाँव लेकर नही आना चाहता।
इस माहौल को शांत करने का प्रयास करते हुए माँ मुस्कुराते हुए बोली- आखिर गांधी जी भी तो खुद के अलावा अपने मोहल्ले का मेला भी साफ करते थे।
वह फिर झुँझलाया- “अरे वो आजादी का आंदोलन चालू कर रहे थे,तब ऐसा माहौल बनाना जरूरी था।”वो समाज मे जागृति…अचानक वो चुप हो गया। उसे बचपन की घटना याद आई, जब वो छठी में था और उसका खास दोस्त उस दिन स्कूल नहीं आया था। उसको तलाश करने पर वह अपने बीमार पिता के स्थान पर हाथों से पाखानों से भरी हुई मैला गाड़ी खींचते हुए दिखा था। उसको याद आया था कि समाचार पत्र में छपी वह खबर , जिसमें लिखा था कि प्रदेश से मैला ढोने की प्रथा समाप्त कर दी गई है…और उसने उस पेपर को लाकर टुकड़े- टुकड़े कर उसी मैला में डाल दिया था और मैलागाड़ी को ढोने में दोस्त की मदद भी की थी।
लेकिन बचपन का वह आक्रोश अब कहा चला गया!! अचानक उसका दिल भारी हो गया,,और उसने अपने पिता के हाथ से झाड़ू ले ली और मुस्कुराकर सफाई करते हुए बोला- ” मैं तो वैसे ही पापा को छेड़ रहा था।”
-0- अतिरिक्त कलेक्टर, सेवानिवृत्त, भोपाल म. प्र .
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