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Channel: लघुकथा
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आम आदमी

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चुनाव–बुखार चरम सीमा पर था। सारा शहर, पोस्टरों, बैनरों, पैम्पलेटों से पटा पड़ा था। जगह -जगह लोग चाय की चुस्की या दारू के  घूँट के साथ, बहस में उलझे थे, मुद्दा था–आम आदमी।

फटा पाजामा, गंदा, मुड़ा–तुड़ा कुर्ता पहने एक खस्ता हाल आदमी उनके पास खड़ा था। उनसे बेखबर वह, न तो अपने बाएँ देख रहा था, और न ही दाएँ। वह ऊँचाई पर टंगे कपड़े के बैनरों को देख रहा था, नदीदी नजर से।

उसे प्रतीथा थी, कि कब यह मेला खत्म हो, कपड़ों की लूट हो, और उसे दो कपड़े मिल जाएँ, एक बिछाने को, दूसरा ओढ़ने को।

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