वह अपने मित्र के साथ बातों में मशगूल था, तभी आवाज आई-‘‘पोस्टमैन..!’’
‘‘तुम्हारे पास अभी भी पोस्टकार्ड आते हैं?’’ मित्र को आश्चर्य हुआ।
‘‘हाँ, मेरी माँ यह पत्र भेजती हैं।’’
‘‘मोबाइल के जमाने में माँ तुम्हें पत्र भेजती हैं?’’
‘‘रुक, तुझे पूरी कहानी सुनाता हूँ। पिताजी के चल बसने के बाद मैं गाँव के खेत बेचना चाहता था, परंतु माँ तैयार नहीं हुई। हमने खेती बँटाई पर देनी चाही, इस पर भी माँ नहीं मानीं। वर्षों से लगे हरवाए काका का जीवन उनकी आँखों के सामने नाच रहा था। मैंने माँ से कहा-तुम काका के साथ खेती कर लो, मैं बीच-बीच में आकर देखता रहूँगा। मोबाइल देना चाहा, मना कर दिया। कहा-कोई काम होगा तो हम चिट्ठी भेज दिया करूँगी। तब से यह सिलसिला जारी है।’’
वह सभी पत्र उठा लाया-देखो, यह 15 अक्टूबर का पत्र भइया, श्यामा के बछिया हुई है, बड़ी प्यारी है। तुम लोगों की याद आती है। बचपन में तुम लोग श्यामा के साथ आँगन में खूब उछल-कूद करते थे। यह 10 नवम्बर का-भईया, बोनी को टेम हो गओ, खाद बीज को इंतजाम करो। यह 15 दिसम्बर का-पूरे खेत हरिया रहे। ठंड बहुत पड़ रही है। हरवाए काका को दो कम्बल भिजवा दो। यह 12 जनवरी का -भईया, चना फर गए हैं। एक आध दिन आ जाओ। हम भी तुम्हारे साथ बूँट-होरे खा लैहें।
हम लोग गए थे, यह देखो फोटो…..और मोबाइल पर फोटो दिखाने लगा- बहुत अच्छी फसल हुई है। बच्चों की अच्छी पिकनिक हो गई। यह देखो, बच्चे बछिया को कितना प्यार कर रहे, पूरा वीडियो बनाया है।
यह 15 फरवरी का-बछिया मर गई भईया। गाय छुटा गई। यह देखो 20 मार्च का-भईया होरी पर तो आये नहीं। फसल कटाई को तैयार है। जल्दी व्यवस्था करो। पानी बूँद को भरोसा नहीं है।
अब जाऊँगा फसल कटवाने।
देखूँ, क्या खबर दी है माँ ने। चिट्ठी पढ़ने लगा-भईया, नहीं आ पा रहे तो नहीं आओ। ओला-पानी में फसल तो सब बिछ गई। बालों से दाने झर गये। अब हारभेस्टर को काम नहीं है। चिट्ठी पर यह बूँद का निशान कैसा है…! कई अक्षर धुल-से गए हैं। मार्च क्लोजिंग के चक्कर में जा नहीं पाया और यहाँ पर पूरी क्लोजिंग हो गई।
एक और कार्ड है। देखे, क्या लिखा है। एक ही लाइन है-भइया, खेतों में खुद उतरना पड़ता है, संदेशों से खेती नहीं होती।