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Channel: लघुकथा
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विकास

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“दस साल में कितना बदल गया गाँव!” -पक्की सड़क और घर की छतों पर लगे डिश एंटिना को देखकर मेरे  मुँह से निकला।

“बहुत बदल गया है। घर-घर टीवी और वाशिंग मशीन है और तो और एसी भी लग हैं अपने गाँव में।”-ई रिक्शा वाला गर्व से बोला।

“हम्म दिख रहा है।” इतना कह मैं खेतों की हरियाली निहारने लगा।

“साली….मरेगी क्या?” तभी अचानक झटके के साथ ब्रेक लगाते हुए रिक्शेवाला चिल्लाया।

मैने पलटकर देखा तो एक औरत सहमी- सी खड़ी थी। कपड़े जगह- जगह से फटे हुए थे, धूल से सने हुए  चेहरे पर बिखरे थे।

फटकार सुन वह सड़क के किनारे सरक गई।

रिक्शा आगे बढ़ गया।

मैंने दोबारा पलटकर उस औरत की तरफ देखा,बालों के बीच से झाँकती उसकी दो आँखें…….कुछ तो था उनमें।

“कौन है, वो औरत…पागल है क्या?”

“नहीं पागल नहीं, किस्मत की मारी है।”रिक्शेवाले ने जवाब दिया।

“मतलब?”मेरी नजर उस औरत पर ही थी, जो धीरे धीरे दूर होती जा रही थी।

“विधवा है……ऊपर से बहुत सुंदर…….न माँ, न बाप, न भाई न कोई बहन, कौन सहारा देता इसको?”इतना कह वह चुप हो गया।

“और ससुराल वाले!!” जाने क्यों मुझे उसके बारें में जानने की इच्छा होने लगी।

“हुउ… काहे के ससुराल वाले!… साले…हरामी ।”वह फिर खामोश हो गया।

“मैं समझा नहीं….।”मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

“सुंदर थी न…..सबको चाहिए ….लेकिन किसी के हाथ न आई।”इतना कह उसनें सड़क पर पिच्च से पान की पीक थूक दी।

“फिर क्या हुआ?”

“फिर क्या? होने क्या था….अब डायन साबित कर दी गाँव वालों ने।” इतना कह उसनें रिक्शे की रफ्तार बढा दी।

अब मेरी निगाह पक्की सड़क पर पड़ी उसकी पान की पीक पर  थी….।

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