लोगों को यह देखकर आश्चर्य होता था कि इतने पुराने पेड़ में अभी तक फल आ रहे हैं। बच्चों का झुंड उसे दिनभर उसी तरह घेरे रहता था जैसे कहानी सुनने की चाह में किसी बुजुर्ग को बच्चे घेरे रहते हैं। न जाने कितनी पीढ़ियों ने उस पेड़ के फल खाये थे। इस कारण गाँव के लगभग हर आदमी का उस पेड़ से रिश्ता सा था। कुछ दिन पहले गाँव में एक सरकारी जीप आयी जो उसी पेड़ के नीचे रुकी। चार पाँच सरकारी लोग उस जीप से उतरे और पेड़ के आसपास की जमीन नापने लगे। गाँव के कुछ जिम्मेदार लोग भी उनके साथ थे। उन जिम्मेदार लोगों की एक डाँट ने पेड़ के आसपास मँडराते बच्चों को वहाँ से भगा दिया और पेड़ के फलों की प्रशंसा करते हुए कुछ फल उन सरकारी लोगों को भी दिये। नापतोल होने के चार दिन बाद पेड़ के आसपास की जमीन को पेड़ सहित कँटीले तारों की बाड़ से घेर लिया गया। पता चला कि शहर के एक बड़े व्यापारी ने वह जमीन खरीद ली है। पेड़ और उसके रसीले फलों की प्रशंसा से प्रभावित होकर उसने पेड़ के चारों तरफ सुंदर चबूतरा बनवा दिया। उसकी देखभाल करने के लिए एक आरक्षी को भी नियुक्त कर दिया और उसे सख्त आदेश दिया कि बच्चे उस पेड़ के इर्द-गिर्द न घूमें जिससे पेड़ को कोई क्षति न पहुँचे। आरक्षी के भय से बच्चों का वहाँ मँडराना बंद हो गया। पेड़ की भरपूर देख-रेख की जाने लगी। सही समय पर खाद पानी दिया जाने लगा। उसकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही थी फिर भी पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि रातों रात पेड़ सूखने लगा, उसके अधपके फल टूटकर जमीन पर बिखर गए। पत्तियाँ लटक गयीं और देखते ही देखते वह पेड़ फल और पत्तियों से विहीन हो गया। इतनी देखभाल के बाद भी पेड़ की यह दुर्दशा सबको आश्चर्य हुआ कि अचानक उस पेड़ को क्या हो गया था।
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