बहुत लम्बा जाम लगा था। देखते ही देखते उनकी कार के पीछे भी कई गाड़ियॉं आ कर खड़ी हो गईं, जिसके कारण अब लौटना भी संभव नहीं था। आफिस से लौटने के बाद वर्मा जी पत्नी के साथ अपने एक पारिवारिक मित्र सक्सेना जी के यहॉं पार्टी में जा रहे थे। बेटा आशीष अपनी बाइक से शाम को ही किसी दोस्त के यहॉं जाने की बात कहकर घर से निकला था। थोड़ी देर पहले उसका फोन आया था। बोला था कि वह सीधे सक्सेना जी के घर ही पहुँच जाएगा।
‘‘अब तो बहुत देर हो गई। आखिर बात क्या है….?’’ वर्मा जी ने बगल में बैठी पत्नी से कहा। मोटर, गाड़ियों के रेले में बीस मिनट से फॅंसी खड़ी वह खुद भी परेशान हो गयी थीं।
‘‘क्या बात है भैया….? यह कैसा जाम लगा है?’’ गाड़ियों के बीच से आड़ा, तिरछा अपनी साइकिल निकालते विपरीत दिशा से आ रहे एक साइकिल सवार से मिसेज वर्मा ने पूछा।
‘‘एक बाइक और कार की टक्कर हो गई है। बाइक वाले लड़के को काफी चोट आ गयी है। अभी पुलिस आयी है।’’ साइकिल वाले ने जाते-जाते बताया।
‘‘जरूर लड़के की ही गलती रही होगी। आजकल के लड़के बाइक चलाते भी तो बहुत खराब तरीके से हैं। ऐसे चलाते हैं जैसे सर्कस कर रहे हों। सूं….करके निकल जाते हैं बगल से। गलती वे करते हैं और अगर जरा सा भी लग जाए तो दोष कार वाले का माना जाता है।’’ मिसेज शर्मा बड़बड़ाने लगीं।
पॉंच-सात मिनट और बीता। अचानक मिसेज वर्मा के मोबाइल का रिंग टोन बजा। उन्होंने देखा तो स्क्रीन पर बेटे का नम्बर था।
‘‘हॉं बेटा, बोलो। तुम पहुँच गए क्या सक्सेना जी के यहॉं ?’’ मिसेज वर्मा बोलीं।
‘‘मैं सबइंस्पेक्टर आर पी सिंह बोल रहा हूँ। छन्नी लाल चौराहे पर आप के बेटे का एक्सीडेण्ट हो गया है।’’ इतना सुनना था कि कार का गेट खोल कर चौराहे की ओर दौड़ पड़ीं मिसेज वर्मा।
‘‘अंधे हो……? देखकर नहीं चलाते….? टक्कर मार दी मेरे बेटे को।’’ अगले ही पल मिसेज वर्मा कार मालिक से झगड़ रही थीं।
‘‘अरी माता जी, मेरी कोई गलती नहीं है। आप खुद देख लीजिए…इस लड़के ने खुद रांग साइड़ से आ कर टक्कर मारी है मेरी कार को। मैंने तो बहुत बचाया है….वरना पता नहीं क्या हो जाता।’’ कार वाला सफाई दे रहा था। दुर्घटना को देखने से भी साफ दिख रहा था कि गलती बाइक वाले की ही थी। लेकिन मिसेज वर्मा मानने को तैयार नहीं थीं।
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