गढ़वाली अनुवाद (डॉ. कविता भट्ट)
“देख माँ यु हमरू असेम्बली हौल च।” आरव उछळि उछलि क अपड़ा माँ – पिता जी तैं अपणु स्कूल दिखौणू छौ।
“माँ यु हमरू कलास रूम च।”
पैरेंट्स- टीचर मीटिंग का बाना स्कूल माँ रौनक ह्वईं छै। एक बच्चा का बाद आरव कु नम्बर ऐ ग्याई।
औपचरिक गुड मौरनिंगा का बाद मास्टरयाणी न आरवै कि तारीफ का पुळ बांधियाली छा। आरव पढै अर खेलु माँ में छाई भी तारीफ़ा लैक।
“ज आरव खेलि कौर अपड़ा दगडयों कि दगडि ” मास्टरयाणी न आरवै कि पीठ पर थपाकि मारिक बोलि। आरव ई जग्वाळनु छौ।
अब खुस ह्वेकि बैठी मास्टरयाणी क मुक पर थोड़ा तनाव एैगी
“क्य बात च मैम ? आरव की क्वी शिकायत च?”
“मिसेज़ सिंह जादा चिन्ता कि बात त नी च,पर पिछला काफी टैम बिटि देखणु छौं कि आरव अपडी गलती पर भी कबि बि ‘सॉरी’ नि बुल्दु। खेलदी बगत बि कभी कै बच्चा पर लगि गे, त बच्चा आपस म फटाफट सॉरी बोलि दिन्दन। आपस म क्वी झगड़ा हूंण पर बि आरव अड़ जान्दू कि वेन सॉरी नी बुन्न। य बात अगनै चलिक सै नी च ये का वास्ता।”
“जी मैम मि जणदु छौं वेकी य आदत, मिन बि यां का बारा माँ भौत समझाई ; पर क्वी फर्क़ नि पोडि। घार म बि यु कब्बी कै गलती पर सॉरी नी बुल्दू।”
“मिसेज सिंह गलत नि समझियां, एक बात पुछौं?”
“जी मैम”
“क्य मिस्टर सिंह कब्बि आप तैं सॉरी बुलदन?”- मास्टरयाणीन नेहा की आँखियों म देखिक बोलि।
“यु त कब्बि ग़लती करद ई नि छन न” नेहा बुन्नै कि कोसिस कंन्नि ई छै; पर बात कखि वीं का गौळा माँ अटकणी छै।
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