नई पुस्तकें
रोशनी के घट (लघुकथा-संग्रह): कमल कपूर, प्रकाशन: 2022 , मूल्य : 440 /- , पृष्ठ : 176, प्रकाशक : अयन प्रकाशन, जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110-059 -0- हाल-ए-वक्त (लघुकथा-संग्रह): चन्द्रेश...
View Articleलघुकथाएँ
1- टू फॉर जॉय उसने कमरे के बाहर बालकनी में झाँका। नन्हा अभी तक जमीन पर उकड़ूँ बैठा, मुँडेर की झिर्रियों में से सड़क के किनारे खेल रहे बच्चों को निहार रहा था। उसने पास जाकर आवाज दी, “नन्हे!” नन्हे ने...
View ArticlePrayers
Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh A luxurious bungalow. Cars. Servants. Comforts. An air-conditioned room. A big wardrobe and a treasure-chest. Neatly decorated bundles of...
View ArticlePanic
Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh The car was running at the speed of one hundred kilometres per hour. He kept his eyes on the road ahead, his face taut with concentration....
View Articleगलती
गढ़वाली अनुवाद (डॉ. कविता भट्ट) “देख माँ यु हमरू असेम्बली हौल च।” आरव उछळि उछलि क अपड़ा माँ – पिता जी तैं अपणु स्कूल दिखौणू छौ। “माँ यु हमरू कलास रूम च।” पैरेंट्स- टीचर मीटिंग का बाना स्कूल माँ रौनक...
View Articleरक्षा-कवच
गढ़वाली अनुवाद(डॉ. कविता भट्ट) उ चारि नेवादै कि बदनाम बस्ती क उछियदि आज बि अपडा शिकारै कि खोजम छा। भले ई स्टेट पुलिस टकटकि हुईं छै ,पर पुलिस वळो तैं चकमा देण वु जणदा छा। भलु हो वीं अण्डरवर्ल्ड पत्रिका...
View Articleखूबसूरत
देर रात हम समंदर किनारे बैठे थे। देर मतलब.. बहुत देर। यही कोई रात का डेढ़ बजा होगा। समंदर की लहरें उफान पर थी। मैं नीली डेनिम शॉर्ट्स और सफेद स्पैगिटी में , अपने घुटने मोड़कर बैठी, उँगली से रेत पर...
View Articleदोपहरखिली
उसने पुनः कागज़ फाड़ कर गोला बनाया और कूड़ेदान के हवाले कर दिया। फिर से लेखनी को दुबारा लिखने का आदेश दिया। वह भी बेमन से चल पड़ी। अभी दो वाक्य भी न लिख सकी, उसकी रुलाई फूट गई। वह फूलों के विषय में न लिख...
View Articleपाठ
पाखी को उसके घर जाकर फिज़िक्स की ट्यूशन पढ़ाते मुझे एक साल और पाँच महीने हो गए थे। पंद्रह-सोलह वर्षीय खूबसूरत,मासूम-सी पाखी बहुत ही मेधावी थी। उसके पापा बचपन में ही एक हादसे में गुजर गए थे। तब से उसकी...
View Articleलघुकथाएँ
1-अपनी ही आग में भाईचारे का युग था। सब मेल-मिलाप और प्यार-प्रेम से रहते। हुनरमन्द औजारों तक को इस अपनत्व से हाथ में लेते और काम को इस श्रद्धा से करते कि पूजा कर रहे हों। वह जुलाहा बड़े जतन और प्रेम से...
View Articleलघुकथा का विराट मिशन: मधुदीप
मधुदीप हमारे बीच नहीं रहे ! यह साधारण वाक्य नहीं है। एक गहरा उत्ताप इस “बीच “में समाया है। यह उत्ताप एक मित्र के जाने का नहीं है। एक लेखक के अलविदा होने का नहीं है। यह कुछ खाने और पाने मात्र का नहीं...
View Articleरिवाइंड: एक अरण्यकथा
वह भाग रही थी जी –जान लगाकर । भाग रही थी पूरे दम-ख़म के साथ ….लंबी-लंबी छलांगें लगाकर । आगे ज़िदगी थी । पीछे मौत । ……..एक ही क़दम का फ़ासला रह गया था बस । मौत बनकर दो खूँखार भेड़िये पीछे थे । भेड़िये...
View Articleरूपांतर
जब भी मुश्किल समय आता उसे पिता की सीख याद आती -“बेटा पत्थर की बन जाना; दुनिया में दिल की कोई नहीं समझेगा।” वह धीरे-धीरे पत्थर में बदलती गई। माँ के वचन कानों में गूँजते रहते- “बेटा बात को जितना बढ़ाओगे,...
View Articleपिण्ड दा भ्रा
पिंड दा भ्रा/ प्रतिभा पाण्डे “डज़ एनी बडी नो हिम?’’गोरा पुलिस वाला कड़क आवाज़ में पूछ रहा था। रिनी धीरे से उसके कान में फुसफुसाई “चलो, चलो यहाँ से।’’ उसके दिमाग़ में पिछले महीने की घटना घूम रही थी। उस...
View Articleबाबू जी
मैं बाबूजी के साथ बरसों-बरस रही। गर्मी हो बारिश हो या हड्डियों को भी ठिठुराती ठंडी हवा ,जब बाबूजी पैडल मारते तो मैं सरपट दौड़ती। इस घर ,उस घर, पेपर बाँट मैं और बाबूजी घर लौटते। जब तक बाबूजी दो...
View Articleमुआवज़ा
आज एक महीना होनें को आया है अम्मा और बाबूजी को केदारनाथ की यात्रा पर गए हुए । वहाँ आये तूफ़ान में हज़ारों लोग कालकवलित हो गए और हज़ारों लोग अभी भी लापता हैं ऐसी ख़बरें रोज़ टीवी और अख़बारों में आ रही थी ।...
View Articleचरित्र
पहला पैग बनाकर दो सिप ले उसने सिगरेट सुलगाई और घड़ी को देखा, उसके दोस्त के आने में अभी वक़्त था। चिकेन को मेरिगेट करने की गरज से उसने पहले ही तैयारी कर रखी थी। मसाले इत्यादि भी सब तैयार थे। किचन में...
View Articleमाँ
उस दिन चौराहे पर एक साँड बिफर गया , एक संभ्रांत महिला को उठा कर फेंक दिया , फिर सींगों मे उलझा हवा में उछल दिया , फिर से सींगों मे उलझाकर फेंक मारा एक बार दो बार, तीन बार । तब तक भीड़ जमा हो गई थी।...
View Articleतीन लघुकथाएँ (पंजाबी)
अनुवाद; योगराज प्रभाकर 1-हैसियत / ਹੈਸੀਅਤ ਓਹ ਦੋਵੇਂ ਵਪਾਰੀ ਸਨ। ਦੋਵੇਂ ਮਾਲਦਾਰ ਸਨ। ਸਬਬ ਨਾਲ ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ਸੁਭਾਸ਼ ਸੀ। ਇਸ ਵੇਲੇ ਦੋਵੇਂ ਇੱਕੋ ਗੱਡੀ ’ਚ ਬੈਠੀਂ ਕਿਧਰੇ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ। ਸੁਭਾਸ਼ ਨੰਬਰ ਦੋ ਗੱਡੀ ਚਲਾ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਸੁਭਾਸ਼ ਨੰਬਰ...
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