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Channel: लघुकथा
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मुआवजा

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गढ़वाली अनुवादः डॉ. कविता भट्ट

-त आप छन इंचार्ज साब, यु काळी– काळी बैट्रि ये भितर कतगा भद्दी लगणी च। यूँ तैं भैर मोरी क नेडू रखवे द्यावा।

–चोरी हूँण कि डैर च।

–हूँ चोरी! क्वी मजाक च। तब मि अपड़ा किस्सा बिटी रकम भौरि द्योलू।

फीर मुऐना।

–मि तैं तुमरु तार मिलि। त करवे याली चोरी। वाह मिन बोलि छौ, रकम भौरी द्यौलू। खूब, तुम सबुन मिलिक सच्ची बैट्रि चोरी करवै याली। अब बिटी रोज एक आदिमै कि पेशी होली।

दसाँ दिन।

 –तुम लोखु कि अब क्या पुलिस मूँ पेशि करौं। आखिर स्टाफ बच्चों क तराँ हूँद। यु ल्या सात सौ रुप्या। मोल लियौ नई बैट्रि। लिखी द्यौलू, दुसरा दफ्तरा का बिना बतायाँ लीगी गे छा। मिलि गे। वार्निंग ईशू करै याली।

मुऐना खत्म ह्वे। साब कु टी.ए.-डी. ए. छब्बीस सौ से कुछ हौर उब्बाँ बैठी छौ।

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