सुबह का अखबार फिर उसके सामने था। वही खबरें, यहाँ आतंकवादी हमले में इतने मरे, इतने घायल! लोग शोक प्रकट कर रहे हैं, वहाँ सैनिकों ने इतने विद्रोहियों को मार गिराया, इधर कार एक्सीडेंट में इतने घायल, उधर बर्फ से या लैंड स्लाइड में इतने मरे…..मौत…मौत…मौत..हत्या..बलात्कार..चोरी डाके..भ्रष्टाचार..
हर रोज़ सुनीता का मन सुबक उठता है, दिमाग हर मौत और चोट की खबर से कराह उठता है। खबरें उसके दिमाग से चिपक जाती हैं और दिन भर उदास करती हैं। उसके पति, बच्चे और दोस्त समझाते कि ”तुम दूर घट रही घटनाओं से अपने को इतना जोड़ क्यों लेती हो? यहाँ तो तुम सुरक्षित हो!’ बच्चे कहते ’माँ, खुद तो डरती ही है और अपना डर हम में भरती भी जाती है, हमें डरने की बजाय स्थिति का सामना करना चाहिये”। वो सोचती, ’इनका जवान खून है इसलिये ये ऐसी बातें करते हैं, इन्हें क्या पता कि आजकल कितने खराब हालात हैं! कुछ बोलो तो गुंडे चाकू, पिस्तौल निकाल लेते हैं’ और वो फिर बच्चों के लिये डरती, पति के लिये भी डरती..कह लो खबरों को पढ़कर देश-विदेश, घर-बाहर सब के लिए चिन्तित होना, डरना, दुखी होना सब उस के हिस्से आ गया था और कैसे न आता। दिनभर टी.वी. में, अखबारों में यही डर तो बोला, सुनाया, पिलाया जाता है। यह डर उसके खून में बह रहा है अब, वो बस हैरान होती कि ये दिल दहलाने वाली बातें बाकी सब कैसे लोगों के लिये एक खबर मात्र होती हैं!
आज भी जब दूधवाले की आवाज़ आई तो वह अखबार समेटते हुए भी उस हत्याकांड में उलझी हुई थी जो औटावा, कनाडा के शहीद स्मारक के पास हुआ था साथ ही खुद को उस से उबारने की कोशिश भी कर रही थी क्यों कि पता था कि उसका उदास मुँह देखकर सब का भाषण शुरू हो जाएगा। उसके पति को लगता था कि यह डर उसे मानसिक रोगी बनाए दे रहा है। कई बार तंग आ कर कहते कि ’या तो टी.वी.-अखबार बंद कर दिया जाए या वह यह समझ ले कि ये सब घटनाएँ उसके दरवाज़े पर नहीं हो रहीं हैं।’
यही सोचती वह जब तक उठती तब तक बिन्नी ने आकर कहा, “माँ तुम बैठो, मैं ले आती हूँ।“ बिन्नी दूध लेने बाहर चली गई। सुनीता भी अपने को और अखबार को समेटने लगी। तभी बिन्नी की ऊँची आवाज़ सुन।कर वह चौंक गई। जल्दी-जल्दी उठकर बाहर आई तो देखा दूधवाले रामसहाय की जगह गाँव से आया उसका गुंडा- सा लगता भाई रामखेलावन कुटिलता से मुस्कुरा रहा था और बिन्नी चिल्ला रही थी, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसी बात करने की?” सुनीता को वहाँ पहुँचते देख रामखेलावन ने सीधी होने की एक्टिंग करी, ”हमने क्या कहा?” सुनीता गुस्से से काँपने लगी, उसने रामखेलावन की कुटिलता देख ली थी! कड़क आवाज़ में बोली, ”क्या कहा तुमने?”
रामखेलावन आवाज़ धीमे करके बोला, “हमने तो..” हमने ..” कह कर वह चुप हो गया। सुनीता ने बिन्नी को देखा। 15 साल की उस लड़की के चेहरे पर गुस्सा फटा पड़ रहा था, सुनीता को अपनी ओर देखते हुए बोली, “माँ यह कहता था कि मैं सुन्दर लगती हूँ और यह मुझॆ गाँव घुमाने ले जाने को पूछ रहा था।” सुनीता कुछ बोलती उस से पहले बिन्नी अपनी तर्जनी उठा कर बोली, “हिम्मत मत करना मुझसे कभी दोबारा बात करने की और न ही दोबारा कभी यहाँ आना वरना खूब पिटोगे और गाँव की जगह सीधे थाने पहुँचोगे।” रामखेलावन ने भी शायद कम-उम्र बिन्नी से यह अपेक्षा नहीं करी थी इसलिए कुछ घबराहट और कुछ भौंचक -सा वह खड़ा रह गया। सुनीता ने अंदर जाते हुए उससे कहा, “जाकर अपने भाई को भेज दो अभी के अभी’। रामखेलावन हकलाते हुए बोलने की कोशिश करने लगा, “मैं…मैं तो …” बिन्नी अंदर जाने को मुड़ने ही वाली थी, पलटकर खड़ी हो गई और दृढ़ता से बोली, ’जितना कहा गया, बस उतना करो। जाओ यहाँ से अब’!’’ फिर माँ को कंधे से घेर कर बोली, “अंदर चलो माँ !’’
सुनीता पूरे किस्से से जितनी भौंचक्की थी उससे ज़्यादा वह बिन्नी के व्यवहार से हैरान थी। रामखेलावन के चेहरे की कुटिल मुस्कान देखकर उसे यही लगा था कि अखबार की बुरी घटनाओं को लोग जितना दूर समझते हैं, उतनी दूर वे हैं नहीं। आपके दरवाज़े पर यह घटना घट सकती है पर बिन्नी के व्यवहार ने उसे यह बता दिया कि इन घटनाओं से जूझॆ बिना नहीं रहा जा सकता और इनसे जूझने के लिये उसके बच्चे उस से ज़्यादा तैयार हैं।
-0-