पहली आवाज़…
“1984 के दिल्ली दंगों में मारे गए सिखों के हत्यारों को फाँसी दो।”
एक सामूहिक नारा गूँजा, “फाँसी दो, फाँसी दो!”
नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी।
“मित्रों, किसी भी अपराधी को भी बख्शा नहीं जाएगा। निश्चिन्त रहिए। वैसे मरने वालों के अधिकतर परिवारजनों को केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ़ से वित्तीय सहायता दे दी गई है; लेकिन हम जब तक दोषियों को सजा न दिलवा दें, चैन से नहीं बैठेंगे।”
फिर एक सामूहिक नारा गूँजा, नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी।
“मंत्री जी ज़िंदाबाद!”
“ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद!”
दूसरी आवाज़—
“दंगों में मारे गए मुसलमानों के क़ातिलों को को फाँसी दो!”
एक सामूहिक नारा गूँजा, “फाँसी दो, फाँसी दो!”
नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी।
“जो भी गुनाहगार होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। इत्मीनान रखिए। क़ानून अपना काम करके ही दम लेगा। मैं आपको बताना चाहूँगा हमने मृतकों के परिवारजनों के लिए सरकारी नौकरी और अनुदान का प्रबंध भी किया है।”
फिर एक सामूहिक नारा गूँजा, नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी।
“मिनिस्टर साब ज़िन्दाबाद!”
“ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद!”
तीसरी आवाज़..
“हमारे पादरी और उसके बच्चों को ज़िंदा जलाने वाले को फाँसी दो!”
एक सामूहिक नारा गूँजा,”फाँसी दो, फाँसी दो!”
नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी.
“देखिए, क़ानून की दृष्टि में हर कोई बराबर है. आप विश्वास रखें आपको न्याय अवश्य मिलेगा. क़ानून अपना काम कर रहा है. हमने एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स का गठन भी किया गया है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।”
फिर एक सामूहिक नारा गूँजा, नारा लगाने वालों में अल्पसंख्यक भी थे, बहुसंख्यक भी।
“भारत सरकार ज़िंदाबाद!”
“ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद!”
चौथी आवाज़…
“माफ़ कीजिएगा मंत्री जी, मैं इस देश के बहुसंख्यक वर्ग से हूँ, लेकिन एक सामान्य नागरिक होने के नाते एक बात पूछना चाहता हूँ।”
“लेकिन जो भी पूछना हो जल्दी से पूछिए!”
“सरकारी आँकड़ों के अनुसार उन्नीस सौ अस्सी और नब्बे के दशक में पंजाब में हज़ारों निर्दोष हिंदुओं की हत्याएँ हुई, काश्मीर में आतंकवादियों ने सैकड़ों हिंदुओं की जान ली और लाखों हिंदुओं को घरबार छोड़कर पलायन करने के लिए मजबूर किया. देश के विभिन्न हिस्सों से जबरन धर्म-परिवर्तन की ख़बरें आ रही हैं. इसके बारे में आज तक सरकार ने कुछ नहीं किया, ऐसा क्यों?”
इस बार मंत्री जी कुछ नहीं बोले।
इस बार कोई नारा नहीं गूँजा, न ज़िंदाबाद का न मुर्दाबाद का। अल्पसंख्यक भी चुप और बहुसंख्यक भी।
गूँजी तो केवल मंत्री जी के मुख्य सचिव की आवाज़,
“जेंटलमेन! दिस मीटिंग इज़ ओवर, नो मोर क्वेशचन्स प्लीज़…थैंक्यू!”
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