ठेठ गाँव है रतनपुर खुर्द। यहीं रहता है रमकिशुना। खुद तो मेहनत मजदूरी करता था। अपने बेटे को पढ़ाया-लिखाया, सो बेटा आईसीआर में प्रिंसिपल साइंटिस्ट है। बेटा बडा आदमी जरूरत बन गया लेकिन माँ-.पिता और परिवार को सम्मान देता है। पत्नी गाँव में ही थी और गर्भवती थी। परसों हॉस्पिटल में बेटी पैदा हुई है बड़े ऑपरेशन से। आज हास्पिटल से छुट्टी मिल गई है। बहू और बेटी घर आ रही हैं उन्हीं के सम्मान में रमकिशुना ने अपने घर को फूलों से सजाया है। मेन गली से घर तक चूना, कलई बिछवाई है। फूल बिछवाए हैं। इत्र छिड़कवाया है।
मैंने पड़ोसवाली चाची से पूछ लिया, ‘चाची ये इतनी सजावट कैसी।’
‘रमकिशुना के यहां नातिन पैदा हुई है। आज बहू हॉस्पिटल से आ रही है। रमकिशुना खुशी से पागल हुआ जा रहा है। इसीलिए ये सब सजावट है ।’
‘वाह बहुत उच्च विचार वाले हैं रामकिशन चाचा। खुशी हुई।अच्छा लगा।’-मुझे अच्छा लगा था
‘इसमें खुशी की क्या बात। लड़की ही पैदा हुई है। कोई भगवान थोड़े ही आसमान से उतर आए हैं।’ चाची भरी बैठी हैं।
‘क्या बेटियाँ भगवान से कम होती हैं चाची।’ मैंने पूछ लिया है चाची से।
कोई जवाब तो नहीं दे पाई हैं चाची। हाँ होठ सिकोडते हुए, कुछ बुदबुदाती हुई चली गई हैं।