अवधी अनुवाद:रश्मि विभा त्रिपाठी
वा हड़बड़ माँ रहै- वहिका ठीक नौ बजे ‘हिंदी दिवस’ केर उपलच्छ माँ होय वारी बखानमाला माँ हींसा ले खातिन विस्वविद्यालय पहुँचैक रहै। याकै त गड़िया दुइ घंटा अबेरि ते पहुँचाइसि, दूसर वा ई सहर केरे भूगोल ते इकदम्मै अजान रहै। वहिकी समझि माँ नाहीं आ रहा रहै कि विस्वविद्यालय तक्का कइसे पहुँचै।
याक मनई विदेसी नसल केर कूकुर केरी जंजीर पकरे गाभि तेजी ते चला आवति रहै।
“टाइसन! मूव…मूव फास्ट!” यहिते पहिले कि वा कुछु पुछतै, ऊ वहिका अनद्याखा कइकै तेजी ते निकसि गा।
“भाई साहब, रुहेलखण्ड विस्वविद्यालय खातिन बस कहन ते मिली?” अगिलिहे छिन हुआँ ते निकरति याक साइकिल सवार का रोकिकै वा पूछिसि।
साइकिल सवार कुछु स्वाचति भए ब्वालिसि, “जीआईसी, जीजीआईसी, बीबीएल बगैरा केर बारे माँ त पता हवै, जीपीएम, बीसी अउर सेंट मारिया त इकदम्मै नेरे हवैं, प…ऊ…का कहिउ आप रोहेलखण्ड…..? अहिके बारे माँ त पहिले कबहूँ नाहीं सुना। छिमा कीन्हिउ…हिंदी केर मामले माँ आपन दिमागु तनक अइस- वइसइ हवै। आप कउनिउ अउर ते पूँछि लेहु….”
अबेरि प अबेरि हुइ रही रहै। वा बस ते जावइ क्यार सोचु छाँड़ि दीन्हिसि अउर खड़खड़ा ते जावइ क्यार निहचय कीन्हिसि।
“भैया, रुहेलखण्ड विस्वविद्यालय चलिहौ?”
“सही मुहल्ला बतावहु साब, ई नाँउ केरी कउनिउ ठाँहीं नाहीं हियाँ।”
“अरे भाई, बतावा तौ- विस्वविद्यालय! इत्तौ नाहीं जानति हौ तुम्ह!….जहन लरिका- बिटेवा पढ़ति हवैं।”
“कइस बात करति हौ, साहब जी। रिकसा वारा बुरा मुँहि बनाइसि, “बीस बरस ते रिकसा डगरावति हउँ। हियाँ केरे चप्पा- चप्पा चीन्हिति हउँ। ई सहर माँ ई नाउँ क्यार कउनिउ सकूल नाहीं हवै।”
रिकसा वारा आतम थई भरे आँखिन ते वहिके तन द्याखि रहा रहै।
“भाई हमका यूनिवर्सिटी ते बुलावा आवा हवै।” झल्लाक वहिके मुँहि ते निकरि परा, “पीलीभीत जावै वारी सड़क प याक गाभि बड़की इमारति हवै…”
“युनवसटी!” रिकसा वारा चहकिसि, “त पहिलिहे सही ब्वालैक रहै। युनवसटी को नाहीं जानति! बइठहु अबहीं पहुँचाए देइति हउँ।”
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