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Channel: लघुकथा
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कबाड़

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गढ़वाली अनुवादः डॉ. कविता भट्ट

नौना थैं तीन कमरों कु फ्लैट मिली छौ। मजदूरु क दगड़ा मजदूर बण्यां किशन बाबू खुशी-खुशी सामान थैं ट्रक बिटि उतरौंणा छा। सैडी उम्र किराया क मकानूू म गळै  यालि छै। कुछ बि हो, अफ्वी गरीबीम रैक नौना थैं ऊँची शिक्षा दिलाण कु फल ईश्वर न वूं थैं दे-दे छौ। नौंन्नु सीधु  अफसर बणि अर बणदु ई कम्पनी की तरफ सि रौणा वास्ता इतगा बडू फ्लैट वे थैं मिली गे।

नौनु सीधु ऑफिस चलि गे छौ। किशन बाबू अर वेकी ब्वारी द्वी मजुुरू की मदत सि सैरू सामान फ्लैट म लगवाणा छा।

द्वफरा माँ खाणों का बगत पर नौनु आई त देखिक दंग रै गे। सरूू सामान ठिक ढंग से सजै-धजै क रखवये गे छौ।  एक बैडरूम, दूसरू ड्राइंगरूम अर तीसरू पिताजी अर मेमानू क वास्ता। वाह!

नौना न पूरा फ्लैट कु मुआयना कैरि। बडू-सी रूसाडु, रूसाड़ा क दगडा बडु-सि एक स्टोर, जै माँ फालतू  झबाड़-कबाड़ भर्यूं छौ। वेन ध्यान से देखि अर सोचण लगी गे। वेन अपणी घौरवाळी दुसरी तरफां लि जैक समझाई—देख, स्टोर बिटि सैरू 

झबाड़-कबाड़ भैर फिंकवे द्या। वख त एक चारपै भौत आराम से ऐ सकदि। इन कैर, वुख अच्छी तरौ सफै करवैक पिताजी की चारपै उखी लगवे दे। तीसरा कमरा थैं मि अपडु रीडिंग-रूम बणै द्योलु।

रातौ थैं स्टोर म बिछिं चारपै माँ पोड़दि बगत किशन बाबू थैं अपड़ा बुड्या सरील बिटि पैली बार कबाड़-जनि बदबू औणी छै।


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