“देख तेरी शादी नहीं चली, तो क्या तेरी जिन्दगी हमेशा के लिए रुक गई? उसी का कब तक मातम मनाएगी। आगे बढ़ और अपनी जिन्दगी का सफर दुबारा शुरू कर” माँ ने नियति को समझाया।
नियति- “माँ क्या ये जरूरी है?”
माँ- “हाँ बेटा! एक मोड़ पर एक साथी की जरूरत हर किसी को होती है। मेरे जाने के बाद तेरा क्या होगा, तू अकेले कैसे रहेगी, मुझे यही चिंता दिन- ब- दिन खाए जाती है। इसलिए मैं चाहती हूँ कि मेरे जीते जी तू फिर से अपना घर बसा ले।
मेरी बात सुन! मैंने सब जाँच-पड़ताल कर ली है। राज बहुत अच्छा लड़का है। उसका घर- बार भी अच्छा है और कमाता भी अच्छा है। बस एक अच्छा काम और हो जाए कि उसके और तेरे गुण मिल जाएँ। ”
माँ की आँखों में उस वक्त आई चमक को देखकर वो चुप रही वरना कहना तो यही चाहती थी कि उसके बारे में भी तो सबने यही कहा था।
शायद माँ ने उसका चेहरा पढ़ लिया था। कहने लगीं- “इस बार मैं तेरी कुण्डली वाजपेई जी को दिखाऊँगी। वो बहुत ही अच्छे ज्योतिषी हैं। लड़के की कुण्डली व्हाट्स एप पर जैसे ही आ जाएगी, पण्डित जी को जाकर दिखा लूँगी। ईश्वर करे, तेरी और उसकी कुण्डली मिल जाए। ”
नियति गहरी सोच में थी जैसे। विचारों के भंवर में फँसी हुई। माँ ने उसके कन्धे पर हाथ रखा तब वह बाहर निकली- “क्या सोच रही है? तूने सुना या अबकी बार भी मुझे अनसुना कर दिया” कहकर उन्होंने अपनी बात फिर से दुहराई।
नियति- “माँ! अगर तुम यही चाहती हो कि मैं अपनी जिन्दगी का सफर दुबारा से शुरू करूँ तो ईश्वर से ये दुआ मत करो कि मेरी और उसकी कुण्डली मिल जाए। ”
नियति के शब्द किसी शांत तालाब में जैसे कंकड़ की तरह थे। माँ ने हैरानी और कुछ गुस्से से भरकर उसका चेहरा देखा। भला ये क्या बात हुई? बिना कुण्डली मिलाए, बिना गुण मिलाए शादी कैसे होगी? वो कुछ बोलने ही वाली थीं कि नियति के बोल उनके कानों में पड़ते ही उनका गुस्सा पानी के बुलबुले की तरह फूट गया “ये दुआ करो कि मन मिल जाए।”
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