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Channel: लघुकथा
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संत

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संतजी का बड़ा नाम था। उनके चाहने वाले लाखों में थे; इसलिए हर दल के नेता उन्हें प्रणाम करने पहुँचते थे। 
एक दिन संत का प्रवचन चल रहा था। उपस्थिति दर्ज करने के लिए सबसे पहले मंत्रीजी पधारे। मंत्री को देखते ही संत गद्गद होकर बोले- “आप लोगों को शायद पता न हो;  इसलिए बता देता हूँ कि मैं इनके ही इलाके का हूँ। ये मेरे अपने हैं। इनको आपका आशीर्वाद मिलता रहे। ये दुबारा मंत्री बनेंगे। देख लेना।”
सबने तालियाँ बजाईं। ….
भारीभरकम चढ़ावा देकर मंत्रीजी चले गए। संत के निजी सहायक ने  मंत्री के प्रस्थान की सूचना विपक्ष के नेता को दी, तो वे भी  दौड़े चले आए। उनके आते ही संतजी शुरू हो गए- “अहा, ये तो मेरे छोटे भाई हैं। मेरे अपने हैं । बिल्कुल ख़ास।अगली बार ये ही मंत्री बनेंगे, देख लेना। आप लोगो का प्यार इनको ही मिले।”

फिर तालियाँ बजीं। 
कुछ समय बाद एक बड़ा अफसर भी वहाँ पहुँच गया। संतजी बोले, “अरे, ये तो मेरे बिलकुल ही खास हैं। इनसे मिलते रहें। मंत्री आज हैं, कल नहीं रहेंगे; मगर अफसर जहाँ रहेंगे, अफसर ही रहेंगे।”
संतजी अब कबीर का गुणगान छोड़कर मंत्री-अफसर का गुणगान कर रहे थे। अचानक एक भक्त उठा और बाहर निकलने लगा।

दूसरे ने पूछा-“कहाँ चल दिए?”
भक्त मुस्कराकर बोला- “संत बनने।”

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