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Channel: लघुकथा
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एक लुहार की

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प्रेगनेंसी टेस्ट का परिणाम सुकन्या के सामने पड़ा था और उसका सिर घूम रहा था – ‘यह कैसे हो गया!’ – वो तो पूरी सावधानी बरतती रही। उसे विश्वास नहीं हो रहा था।

तभी शिवम् ने घर में प्रवेश किया और आश्चर्यचकित होकर बोला, “अरे! तुम आज जल्दी आ गईं? काम कम था ऑफ़िस में क्या?”

सुकन्या ने गुस्से में उसे घूरते हुए वह परिणाम आगे कर दिया, जो ‘पॉज़िटिव’ था।

सारा माजरा समझते हुए शिवम् बोला, “मुझपर क्यों गुस्सा कर रही हो? चार साल हो गए हैं अपनी शादी को, आख़िर कभी तो माँ बनोगी ही, फिर अभी क्या प्रॉब्लम है?” बोलते हुए, कंधे उचकाकर वह कमरे में चला गया।

“यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसके लिए फ़िलहाल मैं तैयार नहीं हूँ!” लगभग चीखते हुई सुकन्या उसके पीछे-पीछे कमरे के दरवाज़े तक आ गई – “और मुझे कब माँ बनना है, यह निश्चित करने वाले तुम कौन होते हो?… कितना मना किया था उस दिन, मगर तुमने मेरी सुनी ही कहाँ? न जाने तुम्हारे दोस्त पार्टियों में तुम्हें क्या पिलाते हैं … कि न तुम्हें अपनी कोई सुध रहती है, न ही मेरा कोई ख़याल!” खीज और गुस्से से भरी सुकन्या की आवाज़, वाक्य समाप्त होते-होते भर्रा गई थी।

“डोंट वरी बेबी! ये अपने प्यार की निशानी है!” कपड़े बदलकर, इत्र की शीशी अपने ऊपर उड़ेलते हुए शिवम् बोला। ख़ुशबू के तेज़ झोंके ने सुकन्या के गुस्से को और हवा दे दी -बींधती हुई नज़रों से उसे देखकर बोली, “अब कहाँ चले?”

शिवम् बोला, “आज की पार्टी बहुत इम्पोर्टेन्ट है। कल बात करेंगे।”

“क्यों? मुग्धा ने दी है?” कुढ़कर सुकन्या ने पूछा।

“हाँ! तो?” चिढ़कर शिवम् ने कहा।

“तो क्या? मैं तुम्हारी बीवी हूँ, मुग्धा नहीं! क्यों उसके पीछे दुम हिलाते फिरते हो? मैं यहाँ इतनी परेशान हूँ और तुम्हें उसकी की पार्टी में जाने की पड़ी है?” सुकन्या की आवाज़ में बेबसी और तिलमिलाहट दोनों थे।

“बीवी हो तो क्या? ख़रीद लिया है मुझे? जोरू का ग़ुलाम हूँ क्या? और मुग्धा को क्यों बीच में घसीटती हो? उससे इतनी जलन क्यों है तुम्हें? वी आर फ़्रेंड्स, जस्ट गुड फ़्रेंड्स!” शिवम् की अकड़ में कोई कमी नहीं थी।

“तुम्हें बड़ी चोट लगती है, उसको कुछ कहने पर! क्या गारंटी है, कि यू आर जस्ट फ़्रेंड्स?”

“गारंटी तो नहीं है बेबी! तुम्हें मानना हो तो मानो …” शिवम् ने जैसे सुकन्या की खिल्ली उड़ाते हुए कहा।

“तो उसी को घर ले आओ न!… मैं नहीं रखूँगी यह बच्चा! किसी हालत में नहीं!” सुकन्या की आवाज़ गुस्से में काँपने लगी थी।

“तुम यह नहीं कर सकती!” चिंघाड़ते हुए शिवम् ने उसको दोनों बाँहों से पकड़कर कर हिला दिया, “यह मेरा बच्चा है!”

शिवम् की सख्त़ पकड़ की टीस सुकन्या की आँखों में झलक आई। पीड़ा को पीते हुए वह बोली – “गारंटी तो इसकी भी नहीं है शिवम् …” सुकन्या की आवाज़ में बेहद तल्ख़ी थी और चेहरे पर ऐसी तंज़भरी मुस्कान कि शिवम् के हाथों की पकड़ ख़ुद-ब-ख़ुद ढीली पड़ गई।

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