1-हिंदू मुसलमान

ड्राइंग रूम से आ रही आवाज़ के कारण उसकी नींद उचट गई। शायद कोई आया है, जिससे दीदी बात कर रही हैं।
“अब उठ ही गई हूँ, तो देखती हूं कौन आया है?
उत्सुकता दबाकर पड़े रहने से माथा ही दुखेगा,” उसने सोचा।
दीदी सोफे पर बैठी हैं। सामने लकड़ी की कुर्सी पर एक सुंदर नौजवान बैठा है।
उसके शारीरिक गठन से लगता है कि जिम जाता है। शक़्ल से खानदानी लग रहा।
चेहरे पर शराफ़त और सज्जनता की छाप है।
“यह अपने यहाँ रहने आया है। कहता है कुछ घर के काम कर दिया करेगा। पगार नहीं चाहिए, बस रहने का ठिकाना मिल जाए!”-दीदी कह रही हैं। उनके सामने ग्रीन टी का एक कप है। लड़के के सामने पानी का गिलास। गिलास काँच का है।
सामने रखे बोतल में लगे मनीप्लांट को धो दिया गया है।
“गाड़ी ड्राइव कर लेते हो?”-उसने पूछा है।
वह हाँ में सिर हिलाता है, बोलता है,”लाइसेंस भी है।”
लड़के के स्वर में सागर और गंगा के मिलन स्थल की भाषा का पुट है।
“यूनिवर्सिटी में पी एच डी कर रहा है। सोम दीदी ने सिफारिश की है।”
हां! तो फिर क्या दिक्कत है। यहाँ हर काम के लिए किसी न किसी का मुंह ताकना पड़ता है। घर में तीन बेडरूम खाली पड़े हैं। दीदी और वह दो इंसान ही हैं घर में फिलहाल। एक कुत्ता था पिछले साल तक। मर गया, दूसरा पालने का मन नहीं है। कोई तीसरा आकर रहे, तो अच्छा ही है न।
वह किचन में पानी लेने आ गई है। दीदी अपना ग्रीन टी का खाली कप रखने आई है।
“एक दिक्कत है!”-दीदी उसकी तरफ़ देखती हैं। उनकी आंखों में असंमजस है।
वह प्रश्नवाचक दृष्टि से उन्हें परखती है।
“गुलशन अहमद नाम है उसका। मुसलमान है। मैंने लाइसेंस पर लिखा नाम अनायास देख लिया। नहीं तो मैं हाँ करने ही वाली थी।”
“फिर रहने दो।”-वह पानी पीकर फिर से बेडरूम में आ गई है।
नौ बज गए हैं। दीदी शायद बाज़ार गई हैं। क्या किया जाए? वह सोचती है,थोड़ा सोसायटी में ही टहल आती हूं।
वह अपने बीस मंजिला टॉवर से बाहर निकली है। गार्ड ने हमेशा की तरह अभिवादन किया है।
जमीला आंटी व्हील चेयर पर बैठी हैं। सुबह वाला लड़का उनकी व्हील चेयर पकड़े उन्हें टहला रहा है।
जमीला आंटी उसे देखकर चहकती हैं।
“देखो मंगला, तुम्हारी सोम दीदी ने अच्छा लड़का भेजा है। गुलशन नाम है इसका! गुलशन अहमद,हमारे मजहब का ही है। हिंदू लगता है न! तुम्हारी सोम दीदी जाने कहाँसे नायाब हीरे ढूँढके लाती है।”-जमीला दीदी हँसती है।
लड़का मुस्कराता है।
“और आपको पार्सल कर देती है।”-वह उनकी हँसी में उनका साथ देती है।
जमीला दीदी विपरीत दिशा में चली गई हैं। उनकी आवाज़ फिर भी सुनाई देती है।
“यह मंगला थी। हमारी पड़ोसी! ये दोनों बहनें बहुत अच्छी हैं। इनके दिमाग़ में हिंदू मुसलमान नहीं है।”
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2-चीख
रात का खाना बनाकर वह कमरे में आकर लेटी है। गर्मी बहुत है। इस किराए के घर में एक खिड़की तक नहीं है। पंखा चलने का असर ही नहीं होता ।पति का नया काम है कुछ कहते नहीं बनता, इन्कम इतनी ही है कि दो जने रोटी खा लें और किराया भर लें।
हमेशा से ऐसा नहीं था। उसके ससुर का बड़ा बंगला है, वे बड़े पद से रिटायर्ड अधिकारी हैं। सास भी प्रिंसिपल है।
माँग करके उन्होंने बेटे के लिए घरेलू लड़की ली थी: लेकिन घरेलू लड़की को चैन से जीने नहीं देते थे। रोज की चिख-चिख। रोज अपमान! पति की नौकरी नहीं लग रही तो वह बुरी!रसोइए ने दाल सब्जी में नमक ज़्यादा डाल दिया तो वह आलसी, वह कामचोर!
तंग आकर उसने एक दिन पति से कह दिया। कह क्या दिया, अल्टीमेटम दे दिया।
मुझे कहीं किराए का घर ले दो, भले ही छोटा ही। इनके साथ नहीं रह सकती।
पति शुरू से चुप्पा! घुन्ना नंबर एक का! नहीं बोला, तो नहीं बोला: लेकिन अलग घर ले दिया। जब वे लोग घर छोड़कर आने लगे, तो सास ने गालियाँ दीं,धक्के दिए।
लेकिन अलग हो ही गए।
उसका पति उनका इकलौता बेटा। अधिकतर उधर ही पड़ा रहता।
“मम्मी जी बीमार हैं। देख तो आओ,”रोज कहता है।
वह नहीं जाती, तो नहीं ही जाती।
दरवाजा बजा है, उसने दरवाजा खोला है।
“मम्मी जी गुजर गई है। जल्दी चलो!” पति रोने को हो रहे।
वह जैसे खड़ी है ,जिन चप्पलों में है, चलने को तैयार है।
“अरे!चप्पल तो बदल लो!!”-पति कहते हैं। दुख में भी औचित्य!औपचारिकता!!
चप्पलें बदलकर मोटरसाइकिल पर बैठ गई है।
ससुराल में चंद लोग। चुपचाप रोनी सूरत बनाकर बैठे लोग।
वह ससुर के पाँव छूकर बैठ गई है। ससुर बच्चे- सा बिलखते हुए उससे लिपट गए हैं।
“बिटिया! तुम्हारी सास ने जीवन भर किसी का बुरा नहीं किया, किसी को मंदा नहीं बोला! फिर वह इतने दुख पाकर क्यों मरी!”
वह ससुर की पीठ सहलाने लगी है। उसकी आँखों से भी आँसू बहने लगे झर झर!
उसकी भी चीख निकल गई है।
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3- पगली
जब भी वह इस गली से गुजरता था, उसे वह पगली दिखाई पड़ती थी। लगभग नग्न।कभी लेटी हुई,कभी घूमती हुई दीन दुनिया से बेखबर, उसे अपना तन ढकने का भी होश नहीं। उसने सोचा किसी से पूछ ही ले, आखिर यह पगली है कौन?
“बाबू! इसका पति इसे दूर देश से ब्याह कर लाया था। इसकी जात बिरादरी अलग थी, इसके पति की अलग। ससुराल वालों ने धक्के देकर निकाल दिया था दोनों को। इसके पति को किसी ने मार दिया। तभी से यह ऐसी ही है। कोई कपड़े पहना देता है, तो एक दो दिन में फाड़ देती है। पूरा दिन मारी- मारी फिरती है। रात में यहीं कहीं पड़ी रहती है।”
उसे बड़ा तरस आया बेचारी पर। इस शहर में जहाँ दो पैर वाले वहशी जानवर खुला घूमते हैं, यह कब तक सुरक्षित रह पाएगी। उसने सोचा, मेंटल हॉस्पिटल में खबर कर दे। मेंटल हॉस्पिटल वालों ने उसकी बात पर ध्यान न दिया। बड़े अफसर से शिकायत की, तब जाकर मेंटल हॉस्पिटल वालों ने गाड़ी भेजकर उसे मँगवा लिया।
बहुत दिन तक उसे अपने किए गए परोपकार पर गर्व होता रहा।
एक दिन वह पगली फिर दिखी। वैसे ही फटे चीथडों में। लगभग नग्न। फर्क सिर्फ इतना था कि उसका पेट फूला हुआ था।
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4-शुद्धि
नसीर जाति का गूजर है मगर धर्म का मुसलमान था। उसका घर जिस मोहल्ले में था, उसमें उनके सिवा सारे के सारे घर हिंदू गूजरों के हैं।
वह अपने हिंदू दोस्तों के संग गिर्राज जी की परिक्रमा लगा आया है। बालाजी के दर्शन करके आया है, जबकि उसके दोस्त उसके संग न मस्जिद जाते हैं, न अजमेर शरीफ, न निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर। फिर भी वह उनसे नाराज नहीं होता। उनकी अपनी मर्जी है।
बहुत दिन से गाँव के वीरेंद्र चाचा विश्वेश्वर पंडित जी के संग उसके घर आ रहे थे।
वह वीरेंद्र चाचा की बहुत इज्जत करता था। चाचा उसे समझा रहे थे- “देखो बेटा। तू हमारा ही अंश है। तू न कुरैशी है, न सैयद, न पठान। तुम्हारे बुजुर्ग धर्म बदल कर मुसलमान भले ही हो गए थे; लेकिन तुझे ये लोग कभी भी अपने बराबर नहीं बैठाते। तू गूजर है गूजर ही रहेगा। तुम्हें गूजर ही गले लगाएगा।”
“वो तो ठीक है चाचा। मुझे अपना नाम तो नहीं बदलना पड़ेगा।”
“अरे नहीं। नाम तो भाषा से आता है। धर्म से थोड़े ही आता है। तुम हिंदू होके भी नसीर गूजर ही रहोगे!”
नसीर खुश हो गया। उसे लगा कि अब उसकी मेंबती से शादी भी हो सकेगी। मेंबती भी उसकी तरह गूजर ही है; लेकिन मेंबती का बाप उसके मुसलमान होने की वजह से उनकी शादी पर रजामंद नहीं है।
इसलिए उसने हाँ कर दी। उसके सहमति देते ही गाँव के मंदिर में विधि- विधान से उसकी शुद्धि करा दी गई।
शुद्धि के अगले दिन ही शुक्रवार था। शुक्रवार यानी जुमा। नसीर अपनी आदत के मुताबिक चार खाने का फेंटा बाँध तैयार हुआ और चल दिया।
रास्ते में उसे वीरेंद्र चाचा मिले। साथ में विश्वेश्वर पंडित मिले। दोनों बड़े खुश थे।
हँसते- हँसते बोले,”हिंदू हो गए हो। यह चारखाने का फेंटा बाँधना छोड़ दो। मेरी तरह सफेद पगड़ी पहनो या नंगे सिर रहो।”
“वो तो चाचा मैं जुमा पढ़ने जा रहा था: इसलिए बाँधा है।”
“अरे नसीर! तुम हिंदू हो गए हो। अब मुसलमान नहीं रहे। तुम क्यों नमाज़ पढ़ने जा रहे हो? “चाचा वीरेंद्र हैरान होते हुए बोला।
“चाचा। मैं भले ही मुसलमान नहीं रहा। हिंदू हो गया। अल्लाह अभी भी मुसलमान है।”
कहकर नसीर चाचा की मूर्खता पर हँसता हुआ चल दिया।
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5-किताब लिखना
“किताब लिखना बेकार है! आजकल किताबें कौन पढ़ता है?” सहयात्री बोला था-“आजकल मोबाइल फोन का जमाना है।”
कहकर उसने जम्हाई ली और आँखें बंद कर लीं क्षण भर के लिए।
“कभी इंडस्ट्रियल केमिकल खरीदे हो?”
“????”
“टूल बॉक्स?”
“????”
“ट्रकों में डालने वाला यूरिया?”
“????”
म्यूचअल फण्ड?
“????”
ताश का पैकेट?
“????”
गोल्फ क्लब?
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एल गॉर्ड?
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प्रेमिका को देने के लिए पाँच सौ रुपये का चॉकलेट?
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छोड़ो तुम किताब क्या ही खरीदोगे?
वह परे देखने लगा था।
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6-फेल
बेटी बड़े शहर से परीक्षा देकर लौटी है। वहाँ वह दो दिन उनके घनिष्ठ मित्र के यहाँ रहकर आई है।
“कैसा हुआ एग्जाम?-“उसने पूछा है।
“एकदम मस्त!”-बेटी ने हमेशा की तरह जवाब दिया है।
“और अंकल आंटी कैसे हैं? तुम्हें पसंद आए?”
“वे भी एकदम मस्त हैं! दे आर अमेजिंग!”-बेटी उसी मस्ती में कह रही है।
“और पता है पापा, अंकल आंटी बिल्कुल नहीं झगड़ते!”
बेटी कहकर चली गई है अपने रूम में।
उसे लग रहा है एग्जाम बेटी का हुआ है फेल वे लोग हो गए हैं।
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