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Channel: लघुकथा
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राजे

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–   राजे! / हरीश कुमार ‘अमित’

हर सुबह की तरह बेडरूम में  पलंग पर बैठा तकिए से पीठ टिकाए अख़बार पढ़ रहा था, जब सुमति चाय का कप और दो बिस्कुट पास पड़ी तिपाई पर रखकर वापिस रसोई में चली गई। अख़बार पढ़ते-पढ़ते मैंने हाथ बढाकर   एक-एक करके दोनों बिस्कुट खा लिए। इसके कुछ देर बाद चाय का कप उठाया और एक घूँट भरा। घूँट भरते ही मैं जैसे  चौंक पड़ा। चाय का स्वाद लाजवाब था। स्वाद वैसा ही था जैसा  चालीस साल पहले सुमति से शादी होने के  अगले कुछ सालों तक हुआ करता था। मेरी ख़ुशो का कोई ठिकाना  न रहा। मैंने चाय का एक और घूँट् भरा। मुझे लगा जैसे मैं आनंद और सुख के सागर में डूब गया हूँ।

ख़ुशी से लबरेज़ आवाज़ में मैंने सुमति को आवाज़ दी, “सुनो!”

कुछ देर बाद वह आई तो मैंने बड़े प्यार से उसे कहा, “यह चालीस साल पहले वाला अमृत कैसे बना लिया आज?”

मेरी बात सुनकर सुमति मुस्कुराई।मैने हाथ बढ़ाकर उसकी बाँह थपथपाते हुए कहा, “मज़ा आ गया चाय पीकर!”

सुमति का चेहरा तरल-सा हो आया। पिछले बहुत-से सालों में मेरे मुँह से अपनी तारीफ़ उसने कभी सुनी नहीं थी। तभी उसने मेरा हाथ पकड़कर  अपने गाल से लगाया और बड़े प्यार से बोली, “राजे!”

यह सुनकर मुझे ध्यान आया कि सुमति ने बहुत सालों बाद मुझे प्यार से ‘राजे!’ कहा है।

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: हरीश कुमार ‘अमित’, 304, एम.एस.4, / 304, M.S. 4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, / Kendriya Vihar, Sector 56, गुरुग्राम-122011 (हरियाणा) / Gurugram-122011 (Haryana)

ई-मेल / : harishkumaramit@yahoo.co.in


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