लाचार ज़िन्दगी
रात में सोने से पहले राहुल की अधखुली आँखों के सामने उस भिखारी की तस्वीर रह-रह कर सजीव हो जा रही थी, जिसके दोनों हाथ एक ही जगह से कटे हुए थे। उसके गले में एक पोटली टँगी थी, जिसमें लोग पैसे डाल रहे थे।...
View Articleदूसरी औरत
“हद है, आज दोनों शाम से ही गुत्थम-गुत्था हैं।” “लेकिन हर बार की तरह थप्पड़ के जबाव में लड़की रोने -सिसकने की जगह आक्रामक हो रखी है।” ” बच्चों से हट कर कोई नया टॉपिक है क्या ?” “हाँ, दरअसल लड़की की...
View Articleराजे
– राजे! / हरीश कुमार ‘अमित’ हर सुबह की तरह बेडरूम में पलंग पर बैठा तकिए से पीठ टिकाए अख़बार पढ़ रहा था, जब सुमति चाय का कप और दो बिस्कुट पास पड़ी तिपाई पर रखकर वापिस रसोई में चली गई। अख़बार...
View Articleमेकअप
“सो जा मुन्ना! सो जा मेरे प्यारे मुन्ना! मेरे राज दुलारे सो जा!” “कट! कट!” सीन कट गया, पर प्रीति मुन्ने को अपनी छाती से वैसे ही चिपकाए रही। “मैडम! इसकी माँ…” उसका चेहरा खिंच गया और कई लकीरें चेहरे...
View Articleसंवेदनापरक लघुकथाओं का दस्तावेज
संवेदनापरक लघुकथाओं पर केंद्रित नीलाम्बरा के पुस्तक रूप संग्रह ‘लघुकथा– यात्रा’ के अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ पढ़ने के बजाय अध्ययन शब्द- प्रयोग इसलिए समीचीन है; क्योंकि यह संग्रह अध्येताओं,...
View Articleअन्धा रास्ता
दसवाँ पुरस्कार वाहन इतनी तेजी से चल रहे थे कि सड़क पार करना बहुत ही कठिन काम लग रहा था फिर एैसे में कोई अंधा व्यक्ति ……। मुझसे नहीं रहा गया सो भागकर उनके पास पहुँच गया था मैं और उनका हाथ पकड़कर...
View Articleअर्चना रॉय की लघुकथा केरल यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम-‘विधा निदर्श’ में संकलित,
अर्चना रॉय की लघुकथा ‘क्वालिटी टाइम’ केरल यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम-‘विधा निदर्श’ में संकलित
View Articleअमृतसर में दो दिवसीय 30वाँ अंतरराज्यीय लघुकथा सम्मेलन सम्पन्न
अमृतसर: मिन्नी कहानी लेखक मंच (रजि.) द्वारा लोक मंच पंजाब, ऑल इंडिया पिंगलवाड़ा चैरिटेबल सोसाइटी (रजि.) और इदारा ‘मिन्नी’ के सहयोग से भगत पूरन सिंह पिंगलवाड़ा, मानांवाला (अमृतसर) में दो दिवसीय 30 वाँ...
View Articleलघुकथा कभी फ़ैसला नहीं सुनाती
लघुकथा कभी फ़ैसला नहीं सुनाती और ना ही न्यायोचित सुनवाई करवाती है; बल्कि वह तो किसी उनींदे पुलिसवाले द्वारा लिखी fIR-सी प्रतीत होती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि लघुकथा अधखुली कली के मानिंद होती है; लेकिन...
View Articleउल्लास
आखिरकार माँ को मेरी फटी निकर पर तरस आ ही गया। उसमें पीछे बनी दो आँखें अब जबड़ों की तरह फैल गई थीं। माँ ने उसे पिछवाड़े गली में फेंक दिया। उस फटी निकर से मुझे भी लगाव था। दरअसल यह लगाव उस निकर की दोनों...
View Articleज़हरीली हवा
शाम को ऑफिस से निकल घर जाने का मन न हुआ। क्योंकि पत्नी बेटी पीहू के साथ मायके गई थी, सो उनके बिना खाली घर खाने को दौड़ता- सा लगता है। चाय की तलब लगी थी, तो बाजार के नुक्कड़ की टपरी पर चाय पीने चला...
View Articleदो प्यासे परिन्दे
वह औरत आश्रम में दिव्यांग बच्चों से मिलने आई थी। वह किसी बच्चे से बातें करने लगती तो किसी से हाय हैलो। इसी दौरान उसने पाया कि एक बच्चा बैड पर गुमसुम-सा पड़ा है। उसने उससे बात करनी चाही,पर मैने कहा-...
View Articleबड़कऊ
नौंवाँ पुरस्कार पूरा घर दहाड़े मार मार कर रो रहा था। अम्मा बार बार बेहोश हुए जा रहीं थीं । मीरा और सुन्दर पिता के पैर पकड़ पकड़ रो रहे थे। पड़ोसी फुसफुसा कर बातें कर रहे थे आखिर बड़कऊ ने ऐसा क्यों...
View Articleबीमार
साइकैट्रिस्ट के पास जाने के लिए उनकी पत्नी बड़ी मुश्किल से मानी थी। वह पूछती, ‘मुझे क्या हुआ है? मैं तो ठीक-ठाक हूँ। क्या मैं पागल हूँ। साइकैट्रिस्ट डॉ. मदान के कुछ भी पूछने बताने से पहले मेहता ने कहा,...
View Articleपापी
आठवाँ पुरस्कार रात ड्यूटी से लौटा। पड़ोस में भागवत कथा चल रही थी। “खाना लगाएँ ।” पत्नी आहिस्ते से बोली। “हाँ हाँ लगा दो।” खीजकर मैंने कहा, “पता नहीं यह भागवत कब बंद होगी।” “सात दिन की है, आज...
View Article‘कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा -प्रतियोगिता-17’ की घोषणा
‘कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा -प्रतियोगिता-17’ की घोषणा
View Articleचर्चा
सातवाँ पुरकार बहुत साल बाद बदली होकर मास्टर जी करीब के गांव में आ पाये थे। मास्टर तो पुराने थे, पर नये स्कूल में आने के कारण नये वाले मास्टर थे। बच्चे उन्हें ऐसे देखते जैसे कि टोह ले रहे हों। वे कोशिश...
View Articleवरदान
छठा पुरस्कार आखिर मुख्यमंत्री दौरे से अपने निवास को लौट रहे थे। वे प्रसन्न थे। गेट पर उन्होंने एक दुबले पतले, फटे पुराने कपड़ों में रिटायर्ड मास्टर को देखा। वह तम्बू उखाड़ कर, बैनर लपेटकर जाने को...
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