वह औरत आश्रम में दिव्यांग बच्चों से मिलने आई थी। वह किसी बच्चे से बातें करने लगती तो किसी से हाय हैलो। इसी दौरान उसने पाया कि एक बच्चा बैड पर गुमसुम-सा पड़ा है। उसने उससे बात करनी चाही,पर मैने कहा- मैडम, यह मंद-बुद्धि बच्चा है यह अभी थोडे दिन पहले ही यहाँ आया है। हम भी पूरा प्रयास कर रहे हैं कि यह हमारे साथ घुल-मिल जाए, पर यह इस अवस्था से बाहर ही नहीं निकल पा रहा…… “
“हैलो!” औरत ने कहा।
उसका हैलो कहना जैसे बेअसर रहा। उसने उसके बालों में प्यार से हाथ फेरा फिर गाल सहलाए और फिर उसे उठाकर गोद में ले लिया।
गोद में लिए वह इधर -उधर घूमती रही।
धीरे-धीरे बच्चा उससे इतना घुलने-मिलने गया और उसके हावभाव से लगा, जैसे वर्षों से जानता हो उसे। उसके बाद उसने उसे बेड पर बैठा दिया और जाने लगी।
उसके कदम अभी दरवाजे तक ही पहुँचे थे कि अनायास ही उसकी गर्दन पीछे की ओर मुड़ी। उसने देखा, बच्चा प्यासी नजरों से उसे ही ताके जा रहा था। वह तुरन्त वापस आई। बच्चे के पास जाकर, पहले तो उसने उसका माथा चूमा, फिर उसे उठाकर छाती से लगा लिया।
मुझ सेविका को महसूस हुआ जैसे औरत के हृदय सागर से प्रेम की हिलोरें उठ रही हैं और वह बच्चा उन हिलोरों में जैसे खोए जा रहा है।
मैं चकित भाव से उस अनुपम दृश्य को देखती रह गई और कहे बगैर न रह सकी- ‘‘मैडम जी, आज मैंने पहली बार इस बच्चे के चेहरे पर मुस्कान देखी है। आपने तो जैसे इसकी झोली खुशियों से भर दी है।’’
‘‘अब पता नहीं खुशियों से झोली मैने इसकी भर दी या इसने मेरी। इसी खुशी के लिए जीवन भर तरसती रही हूँ मैं।’’ औरत के फडफड़ाते हुए होंठ मानो यही कह रहे थे।
-0-नसीब विहार कालोनी, घरौंडा करनाल 132114