Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

लघुकथाएँ

$
0
0

1-ख्वाब-परी

“तुम एक ख्याल हो ! मेरे रंध्र-रंध्र में बसी हो। जब भी तुम्हें देखता हूँ, पलकें स्वतः मुँद जाती हैं। तुम्हारी रूप-राशि उमड़ने-घुमड़ने लगती है। दिल तुम्हें देखते रहने को आकुल होने लगता है। तुम सामने बैठी रहो और मैं यूँ ही तुम्हें निहारता रहूँ। नयनों के रास्ते तुम मेरे दिल में उतरती रहो!”

     लड़की बिगड़ी। आँखों में क्रोध उतर आया था। झट से खड़ी हुई और बोली-“मुझे देवदास नहीं, पति चाहिए। आँखों में बसी रहने से गृहस्थी नहीं चलती। रंध्र में बहने से माँ नहीं बन सकती। सपने में छा जाने से व्यवहार नहीं होता।….जाओ और अपने लिए कोई ख्वाब-परी ढ़ूँढ लो !” और वह उठकर चली गई।

-०-

2-बसर

“शहर में कमाने आया था। चालीस बरस बीत चुके, अब तक कोई ठिकाना न हुआ।” किसनु ने हरिया से कहा।

      “अब तक ठिकाना क्यों नहीं हुआ?” 

      “एक जगह पच्चीस गज का प्लाट खरीदा। काँकर-पाथर जोड़कर झोपड़ी खड़ी कर ली। उसे नगर निगम वालों ने ढहा दिया। सस्ते में प्लॉट बेचना पड़ा। फिर दूसरी जगह प्लॉट लेने का जुगाड़ किया। प्लॉट खरीदा और उसे बनाया भी। सड़क निकालने के लिए सरकार ने उसे भी छीन लिया। कोशिश फिर करनी पड़ी। फिर से कर्ज सिर चढ़ाया और किसी कॉलोनी में बना बनाया एक मकान खरीद लिया।”

     “फिर…?”

     “कुछ महीने ही बीते थे कि कालोनी में बुलडोजर दहाड़ने लगे। कहा गया कि कॉलोनी अवैध है। नगर प्लानिंग वालों ने जुर्माना भी अलग से किया। इधर नौकरी से रिटायर हुआ और उधर ठिकाना भी जाता रहा।” रोते हुए किसनु ने हरिया से अपनी दास्तान कह डाली।

      हरिया ने नगर प्लानिंग वालों को गालियाँ देना शुरू कर दिया और बोलने लगा-“जहाँ भी बसें, वहाँ किसी प्लानिंग की कहते हैं और उजाड़ देते हैं। किसी जगह बसना हराम हो गया है।” आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे थे। 

      किसनु की भी आँखें बरस रही थीं। भर गले से वह हरिया से कहने लगा-“गाँव से खाली हाथ आए थे और अब खाली हाथ जा रहे हैं। चालीस बरस कुछ हाथ नहीं लगा।” हृदय से हूक उबक रही थी और आँखें आँसुओं से लबालब थी।

-०-

3-घोषणा

“अरे भाई, आज तो कमाल हो गया?” 

“क्या कमाल हो गया भाई?” 

“मुख्यमंत्री ने प्रदेश की तीन सौ के करीब कच्ची कॉलोनियों को पास कर दिया। पक्का कर दिया। अब सारी सुविधाएँ मिलेंगी। पब्लिक को बहुत बड़ा तोहफा दिया है।” 

“हमारी कॉलोनी पक्की हुई या नहीं?” 

“हाँ भाई, हमारी कॉलोनी का तो सबसे ऊपर नाम है।” 

“फिर तो जश्न होना चाहिए।”

“जश्न तो चौराहे पर मनाया जा रहा है।”

“फिर तो वहाँ जाना चाहिए। जश्न में शामिल होना चाहिए।”

“बिल्कुल जाना चाहिए भाई ! जिस नेताजी के सहयोग से कॉलोनी को पक्का किया गया, ढोल-नगाड़ों से उसका स्वागत किया जा रहा है। मालाएँ पहनाई जा रही हैं।”

“लेकिन भाई….मुझे तो अब भी सन्देह है।” 

“कैसा सन्देह है, भाई?” 

“गजट नोटिफिकेशन तो अभी हुआ नहीं और चुनाव सर पर हैं। कभी यह कोई खेल तो नहीं?”

-०-

 4-मँगता

लंबे काफिले की अगुवाई में खुली जीप पर सवार नेताजी ने जर्जर हुए मकान के सामने जीप रुकवा दी। गली में दूर तक गाड़ियाँ ही नजर आ रही थी। 

      नेताजी के समर्थन में आवाजें बुलन्द होने लगीं। 

      अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाया और लहराकर नेताजी ने गाँव वालों का अभिवादन स्वीकार किया।…. फिर जर्जर हुए मकान में खटिया पर पड़ी बूढ़ी अम्मा के चरणों में माथा टेक दिया। 

      नींद में अलसाई बूढ़ी अम्मा की आँखें खुलीं। पहचान नहीं पाई कि कौन है। गौर से आँखें फाड़े पहचान कर ही रही थी कि नेताजी बोल पड़े-“अम्मा मैं खुशीराम….आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ। इस गाँव में आप सबसे बुजुर्ग हैं। आपके कहे को कोई टालता भी नहीं। लोगों को कहें कि इस बार भी एकमत से मुझे वोट करें अम्मा !”

       पहचान होने पर अम्मा चहकी-“अरे तू तो लँगड़ू मँगता है, जिसकी माँ अपने खसम को छोड़कर एक ग्वालिया के साथ भाग गई थी। हर बार….गिरने को हुई छत को ठीक कराने की कहता है और भाग खड़ा होता है। चल….तू चल…. इस बेर किसी दूसरे मँगते को वोट देंगे?’’

-०-


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>