Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

लघुकथा-यात्रा की अशेष कथा

$
0
0

लघुकथा की यात्रा मानव-स्मृतियों, शब्द और भाषाओं के मानव परिचय- काल से है। लघुकथा मानव-ज्ञान की चिरसंगी रही है। लघुकथा मानवीय-कथ्य- शिल्प का मूल है। इसके चारों ओर ही कहानी, उपन्यास, निबंध और नाटक का बिस्तार हुआ। मानव में कथा एवं चर्चा वृत्ति मूलतः स्वाभाविक क्रिया है। मानव ने अपनी विकास क्रिया के शीर्ष पर गद्य-पद्य का उन्नत आधार बनाया किंतु लघुकथा-संसार का बोध ज्ञान के उद्गम तथा शीर्षतम अवस्थाओं का साक्षी है। पूर्व और आद्य-वैदिक साहित्य में लघुकथा मानवीय ज्ञानार्जन परंपरा की सहचरी रही है जिसके दर्शन हमें तात्कालिक साहित्य में परिलक्षित होते हैं।

लघुकथा का आद्य ग्रंथ हमारे वेद हैं- अथर्ववेद के कथात्मक चिह्न जो अलौकिकता, आध्यात्मिकता, सृष्टि-मूल के व्याख्या युक्त कथानकों से पूर्ण हैं। ऋग्वेद में पितर पूजा आदि कथानकों में लघुकथा का भ्रूणरूप है । सामवेद तथा यजुर्वेद में कथात्मक उद्बोधन हैं जो प्रेरक, हृदय स्पर्शी तथा प्रभावपूर्ण हैं। उपनिषद लघुकथाओं का भंडार हैं। पुराणों में असंख्य उद्बोधन बालकथाएँ यत्र-तत्र भरी पड़ी हैं। शतपथ ब्राह्मण, आरण्यक साहित्य, मैत्रायणी संहिता (1-5-12) में प्रचुर लघुकथाओं के दर्शन होते हैं। संस्कृत साहित्य में पंचतंत्र तथा हितोपदेश लघु कथा यात्रा के प्रत्यक्ष साक्षी हैं। इनमें वर्णित बोधकथाएँ, प्रेरक प्रसंग निश्चित ही आज की लघुकथाओं का आदि रूप है। ‘मैत्रायणी संहिता’ (1-5-12) में आदि लघुकथा (“यम मर गया। देवताओं ने यमी को समझाया कि वह उसे भूल जाए । जब भी वे उसे भूलने को कहते, यमी कहती – वह तो आज ही मरा है। तब देवताओं ने कहा- ऐसे तो वह उसे कभी नहीं भूलेगी। हम रात बनाएँगे । उस समय केवल दिन ही था, रात नहीं थी। देवताओं ने रात बनाई। दूसरा दिन हुआ, इस प्रकार वह उसे भूल गई।”) का रूप मिलता है । शतपथ ब्राह्मणों में गंधर्व कथाओं का भंडार है। इस पर उपदेशात्मक प्रवृत्ति हावी है। उपनिषदों में दार्शनिक व्याख्या-युक्त अविस्मरणीय लघुकथाएँ हैं।

अपभ्रंश एवं पालि साहित्य में लघुकथाओं की प्रचुरता है। बुद्ध जन्म के पूर्व की लघुकथाओं में उपदेश-वृत्ति प्रधान है। बुद्धकालिक लघुकथाओं में सामाजिक चित्रण की बहुलता है। इसमें राजा, भिक्षु, योद्धा, गृहस्थ, पुरोहित आदि संबंधी लघुकथाओं का समायोजन है। इनमें सामाजिक ज्ञान है। जातक लघुकथाओं (बुद्ध काल के बाद की) में कला और उपदेशागम प्रबल है। जैन लघुकथाओं की वण्यं-सामग्री में डाकू, व्यापारी, राजा, यात्री, गृहस्थ आदि संबंधी रोचकतापूर्ण कथात्मक दृष्टि है। जैन साहित्य में दशवैकालिक टीका में वर्णित तीन प्राकृतकथाएँ और उपदेशक पद की सत्तर प्राकृत कथाएँ यथार्थबोध के साथ ही आदर्श- परक भी हैं। महाभारत की लघुकथाओं में अतीत गाथाओं का भंडार है। लघु कथाओं से अन्तर्लघुकथाएँ गुंफित अवश्य हैं पर प्रत्येक में एक नई ज्ञान चेतना है। महाभारत जैसी लघुकथाएँ विश्व-साहित्य में दुर्लभ है। बाल्मीकि रामायण के उत्तर-काण्ड में प्रकृति और जीव, पशुपक्षियों संबंधी लघुकथाएँ वर्णित हैं जो उन्नत लघुकथा-यात्रा की प्रामाणिकता सिद्ध करती हैं।

पंचतंत्र तथा हितोपदेश संस्कृत कथा साहित्य के दो अनमोल ग्रन्थ हैं। विश्व- कथा-साहित्य इन कथा-ग्रन्थों का ऋणी है। विश्व-भाषाओं में इनमें वर्णित लघु कथाएँ किसी न किसी रूप में इनके साहित्य में मिलती हैं।

पंचतंत्र कथा सागर है। मित्रभेद, मित्र-संप्राप्ति, काकोलूकीयं, लब्ध प्रकाश, अपरीक्षित कारक – पाँच तंत्र समन्वित होकर पचतंत्र कहलाए। इसका कथारम्भ – “एक बनिया व्यापार करने चला। उसके काफिले में दो बैल भी थे। एक बैल दलदल में फंस गया। उसे छोड़ काफिला आगे बढ़ा। बैल का डकारना सुन एक शेर गीदड़ों सहित आया। गीदड़ ने शेर की दोस्ती बैल से करा दी और शेर का विश्वासपात्र बन गया। उधर वह बैल के दिल में शेर का डर बैठाता रहा और शेर को बैल की भयंकर चालों से आगाह कर डराता रहा। इस तरह बैल और शेर में दुश्मनी करा दी और अन्त में शेर द्वारा बैल को मरवा दिया।” एक सूत्र से उपरोक्त लघुकथा के रूप में है। इसमें 22 अन्त:लघुकथाएँ जुड़ी हैं। ‘हितोपदेश’ विश्व-साहित्य का विलक्षण लघुकथा-संग्रह है। ‘चतुर नारी’ लघुकथा- “एक स्त्री के दो प्रेमी थे । एक दण्डनायक था एवं दूमरा उसका पुत्र । एक दिन दण्डनायक का पुत्र उस स्त्री के यहां बैठा प्रेमालाप कर रहा था, उसी समय उसका पिता भी आ गया । उस स्त्री ने पुत्र को घर में छिपा दिया। थोड़ी देर बाद ही उस स्त्री का पति भी आ गया। दण्डनायक घबराया, लेकिन स्त्री ने उससे कहा कि तुम चले जाओ । उसने दरवाजा खोल दिया और दण्डनायक निकल गया। स्त्री के पति ने अन्दर आकर पूछा कि दण्डनायक क्यों आया था ? तब उसकी स्त्री ने धैर्यपूर्वक कहना शुरू किया- दण्डनायक का झगड़ा उसके पुत्र से हो गया था। अपने पिता के क्रोध से बचने के लिए यह लड़का यहां आ गया। उसको मैंने पिछले में छिपा  दिया था। दण्डनायक यहां आया और किवाड़ इसलिए ही बन्द कर लिए कि कहीं लड़का भाग न जाए। वह उसे तलाश करने लगा, लेकिन जब उसे लड़का नहीं मिला तो क्रोध करता हुआ बाहर निकल गया। इस पर उसका पति अपनी स्त्री की दयालुता एवं उदारहृदयता पर अत्यंत हर्षित हुआ ।” यह मानव विल- क्षणता तथा नारी प्रेम-प्रवणता की उन्नायक लघुकथा है। इन लघुकथाओं ने अरब तथा यूरोप देशों की भाषाओं के साहित्य को अत्यधिक प्रभावित किया ।

हिन्दी लघुकथाएँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावी हैं। ‘सिंहासन बत्तीसी’ (संस्कृत ग्रंथ ‘सिहासन द्वात्रिशिका’) की लघुकथाएँ सामयिक इतिहास-बद्धता की प्रतीक हैं। डॉ. गिल क्राइस्ट द्वारा प्रकाशित एक सौ आठ लघुकथाओं का संकलन (1802-1803) आधुनिक हिन्दी लघुकथा का सर्वस्वीकृत लघुकथा ग्रंथ है। ‘वैताल विशतिका’ में पच्चीस लघुकथाएँ संकलित हैं। एनसाइक्लोपीडिया इंदु- स्तानिका एटसेटरा’ में ‘लताइफ-इ-हिन्दी’ (700 लघुकथाएँ) ‘दि इन्दुस्तानी स्टोरी टैलर’, जे० बी० गिलक्राइस्ट (100 लघुकथाएँ), ‘हिन्दवी में कथाएँ’ ‘नकालिया-इ-हिन्दी’, ‘सदुपदेश की कथाएँ’ (1846, लेखक, बालगंगाधर शास्त्री) ‘वामा मनरंजन’ (1856-प्र० वर्ष), ‘पन्नन की बात’ (1864 ई, 414 लघुकथाओं का संकलन), ‘चौरासी वैष्णवों की वार्ता’ (लघुकथाएँ वर्ष 1870 ई० प्रकाशित) द्वारा लघुकथाओं से हमें लघुकथाओं का संक्षिप्त परिचय मिलता है ।

वस्तुतः लघुकथा जीवन के सत्य का संक्षिप्त प्रभावप्रद भावोद्घाटन है। इसमें एक ही भाव, सरस गद्य भाषा द्वारा मुक्तक काव्य वीरसाद्रता का घटनात्मक, प्रभावात्मक, कलात्मक समावेश है। इसमें गद्य-गीत सूक्ति प्रधान भाव कथात्मक तथा लघुकथात्मक रूप में भावों का संक्षिप्त-बोध, प्रश्नस्तक बोध, अलौकिक अनकहापन, भावों का उदात्तीकरण और चरमोत्कर्ष के दर्शन होते हैं।

लघुकथा जीवन के अनुभवों का नवनीत है जो सर्जना की अग्नियात्रा में लघुकथाकार की आत्म-संपदा है, उसकी विचार-चिन्तना के नए-नए मार्गों की परिचिति है। लघुकथाकार जीवन के विराट सत्य को कम से कम शब्दों में मनः व्यक्तीकरण करता है। यह मानव की यात्रा-कथा, जन्म से मृत्यु गंतव्य-कथा का लघुरूप है, उसकी लघुकथा है। लघुकथा चितना का लघु प्रगटीकरण, तीव्रानुभूतियों का, गहरे आत्मिक-बोध का मंत्रीकरण, भावों-प्रतिभावों, सम और विषम भावों का प्रभावी संप्रेषणीयता युक्त ढंग से विशिष्ट, सार्थक, स्वल्प सारांश है। लघुकथा वास्तव में मानव-चितना का लघुत्तम कथात्मक प्रतिफलन है।

लघुकथा-संसार की विलक्षणता हमारे साहित्य का विशिष्ट योग है। लघु कथा, विख्यात समालोचक डॉ. राम प्रसाद मिश्र के अनुसार, पच्चीस शब्दों से एक हजार शब्दों तक की मानी जा सकती है। कुछ विद्वान् तीन सौ से पांच सौ शब्द तक शब्द सीमा विस्तार करते हैं।

इसका भाषायी जगत् सादा, सहज, सरल, सपाट और बोधगम्य है। लघुकथाएँ वस्तुतः वर्णनात्मक, संवादात्मक, विचारात्मक, दृश्यात्मक, विवरणात्मक शैलियों में मिलती हैं। ‘ईसप की कहानियाँ’ तथा ‘बाइबिल’ शैली में भी लघुकथाएँ सहजोपलब्ध हैं।

आधुनिक साहित्य-मनीषियों तथा चिन्तकों ने इसे अधुनातन साहित्य में समूची कथाधारा माना है। मेरी दृष्टि में लघुकथा कथा का मूलस्रोत या मूला- धार है। विद्वान इस सुगठित साहित्यिक विधा को पैनी, सीधी, तीखी तथा संक्षिप्त मानते हैं। इसके बेहद संतुलित एवं अर्थपूर्ण प्रत्येक शब्द लघुत्व में बहुत्व के परिचायक हैं। इसके चरम-बिंदु तक पहुंचकर अध्येता को सम्मोहित शून्य का आभास होता है। लघुकथा मात्र शब्द व्यामोह नहीं, भाव-बेला की संपूर्ण अभि- व्यक्ति है। यह चितन-संपदा का न्यूनतम शब्दों में अपूर्व क्षमता पूर्ण समाधान है। विद्वान इस लघुत्व में व्यापक संप्रेषणीयता एवं प्रभावोत्पादकता के दर्शन करते हैं। डॉ. शमीम शर्मा इसके रूप वैशिष्ट्य – “लघुकथा के संक्षिप्त आकार व चुस्त शिल्प में इतनी गंभीरता, सूक्ष्मता, क्षमता, अर्थगभिता, यथार्थ-परकता एवं प्रभावोत्पादकता है जितनी कि साहित्य की अन्य विधाओं में कहीं नहीं ।” – पर मोहित हैं। कुछ रचनाकार हठधर्मिता से व्यंग्य प्रधान लघुकथाओं को ही लघु- कथा होने का दम भरते है किंतु यह दृष्टि-बोध का अन्तर है। राजनीति के प्रसंगों से जुड़कर कोई रचना पूर्णता तथा सार्थकता प्राप्त नहीं करती । बहुत से साहित्यविद् इसके – लघु कहानी, लघु-व्यंग्य, मिनी कथा, अणुकथा, क्षणिक-कथा, कथानिका, सूक्ष्मका आदि-आदि संबोधन अभिव्यक्त करते हैं पर यह ‘लघुकथा’ ही है।

विख्यात लघुकथा-ममीक्षक तथा लघुकथा लेखक डॉ. सतीशराज पुष्करणा लघुकथा प्रगति यात्रा – “आधुनिक कहानी के संदर्भ में ‘लघुकथा’ का अपना स्वतंत्र महत्त्व एवं अस्तित्व है। जीवन की उत्तरोत्तर द्रुतगामित और संघर्ष के फलस्वरूप उसकी अभिव्यक्ति की संक्षिप्तता ने आज कहानी के क्षेत्र में लघुकथाओं ने अत्यधिक प्रगति की है। रचना और दृष्टि से लघुकथा में भावनाओं का उतना महत्त्व नहीं है जितना किसी सत्य का, किसी विचार का, विशेषकर उसके सारांश का महत्त्व है”- के भावप्रवण पक्ष से बहुत प्रभावित हैं।

लघुकथा का वर्ण्य-विषय विस्तृत तथा व्यापकाधार पर आधूत है। इसमें जहां प्रणय दर्शन है, प्रणय यानी प्रेम, प्यार, मुहब्बत, इश्क, लव, स्नेह, दुलार, अफेक्शन, समर्पण, दर्शन, गूढ़-गूढ़तर गूढ़तम, भोग से उत्पन्न कुण्ठा, प्रणयदर्शन में प्यार की चरम- परिणति, त्याग, विद्रोह, आक्रोश, विवशता, हठधर्मिता, वासना, बलात्कार, संभोग, अभिलाषा, नारी-यातना, बलात्कार, दहेज, विवशता, गलतफहमी, कृत्रिम- प्रेम, वैश्या, व्यवस्था के अत्याचारों में साहित्यिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, सामाजिक,आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक शिक्षा आदि विविध-संभाग। लघुकथा लेखक समाजगत तथा राष्ट्रगत अत्याचार, अनाचार, अन्याय, कदाचार, भ्रष्टाचार, व्यभि चार, हिंसा, हत्या, पीड़ा, शोषण, हड़ताल, हिसा आदि में रत न होकर उन स्थितियों से संघर्ष करता है लघुकथाकार युवा अपराधों, आक्रोश, कुण्ठा, संत्रास आदि का डटकर विरोध करता है। वह निडर होकर श्रद्धा, मोह, दंभ, चिता, वेदना, दर्द, ईमानदारी, आस्था, सहानुभूति पुञ्ज, तम, जीवन की विषमताओं, विसंगतियों-विद्रूपताओं, अभावों, कुंठाओं पर लेखनी चलाता है। लघुकथाकार के लेखन क्षेत्र से संभवतः कोई भी क्षेत्र अस्पृश्य नहीं है।

पश्चिम जगत् में ‘ईसप्स फेबुल्स’ (ईसप ईसा से 600 वर्ष पूर्व) निवासी आरसेनिया ने सेमेटिक जाति के गौरव की विलक्षण लघुकथा संरचना की। अंग्रेजी साहित्य में काव्य के पिताचासर, हेनरीसन, ड्राइडन, सामरसेट माम तथा गे ने रूस के महान् लेखक सोल्जेनित्सिन, तुर्गनेव, चेखव; अमेरिका के विख्यात लेखक के० एच० बीमर; फ्रांस के फातेन; चीन के युग निर्माता लूसुन, चेन-शेंग, लाओ-शे; जापानी के पोशिकी हामाया, यासुनारि कावावाता; जर्मन साहित्य के युग-प्रवर्तक ग्यूटर बूनोफुक्स, भारत में राष्ट्रभाषा हिन्दी में पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, प्रेमचन्द, प० माखनलाल चतुर्वेदी, सुदर्शन, सतीशराज पुष्करणा, रामनारायन उपाध्याय, रमेश बतरा, विक्रम सोनी, चक्रधर नलिन, कृष्णा अग्नि- होत्री, कमलेश भारतीय, नन्दल हितैषी, पुष्पलता कश्यप, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’, आशा पुष्प, अंकुश्री, डॉ. स्वर्ण किरण, मार्टिन जान अजनबी, तारिक असलम, चन्द्रभूषण सिंह, रामप्रसाद मिश्र, चन्द्रमोहन प्रधान, श्यामसुंदर घोष, ईश्वरचन्द्र, मणिप्रभा, यशपाल मुद्गल, रामयतन प्रसाद यादव, रावी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, दिनकर, मधुकर गंगाधर, जगदीश किंजल्क, विष्णु प्रभाकर, संतोष निर्मल आदि; मराठी के स्वनाम-धन्य लघुकथाकार यशवन्त गोपाली जोशी, कुमारी पिरोज आनन्दकर, मालतीबाई; तमिल के ख्यातिनामा लेखक अण्णात्तुरै, वी० वी० एस० अय्यर, तेलगु के शीर्षस्थ लेखक पी० पद्मा राजु, गुरुपाद; पंजाबी के श्रेष्ठ लघुकथाकार रामस्वरूप अणखी; सिधी के लेखक नारायणदास आर० मलकाणी, कश्मीरी के अख्तर मुहिउद्दीन, अनीस मिर्जा, बंगला के यशस्वी महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि की लघुकथाएँ प्रभावी, प्रेरक और विलक्षणता के कारण प्रसिद्ध हैं।

लघुकथा का पत्र-पत्रिकाओं में यथेष्ट स्थान है। भारतीय साहित्य की उन्नायक पत्र-पत्रिकाएँ जिनमें लघुकथाओं का गौरवपूर्ण प्रकाशन हो रहा है उनमें ‘दीपशिखा’ (कैथल), ‘स्वर्णदीपिका’ (पांचवां अंक, मई 1973 ई), ‘सारिका’ (नई दिल्ली, वर्ष 1973 ई० लघुकथांक); ‘तारिका’ (अगस्त, 1973 : लघुकथा विशेषांक), ‘दैनिक स्वदेश’ (दीपावली लघुकथांक : 1973 ई० : इंदौर), ‘बम्बई'(बान्दा : वर्ष 1974), ‘निर्झर’ (स० रमेश बतरा, वर्ष 1974 ई०), ‘मिनीयुग’ (दीपावली : वर्ष 1974 ई०), ‘प्रगतिशील समाज’ (लघुकथा विशेषांक), ‘डिक्टेटर’ (व्यावर, अगस्त 1976 ई०), ‘अग्रगामी’ (जयपुर लघुकथा अंक), ‘शब्द’ (लघुकथा विशेषांक), ‘सुपर ब्लेज’ (1981 लघुकथा अंक), सानुवन्ध (लघुकथा अंक 1987 अंक), ‘आद्यन्त’ (नई दिल्ली: रमेशचंद्र मिश्र), ‘अतिरिक्त’, ‘साहित्य’, ‘अंकन’, ‘साहित्यकार’, ‘कादम्बिनी’, ‘नवनीत’ आदि प्रमुख हैं। ‘प्रसंगवश’, ‘उजाले की ओर’, ‘वर्तमान के झरोखे में’, ‘बिखरे संदर्भ’, ‘आज के प्रतिबिम्ब’, ‘काशे’, ‘प्रत्यक्ष’, ‘हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ लघुकथाए’, ‘अक्स-दर-अक्स’, ‘बिहार की हिन्दी-लघुकथाएँ’, ‘बिहार की प्रतिनिधि लघुकथाएँ’, ‘लघुकथा: बहस के चौराहे पर’, ‘मण्टो और उसकी लघुकथाएँ’, ‘एक जरूरी साक्षात्कार’, ‘तत्पश्चात’ ‘लघुकथा इतिहास : एक दृष्टि में,’ ‘जख्मों के गवाह’, (स० पृथ्वीनाथ पांडेय, प्र० वर्ष 1986), ‘लघु आघात’ (विक्रम सोनी), ‘बन्धनों की रक्षा’ (लेखक-आनन्द मोहन अवस्थी : 1970 ई०), ‘मेरे कथा गुरु का कहना है’, ‘पहला कहानीकार’ (लेखक : रावी), ‘गुफाओं से मैदान की ओर, (1974 ई० भगीरथ रमेश), ‘प्रति- निधि लघुकथाएँ’, श्रेष्ठ लघुकथाएँ’ (डा० सतीश दुबे, सूर्यकांत) ‘मोहभंग’ लेखक-कृष्ण कमलेश), ‘गुफाओं से मैदान की ओर’, ‘आठवें दशक की लघुकथाएँ’ (1980 : डा० सतीश दुबे), ‘छोटा आदमी’, (प्रो० ईश्वरचन्द्र 1980 ई०) ‘हालात’ (1981 ई०, डॉ. कमल चोपड़ा), ‘अपना पराया’ (1981 ई०, डॉ. स्वर्ण किरण), ‘आतंक’ (सं० नन्दल हितैषी, 1983 ई०), नयी धरती : नए बीज’ अमरनाथ चौधरी अब्ज), ‘हस्ताक्षर’ (1983 ई० डॉ. शमीम शर्मा), ‘रायबरेली की लघुकथाएँ’ (सं० राजेन्द्रमोहन त्रिवेदी) आदि लघुकथाओं के पठनीय और अविस्मरणीय ग्रंथ हैं।

‘दर्पण’ (अमरनाथ चौधरी अब्ज), ‘निर्णायक कदम’ (चन्द्रभूषण सिंह ‘चन्द्र’), ‘विश्वास’ (डॉ. सतीशराज पुष्करणा), ‘भीड़’ (राजकुमार निजात), ‘अपनी बेटी’ (सुव्रतकुमार गोस्वामी), ‘औरत की भूब’ (रामनिवास मानव), ‘अलगाव’ (सुशील राजेश), ‘व्यापार’ (मार्टिन जान अजनबी), ‘बीच की स्थिति’ (नीलम जैन), ‘बेश्या’ (सुरेश जांगिड़ ‘उदय), ‘खिलवाड़’ (डा० कमल चोपड़ा) ‘कोशिश’ (यश खन्ना नीर), ‘पत्थर का भाग्य’ (सोमेश पुरी), ‘अंधेरे के दाग’ (शराफत अली खान), ‘न्याय’ (डॉ. परमेश्वर गोयल), ‘निर्णय’ (रामयतन प्रसाद यादव), बला- त्कार (सुशीला सितारिया), ‘अपना अक्स’ (राजेन्द्र मोहन बंधु), ‘वापसी’ (सुकेश साहसी), ‘बेरहम’ (मुकेश कुमार जैन), ‘फिसलन’ (रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’), ‘कंटीले तार’ (अपर्णा चतुर्वेदी ‘प्रीता’), परिवर्तन’ (कृष्णशंकर भटनागर), ‘तौलिया’ (चितरंजन भारती), ‘विकृति’ (रामनारायण उपाध्याय), ‘जूते की जात’ (विक्रम सोनी), ‘दोष’ (डॉ. श्याम दीप्ति), ‘कमल का दर्द’ (सोमेश पुरी), ‘पूजा’ (डॉ.स्वर्ण किरण), ‘उत्तराधिकार’ (डॉ. संतोष दीक्षित), ‘पुरानी चादर’ (सिन्हा- वीरेन्द्र) आदि हिन्दी की अविस्मरणीय लघुकथाएँ हैं। ‘दर्पण’ में एक अनोखापन है जो प्रश्नबोधक है। ‘विश्वास’ में जीवन के महासत्य, सत्यासत्य का उद्घाटन है । यह हिन्दी की श्रेष्ठ लघुकथा के रूप में सर्वस्वीकृत हो सकती है। ‘भीड़’ उद्बोधन- युक्त है। ‘बेटी’ (सुव्रत गोस्वामी) में युग बोध है, युग पीड़ा है तथा अपनी बीती जगबीती है । ‘खिलवाड़’ में एक नौकर का जीवन दर्शन है जो न घर का नघाट का स्थिति में अनकहेपन का शिकार है। ‘कोशिश’ में एक बेघर बार अपराधी का विवशताजन्य बोध है । ‘पत्थर का भाग्य’ एक श्रेष्ठ लघुकथा है जो मानवीय जीवन दर्शन की सच्ची अभिव्यक्ति है। ‘अंधेरे के दाग’ में बर्बर पुलिस पति की सामाजिक कलंकगाथा है जो जबरा मारै रोवे न देय को चरितार्थ करती है। ‘निर्णय’ में रधिया की भौतिक दृष्टि, बच्चे को समृद्धि पथ पर ले जाने की योजना भौतिकवादी युग की सुखेन दृष्टि पर आधृत एक यांत्रिक लघुकथा है। ‘बलात्कार’ में सुशीला ने नारी की विवशताजन्य स्थिति का वर्णन किया है। नागे या परिस्थिति ग्रस्त व्यक्ति, जो अनकहेपन की स्थितियों में जीता है उसके पास मौन सहने के अतिरिक्त और क्या है। यह हिन्दी की श्रेष्ठ लघुकथाओं में एक है। ‘सत्ता की आग’ एक नए मानवीय दृष्टि-बोध का परिचायक है । ‘अपना अक्स’ (राजेन्द्र मोहन) दो रोटी के लिए तरसते समानधर्मी व्यक्तियों की लघुकथा है जो एक घटनात्मकता से दूसरे का विलक्षण संयोग है। यह पाठकों को सोचने की स्थिति-संयोजन को विवश करती है। ‘वापसी’ प्रेरणास्पद लघुकथा है। ‘बेरहम’ में मानवीय-संवेदना का अद्भुत पहलू है ।

हिन्दी लघुकथा-संसार नए-नए रूपों में विकसित और समृद्ध हो रहा है। मानवीय चितना, नई-नई गतिधाराओं के साथ लघुकथाओं में परिलक्षित हो रही है। हिन्दी लघुकथाकार इस बीसवीं और इक्कीसवीं शती की सर्वाधिक सशक्त विधा को सृजनात्मक बोध से निरंतर सशक्त बना रहे हैं, यह भारतीय गौरवशाली साहित्यिक-परम्परा का श्रेष्ठ प्रमाण है।

(कथादेश: संपादक-सतीशराज पुष्करणा ,1990)


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>