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Channel: लघुकथा
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धोखा

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 ( अनुवाद : सुकेश साहनी)

पहाड़ की चोटी पर अच्छाई और बुराई की भेंट हुई। अच्छाई ने कहा, ‘‘भैया, आज का दिन तुम्हारे लिए शुभ हो।’’

बुराई ने कोई उत्तर नहीं दिया।

अच्छाई ने फिर कहा, ‘‘क्या बात है, बहुत उखड़ी–उखड़ी लगती हो!’’

बुराई बोली, ‘‘ठीक समझा तुमने, पिछले कई दिनों से लोग मुझे तुम पर भूलते हैं, तुम्हारे नाम से पुकारते हैं और इस तरह का व्यवहार करते हैं जैसे मैं ‘मैं’नहीं ‘तुम’ हूँ। मुझे बुरा लगता है।’’

अच्छाई ने कहा, ‘‘मुझमें भी लोगों को तुम्हारा धोखा हुआ है। वे मुझे तुम्हारे नाम से पुकारने लगते हैं।’’

यह सुनकर बुराई लोगों की मूर्खता को कोसती हुई वहाँ से चली गई।

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