बम फूटने ओर बोतलें फेंकने की आवाजें,चीख, हो-हल्ला, खून-खराबा। हर कोई भाग-दौड़ रहा था। ऐसी ही भीड़ को चीरता हुआ वह बालक ओट से परे जाकर खड़ा हो गया। अपने सिर की गोल टोपी व्यवस्थित करते हुए वह भयाक्रांत नजरों से जुलूस की खूनी हरकतें देखने लगा। अचानक उसे लगा, उसके बाजू को किसी ने तेजी से दबोचकर उसकी जान निकाल ली है। उसने देखा, वह एक आदमी की गिरफ्त में है, ‘‘चाचाजान, क्या आप हिन्दू हैं…?’’
‘‘हाँ,बोलऽऽ…’’
‘‘या अब्बा!’’ मौत सिर पर मँडराने के डर से वह चीख पड़ा। वह आदमी इसे अंदर खींचकर ले गया तथा दोनों कंधों को दबाकर उसे एक पाटे पर बिठा दिया, ‘‘क्या आप मुझे हलाल करेंगे….’’
‘‘ हाँ, तू ऐसे भीड़-भाड़-भरे जुलूस में आया क्यों?’’
‘‘अब्बा ने तो मना किया था, पर मुहल्ले के सभी लड़के तो आ रहे थे…’’त्योहार का उल्लास उसके मन में हिलोरें ले रहा था।
‘‘कब से निकला था घर से….’’
‘‘सुबू से, चाचाजान, आप मुझे हलाल मत करिए।’’ वह रोने लगा था।
‘‘अच्छा, चुप हो जा…..’’ इशारा पाकर खाने की थाली पत्नी ने उसके सामने रख दी। डर और आतंक से सहमते हुए उसने उस आदमी की ओर देखा।
‘‘खा ले…..’’
‘‘मुझे भूख नहीं है…..’’ वह डर से काँप रहा था।
‘‘नहीं खाएगा…..?’’ आदमी का स्वर कुछ तेज था। बालक को लगा, गंड़ासा उसकी गर्दन पर ये पड़ा, वो पड़ा, ‘‘अच्छा खाता हूँ।’’ वह खाने में जुट गया।
‘‘चाचाजान! मेरे अब्बा अकेले हैं, मुझे हालात मत करो, मुझे जाने दो।’’
‘‘अकेला जाएगा तो मर जाएगा। हम तुझे पहुँचा देंगे।’
‘‘नहीं….नहीं मरूँगा, अब्बा ने कहा था कि अल्लाह तेरे साथ है…’’ वहस ‘शंकालु डर से लगातार काँपता जा रहा था।
‘‘अच्छा चल , पाजामे में जेब तो है न! इसमें ये टोपी रख ले….तेरा पता क्या है…?’’ उसने कागज की चिट पर पता लिखा तथा उसकी अंगुली थामे कमरे से बाहर निकला। बाहर रोड पर, वही हो-हल्ला,चीख-पुकार, भाग-दौड़, खून-खराबा।
उस आदमी ने उसे पुलिस को सौंपा, ‘‘इसे इसके घर तक पहुँचा दीजिए, ये पता है। पहुँचा देंगे या इसके लिए भी ऊपर से ऑर्डर लगेगा?’’ उसका स्वर कुछ ऊँचा हो गया था।
पुलिसमैन ने अचकाचाकर उसकी तरफ देखा तथा बच्चे को पुलिस-वैन की ओर ले गया। बच्चा कृतज्ञता-भरी नजरों से उसकी ओर देखता हुआ आगे बढ़ गया। उसे लगा, उमस-भरी तपन के बीच
आया शीतल झोंका उससे दूर हो गया है।
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