लार पर आघात
चौथा पुरस्कार प्राप्त लघुकथा रेलवे प्लेटफॉर्म पर मेरे पास खड़े उस साधारण से आदमी ने जैसे ही बीड़ी का बंडल जेब से निकाला, मैंने जोर से उसे टोक दिया,‘अब्बे, स्टेशन पर बीड़ी पिएगा तो...
View Articleचेहरे
तीसरा पुरस्कार प्राप्त लघुकथा गाँव से बाहर एक सड़क थी। सड़क बस नाम की ही थी बाकी तो उस पर इतने गड्ढे थे कि पैदल चलना भी दूभर था। वाहन भी सही सलामत तब ही निकल पाते जब ड्राइवर पूरी सतर्कता...
View Articleलघुकथाएँ
1–राजा नंगा है छह साल की राजो मुझे घूँघट काढे पराँठे बेलते हुए देख रही थी । माँ तुम घूँघट क्यों काढ़ती हो ? उसने पूछा ; “अरे, बाबा बैठे है ” माँ ने ढलक गए घूँघट को नीचे खींचते हुए जबाब दिया । “लेकिन...
View Articleभागी हुई लड़की
‘‘सुना तुमने ? दामोदर बाबू की लड़की भाग गई।’’ ‘‘कौन? बड़ी वाली?’’ ‘‘पता नहीें, तीनों की तीनों तो कठैला जवान थीं।’’ ‘‘जब कोई पच्चीस बरस तक कुँवारी पठिया घर में बाँधे रहे, तो भागेगी नहीं? घास खानेवाली बकरी...
View Articleऔकात
जज द्वारा दिए गए फैसले पर जब दोनों पक्षों के वकीलों ने हस्ताक्षर कर दिए , तो जीतनेवाले पक्ष के लोग कमल की माफिक खिल उठे। हारनेवाले पक्ष के वकील ने कहा, ‘‘मुझे दुख है रामजीलाल, मैं तुम्हारा केस बचा न...
View Articleकथादेश अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता पर पाठकों की प्रतिक्रिया
1-नवनीत कुमार झा,दरभंगा डॉ. नीना छिब्बर की ‘टच स्क्रीन’ में सब के सुख -दुख में पहुँचने वाली अमरो बुआ के जैसी स्त्रियों का अब समाज में अभाव है!! अमरो बुआ जैसी स्त्रियाँ पहले बहुतायत में थीं जो रिश्तों...
View Articleऔर यह वही था
तस्कर ने जब सौगंध खाई कि बस, अब मैं यह धंधा नहीं करूँगा, तो इधर इसने उस पर तमंचा दाग दिया। तमंचा सिर्फ आवाज करके रह गया। तस्कर जिंदा का जिंदा। यह देख उसने तमंचा देनेवाले की गर्दन पकड़ी। इस गरीब ने बताया...
View Article1-उलाहना,2-आराम की ज़रूरत
1-उलाहना “देखो यार, तुमने ब्लैक- मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।” -0- 2-आराम की ज़रूरत “मरा नहीं- देखो, अभी जान बाक़ी है।” “रहने दो यार- मैं थक गया हूँ।” -0-
View Articleसमकालीन हिन्दी लघुकथा का सामाजिक परिप्रेक्ष्य
हिन्दी लघुकथा के सामाजिक वितान पर एक आलेख में पूरी बात नहीं की जा सकती। व्यापक दृष्टि से देखने पर राजनीति और परिवार की रेखाएँ भी समाज में आ मिलती हैं। यहाँ ‘समाज’ को कुछ सीमित अर्थो में लेकर...
View Articleबैसाखियों के पैर
बैसाखियों के पैर( लघुकथा-सग्रह): भगीरथ परिहार, पृष्ठ: 162 , मूल्य: 280 ( पेपर बैक), प्रकाशक: एजूक्रिएशन पब्लिशिंग , आर-ज़ेड, सेक्टर-6, द्वारका , नई दिल्ली-110075
View Articleअतिथि
बम फूटने ओर बोतलें फेंकने की आवाजें,चीख, हो-हल्ला, खून-खराबा। हर कोई भाग-दौड़ रहा था। ऐसी ही भीड़ को चीरता हुआ वह बालक ओट से परे जाकर खड़ा हो गया। अपने सिर की गोल टोपी व्यवस्थित करते हुए वह भयाक्रांत...
View Articleये जीन्स हैं
एक गाँव में लड़कियों के जीन्स पहनावे के खिलाफ….. पंचायत बैठने में अभी तीन घण्टे शेष थे, सरपंच की पोती,, ढीला-ढीला-सा जीन्स पहनकर, अपने दादाजी को पानी पिलाने आई। ‘‘बेटे! ये आज तूने क्या पहन रखा है?’’...
View Articleकलाकृति
“यार अपने बॉस का दिमाग ख़राब हो गया है कैसी कैसी कलाकृतियों को लाकर ऑफिस में सजा देता है । ” अखण्ड ने अपने साथी से कहा । “अब तुझे क्या हो गया है,ऑफिस में काम करने आता है या यह सब देखने । मेरे पास फालतू...
View Articleआँख का तिल / ਅੱਖ ਦਾ ਤਿਲ-ਰਾਮੇਸ਼ਵਰ ਕੰਬੋਜ ‘ਹਿਮਾਂਸ਼ੂ’
[ अनुवाद- श्याम सुन्दर अग्रावल] ਕਮਲਾ ਹੱਥ ਲਹਿਰਾ ਲਹਿਰਾ ਕੇ ਆਪਣੀ ਨੂੰਹ ਉਮਾ ਨੂੰ ਤਾਹਨਿਆਂ-ਮਿਹਣਿਆਂ ਨਾਲ ਛਿੱਲਣ ਉੱਤੇ ਤੁਲੀ ਹੋਈ ਸੀ, “ਪਿਓ ਦੇ ਘਰੋਂ ਪੋਟਲੀ ਬਗਲ ’ਚ ਦਬਾ ਕੇ ਚਲੀ ਆਈ। ਕੰਗਾਲ ਦੇ ਘਰੋਂ ਵੀ ਕੋਈ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ।...
View Articleलघुकथा माने, एक पंक्ति में कितने मोती?
मेरी माँ जो पढ़ने, लिखने की बहुत शौकीन हैं; जिन्होंने विवाह के कई सालों बाद अपनी ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की ओर जो आज भी धार्मिक पाठशाला में पढ़ने जाती हैं; हमें बचपन में जैन धर्म की किताबों से पढ़कर...
View Articleपुस्तकें
1-मेरी पसन्द -2:सम्पादक-सुकेश साहनी, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’,पृष्ठ: 122, मूल्य:240 रुपये, वर्ष:2018 ,प्रकाशक: अयन प्रकाशन,1/20, महरौली,नई दिल्ली-110030 -स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की...
View Articleलघुकथा-संग्रह
अयन प्रकाशन,दिशा प्रकाशन, वनिका प्रकाशन और साहित्य उपक्रम से प्रकाशित लघुकथा-संग्रह । अयन प्रकाशनः कीचड़ में कमल (राधेश्याम भारतीय ) दिशा प्रकाशनः हिन्दी की कलजयी लघुकथाएँ( सं-मधुदीप ) वनिका...
View Articleख़ुदा का घर
वह मस्जिद गाँव के बाहर स्थित थी, उस मस्जिद का दरवाजा बन्द था। लोग रात आठ बजे की नमाज अदा करके कब के अपने-अपने घरों को जा चुके थे। बाहर तूफान और बारिश जोरों पर थी। तभी किसी ने मस्जिद का दरवाजा खटखटाया।...
View Articleलघुकथाएँ
1-तोहफ़ा डोरबेल बजी जा रही थी। रामसिंह भुनभुनाये “इस बुढ़ापे में यह डोरबेल भी बड़ी तकलीफ़ देती है।” दरवाज़ा खोलते ही डाकिया पोस्टकार्ड और एक लिफ़ाफा पकड़ा गया। लिफ़ाफे पर बड़े अक्षरों में लिखा था ‘वृद्धाश्रम’।...
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